Tuesday, December 10, 2024

इको फ्रेंडली फैब्रिक

फैशन जगत में आज का समय इको फ्रेंडली फैब्रिक का है. जो फैब्रिक हमारे पर्यावरण के अनुकूल हो,और जिससे पर्यावरण को हानि ना पहुंचे,वह इको फ्रेंडली फैब्रिक कहलाते हैं. फैब्रिक मुख्यतः दो तरह के होते हैं, नेचुरल और सिंथेटिक फैब्रिक.
 नेचुरल फैब्रिक------ जो फैब्रिक हमें कुदरती तौर पर पेड़-पौधों,वह जानवरों इत्यादि से, प्राप्त होते हैं,वो नेचुरल फैब्रिक कहलाते हैं.
 इको फ्रेंडली फैब्रिक-------- नेचुरल फैब्रिक में से भी वह फैब्रिक, जो हमारे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं,तथा वह उसे(पर्यावरण को), ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते,उन्हें इको फ्रेंडली फैब्रिक कहते हैं.
 सिंथेटिक फैब्रिक---------- जो फैब्रिक इंसानों द्वारा तैयार किया जाता है उसे सिंथेटिक फैब्रिक कहते हैं. यह फैब्रिक पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाता है.
 फैशन जगत में अब तक, "फास्ट फैशन" का दौर था.फास्ट फैशन के लिए फैब्रिक में, बायोकेमिकल,डाई,इत्यादि हानिकारक चीजों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में होता था, जिससे पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता था. परंतु अब अधिकतर फैशन डिजाइनर,इस बात को समझ चुके हैं, अब वो अपने फैशन में,अधिक से अधिक इको फ्रेंडली फैब्रिक का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह फैब्रिक पर्यावरण के अनुकूल होता है. निम्नलिखित में हम कुछ इको फ्रेंडली फैब्रिक की बात करते हैं.
 सिल्क फैब्रिक------ सिल्क का कपड़ा कीड़ों से ही तैयार किया जाता है. सिल्क फैब्रिक के लिए कीड़ों का पालन किया जाता है. सिल्क प्राप्त करने के दौरान अधिकतर कीड़े
 मर भी जाते हैं. परंतु इसकी तुलना में अब बनाना फैब्रिक है.
 बनाना(केला) फैब्रिक------ केले के पेड़ से जो कपड़ा तैयार होता है उसे, बनाना फैब्रिक कहते हैं. यह फैब्रिक केले के पेड़ के,"तने" से तैयार किया जाता है. यह कपड़ा सिल्क के कपड़े के समान ही नर्म और मुलायम होता है.
 केले के तने में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है, जो कि इसे और इको फ्रेंडली बनाने में मदद करता है. तने की बाहरी हिस्से से,जो फैब्रिक तैयार होता है,वह थोड़ा सस्ता होता है. परंतु आंतरिक हिस्से से,जो फैब्रिक तैयार किया जाता है,वह ज्यादा कीमती होता है क्योंकि अंदर वाला हिस्सा,और ज्यादा मुलायम होता है.
 बेम्बू (बांस )फैब्रिक --------- बांस से बने फैब्रिक भी फैशन जगत में तेजी से, फैल गये हैं. बांस की खास बात यह होती है,कि यह आसानी से,व कम पानी वाली जगह पर, लगाया जा सकता है. यह बड़ी जल्दी-जल्दी बढ़ता है, और कम समय में चारों तरफ फैल भी जाता है.बांस पूर्णत, "बायोडिग्रेडेबल" होता है, अर्थात यह मिट्टी में पूरी तरह गलनशील होता है,और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचाता. बांस में भी भरपूर मात्रा में, फाइबर होता है. कॉटन के मुकाबले,बांस से बने कपड़े, सोखने की क्षमता ज्यादा रखते हैं. इससे बने कपड़े नर्म और मुलायम होते हैं.बांस में," एंटी बैक्टीरियल "गुण होने के कारण,इन कपड़ो से दुर्गंध भी नहीं आती है.
 ऑर्गेनिक कॉटन फैब्रिक(जैविक सूती )------- इसी प्रकार सूती फैब्रिक भी अब, जैविक तरीके से तैयार हो रहे हैं. जैविक खेती से पानी की बचत भी होती है. पहले अधिक मात्रा में कपास के लिए, इसकी खेती जल्दी-जल्दी करी जाती थी, और जल्दी फसल प्राप्ति के लिए,इसमें,"केमिकल्स व फर्टिलाइजर्स ",का इस्तेमाल होता था.
 यह,केमिकल और फर्टिलाइजर्स,हमारे पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदायक होते हैं.ज्यादा फसल के लिए,पानी का इस्तेमाल भी ज्यादा होता था. परंतु जैविक खेती में इन चीजों के इस्तेमाल नहीं किया जाता, और यह हमारे पर्यावरण के अनुकूल भी है.
 इसी प्रकार और फैब्रिक भी हैं,जो इको फ्रेंडली होते हैं, जैसे कि भांग,अनानास, इकोनिल,खादी, इत्यादि.इनसे बने हुए, कपड़े,बैग,जूते,पर्स, और सामान भी,आसानी से बाजार में उपलब्ध है.हमें भी अपने पर्यावरण के अनुकूल, इको फ्रेंडली फैब्रिक को बढ़ावा देना चाहिए. एक," स्वच्छ पर्यावरण "में ही,"स्वस्थ समाज "का निर्माण हो सकता है.


टेक्नोलॉजी

टेक्नोलॉजी का अर्थ होता है, कि विज्ञान, आधुनिक तकनीक, उपलब्ध संसाधनों द्वारा उत्पादों का निर्माण व विकास करना. टेक्नोलॉजी हर समय विशेष पर,बदलती रहती है, क्योंकि विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार हो रहे हैं. आधुनिक से आधुनिकतम तकनीकों के द्वारा, टेक्नोलॉजी में परिवर्तन होता रहता है. जिस देश की टेक्नोलॉजी जितनी आधुनिक होगी,वह देश उतना ही प्रगतिशील होगा.
 टेक्नोलॉजी में कला,साहित्य,विज्ञान,गणित, इत्यादि,सभी कुछ समाहित होता है. टेक्नोलॉजी हर क्षेत्र विशेष के साथ जुड़ी होती है, जैसे कि ऑटोमोबाइल,कंप्यूटर,नैनो- चिप,अंतरिक्ष,डिफेंस,बायोटेक्नोलॉजी, इत्यादि.वह क्षेत्र उतना ही आगे बढ़ता चला जाता है जिसकी तकनीक(टेक्नोलॉजी), समय के साथ,बदलती और सुधरती जाती है.
 आधुनिक टेक्नोलॉजी के द्वारा मानव का जीवन,काफी सरल,व आसान,हो गया है.
 उदाहरण के लिए इंटरनेट सेवा की आधुनिक टेक्नोलॉजी आने के बाद,पूरा विश्व जैसे एक मुट्ठी में आ गया हो. विश्व के विकसित देश, 6g,7g टेक्नोलॉजी, पर कार्य कर रहे हैं. संचार माध्यम के द्वारा पूरा विश्व,एक दूसरे के नजदीक आ गया है. विश्व के किसी कोने में, अगर कोई घटना घटित होती है, तो सेंकड़ो में वह वायरल होकर,घर-घर तक पहुंच जाती है.
 टेक्नोलॉजी ने मानव विकास को काफी आसान बना दिया है.
 परंतु जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी के,अनेकों फायदे हैं,तो उसके नकारात्मक प्रभाव भी काफी है. अक्सर हम टेक्नोलॉजी को,और आधुनिकतम बनाने के चक्कर में,प्रकृति से बेवजह छेड़छाड़ कर बैठते हैं, यह कदम बड़ा नुकसानदायक होता है. इसकी वजह से प्रदूषण बढ़ना,क्लाइमेट चेंज होना,गंभीर बीमारियों का पैदा होना, तथा फैलना, ओजोन परत का पतला,व उसमें छेद होना, जैसे गंभीर प्रभाव पड़ते हैं. यह समस्त जीवों, (मानव सहित),के लिए, काफ़ी घातक,व हानिकारक होता है. इनसे भूगर्भीय हलचलें तेज होने के साथ-साथ,अनेकों तूफान,व भूकंप इत्यादि भी आते हैं.
 अंतत हमें, प्रकृति के साथ मिलकर चलना पड़ेगा, हमें अपनी तकनीकों को, विकसित करने के साथ-साथ प्रकृति का ध्यान भी रखना पड़ेगा. उन्नत टेक्नोलॉजी के साथ, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ना हो, पर क्या ऐसा संभव है? इस सवाल का जवाब समस्त मानव जाति को, मिलकर खोजना पड़ेगा,और इसका समाधान करना पड़ेगा.


Monday, December 9, 2024

हँंसने की कला

हमें अपने जीवन में हंँसने की कला सीखना, बहुत जरूरी है. आजकल की इस भागम-भाग,व मारामारी वाली जिंदगी में, व्यक्ति के पास वक्त का बहुत अभाव है. व्यक्ति के पास सुख,साधन,संपन्नता की सभी वस्तुएं होने के बावजूद,उसके जीवन में एक तनाव सा बना रहता है. सब कुछ होते हुए भी वह खुश नहीं है, इसकी सबसे बड़ी मुख्य वजह है कि आज इंसान,हंँसना भूल चुका है. हंँसने के लिए आज व्यक्ति के पास, वक्त ही नहीं है. ऐसे में अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए,हंँसने की कला सिखना,बहुत जरूरी है.
 यह हमारे स्वस्थ,व अच्छी जीवन शैली से भी, जुड़ा हुआ है.
 हंँसने की कला के अनेकों फायदे हैं. हंँसने की कला,स्वयं से, समाज से, तथा विज्ञान से भी जुड़ी हुई है. इसका सभी पर सकारात्मक असर ही पड़ता है.
 हमारी हंँसी को, " सौ मर्जों की एक दवा", बताया गया है, हंँसने से हमारे,दिल व फेफड़े  मजबूत बनते हैं, उनकी अच्छी खासी कसरत हो जाती है. हंँसने से हमारे शरीर में, अतिरिक्त कैलोरी बर्न होती है. मतलब दिल खोल के हंँसने से हमारा फैट भी कंट्रोल रहता है.
 हंँसने से हमारे शरीर में,अच्छे हार्मोन बढ़ते हैं, रक्त संचार,सुचारू रूप से होता है. हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. मतलब दिल खोलकर हंँसने से, हम कई बीमारियों से भी बचे रह सकते हैं.
 इसलिए हमें खुश रहने,व हंँसने के लिए,नये-नये बहाने ढूंढते रहना चाहिए. अब तो अपने जीवन में तनाव कम करने के लिए, जगह-जगह पर, "लाफिंग क्लास "भी होती है. जिससे हमारे जीवन में तनाव कम हो,व हमारा जीवन आरामदायक, वह सरल बने.
 सबसे बढ़िया तब होता है,जब कोई इंसान अपने आप पर हंँसना सीख जाता है. वास्तव में यह कठिन कार्य भी है, परंतु इसके बाद व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत बन जाता है, तथा अपने जीवन की कितनी परेशानियों से बाहर निकल सकता है.
 इसलिए हमें अपने जीवन में एक अच्छी आदत खुश रहना, तथा दूसरों को हंँसने -हंँसाने की डालनी चाहिए. खुद भी हंँसो और दूसरों को भी हंँसाओ, जीवन इसी का नाम है.

Sunday, December 8, 2024

"यम"और "मनुष्य"

मृत्यु शैय्या पर लेटा था एक मानव,
 निकट आ गया ये कैसा दानव,
 जिंदगी अब हार गई थी,
 मौत,विजय पताका लहरा रही थी,
 प्राण पखेरू उड़ गए अभी तो,
 डोर सांसों की थम गई तभी तो,
 सामने खड़े थे अब,यम महाराज,
 बोले याद अब तू कर, अपने पल-पल के काम काज,
 पल भर में याद करने लगा वो,बचपन से मृत्यु तक का सफर,
 परंतु याद उसे ना आया, कभी करी हो,उसने किसी की कदर,
 संगी-साथी, यारी-दोस्ती,या फिर रिश्तेदार,
 बार-बार छल किया था सबसे,जिसका वो था जिम्मेदार,
 बोले यम,चल फिर मानव,यमलोक तुझे ले चलता हूं,
 तेरे अच्छे बुरे कर्मों का फल, तुझे वही देता हूँ,
 तेरे एक-एक कर्म,दर्ज है मेरे बही खाते में,
 उनसे ही तेरी जगह निश्चित होगी,स्वर्ग या नरक में,
 सुनकर आत्मा, अब तो थर्र-थर्र कांपने लगी थी,
 करके वो भैंसे की सवारी, अब तो डरने लगी थी,
 मन ही मन वो करती विचार,
 क्या है मेरी किस्मत का द्वार,
 कैसा होगा स्वर्ग? क्या नरक का हाल?
 हाय! क्यों आया मेरा यह काल,
 हिम्मत करके बोली (आत्मा) यम से,मैं हूं अबोध!क्या इतना बता सकते हो,
 अंतर क्या दोनों में है,मुझे इतना समझा सकते हो ?
 हंसते हुए बोले यम,चल पहले तुझको,भेद इनके बीच का,समझाता हूं मैं,
 आगे तेरे कर्मों का भाग्य, तुझे बतलाता हूं मैं,
 तुझको पहले, नरक की सैर करवाता हूं,
 होता है क्या, दुष्ट आत्माओं के साथ, तुझे यह दिखलाता हूं,
 लेकर यम आत्मा को,आ गये थे पाताल लोक,
 धरती के नीचे,गहराई में, डरावना सा, कैसा यह विचित्र संजोग,
 नरक लोक का द्वार खोलते ही देखा, दुष्ट आत्मायें,तड़प रही थी,
 गर्म तेलों की कड़ाहें थी, भीषण अग्नि चारों तरफ धधक रही थी,
 उस खौलते तेल में,उन्हें डुबाया जा रहा था,
 प्रचंड अग्नि में फिर, उनको जलाया जा रहा था,
 चारों तरफ भीषण दुर्गंध फैली थी,
 रक्त,पीप,गंदगी,व मांस की,वहां थैली थी,
 वहां फैली थी मारा-मार,
 दुष्ट आत्माएं करती थी चीत्कार,
 सब एक दूसरे के लहू के प्यासे,
 हाथों में उनके, रक्तरंजित गंडासे,
 एक क्षण भी वहां रुकना अब मुश्किल था,
 चलो प्रभु अब स्वर्ग लोक,उसका बार-बार यही कहना था,
 लेकर यम फिर उस आत्मा को,पहुंचे फिर स्वर्ग लोक,
 धरती के ऊपर विराजमान था यह अद्भुत दिव्य लोक,
 द्वार खोलते ही सैकड़ो सेवक, वहां उपस्थित थे,
 गुलाब जल,व सुगंधित माला,उनके हाथों में सुशोभित थे,
 गजब के आसन,मधुर गायन, नृत्य करती सुंदर अप्सरायें थी,
 पवित्र वातावरण,स्वादिष्ट व्यंजन, सारी सुख सुविधायें थी,
 चारों ओर अद्भुत प्रेम का वातावरण,
 चारों तरफ सुख ही सुख, दुख का ना कोई आवरण,
 जाने को वहां से दिल ना करता,
 उफ़!कैसा विचित्र सम्मोहन,
 झंझोड़ कर उस आत्मा को बोले यम,चलते हैं अब यम लोक,
 देख के तुम्हारे कर्मों के,बही खाते,तय करते तुम्हें जाना किस लोक,
 तब थर्र-थर्र करके काँपने लगी आत्मा,
 याद आए तब उसको परम परमात्मा्,
 जाना उसे किस लोक,उसे अब यह ज्ञान था,
 फिर भी,सारी उम्र ना जानें,वह क्यों अनजान था,
 हम सब का हाल भी है वैसा,
 मिलता फल वहां जैसे को तैसा,
 दान-पुण्य,संतोष,प्रभु भक्ति,
 आसान होती है इनसे, प्राणों की मुक्ति,
 दूसरों की सेवा,मदद व अहंकार से दूरी,
 जो करें ईश्वरभक्ति,उनकी हर इच्छा होती है पूरी,
 मन में अगर, "परम आनंद और संतोष "है,
 सबसे सुखी, और स्वर्ग लोक,उसके लिए फिर यही है.










Saturday, December 7, 2024

"ना"-कहना

इस भागा-दौड़ी वाली जिंदगी में हर इंसान भाग रहा है. कोई भी एक दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहता. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, मनुष्य को अपने घर,परिवार, समाज,बिरादरी, इत्यादि में मिलकर रहना पड़ता है. यह एक अच्छी बात है. आजकल किसी को एक दूसरे की आवश्यकता कब पड़ जाये,यह कहा नहीं जा सकता. पारिवारिक और सामाजिक माहौल में परस्पर प्रेम,मेलजोल,व एक दूसरे का सम्मान करते हुए ही,इंसान का विकास संभव है. कोई आपसे कुछ मदद मांगे तो उसकी मदद करने में कोई बुराई नहीं है. हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए. परंतु यदि कोई बार-बार आपसे मदद मांगे और यह उसकी आदत बन जाए तो ?
 इसी प्रकार समाज में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे सब सज्जनता की दृष्टि से देखते हैं. ये लोग होते भी सभ्य और सीधे हैं. ऐसे लोग हर समाज और हर जगह मिल ही जाते हैं.
 परंतु इनका यही सीधापन,अक्सर इनके लिए एक चुनौती बन जाता है.इनके सरल स्वभाव की वजह से लोग इनसे अपना हर काम निकलवाना चाहते हैं, फिर चाहे वो घर हो, समाज हो,या ऑफिस हो. बार-बार इन पर हर काम,(चाहे वह दूसरे का हो),का इतना बोझ डाल दिया जाता है,कि व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है. कुछ लोग मदद के नाम पर,दूसरे का पूरा वक्त ही खराब कर देते हैं. उन्हें इस बात का कोई एहसास भी नहीं होता. ऐसी परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति को,"ना",कहना सीखना चाहिए. "ना" कहने से उस व्यक्ति का, " स्वाभिमान "भी बना रहता है. अपने मन में कोई ग्लानि भी नहीं रखनी चाहिए, कि सामने वाला मेरे "ना", कहने से क्या सोचेगा. हर काम के लिए किसी को आश्वासन देने से अच्छा है कि एक बार "ना"कहना. "ना" मतलब "ना".
 इस प्रकार आप एक बार ही बुरे बनोगे, परंतु सामने वाला व्यक्ति भी अगली बार के लिए सचेत हो जाएगा." ना "कहने से आप गिरते, नहीं बल्कि आपका कद और भी बढ़ता है. लोग इसे आपका ईगो (अहंकार),भी समझ सकते हैं, परंतु यह आपके लिए अच्छी बात है.
 अति हर चीज की बुरी होती है. अपनी शर्म, झिझक,को छोड़कर एक बार "ना" तो कहिए. आपको अपने जीवन में बदलाव अवश्य दिखाई देगा. यह बदलाव आपके लिए सकारात्मक और अच्छा ही होगा. परंतु हां, हर काम के लिए "ना" नहीं कहना, यह आपको निर्धारित करना है. आपको अपने लिए एक लक्ष्मण रेखा खींचनी पड़ेगी. आपको उस रेखा के पार नहीं जाना है, फिर चाहे सामने कोई भी हो.

हिटो (चलो) पहाड़

चलो अब लौट चलते हैं,                       अपनी पुरानी राहों में,
 पहाड़ों के दिल से उठी चीत्कार, लौट आओ तुम मेरी सूनी बाहों में,
 चलो दोस्तों फिर हिटो (चलो) पहाड़.
 हमें बुलाये पहाड़ का पानी,
 ठंडी ठंडी सर्द जवानी,
 मीठे-मीठे गीतों की रवानी,
 भरके अपनी आंखों में,नम पानी,
 चलो दोस्तों फिर हिटो (चलो )पहाड़.
 मंदिरों की घंटियां भी,रही हमें पुकार,
 पितरों के थान भी,कर रहे सीत्कार,
 ईष्ट देवों का नाम लेने,फिर चले आओ एक बार,
 पवित्र यह देवभूमि,जो बुलाए हमें बारम्बार,
 चलो दोस्तों फिर हिटो (चलो) पहाड़.
 नौलों का पानी मचल-मचल,
 गगरी में भरने को है बेताब,
 कब पियोगे मुझे ? कब भरोगे मुझे ?
 कोई तो दे दो, इन्हें जवाब,
 चलो दोस्तों फिर हिटो (चलो )पहाड़.
 खेतों और जंगलों का, फर्क मिट गया,
 इंसानों को छोड़,जंगली जानवर यहां पनप गया,
 पूर्वजों ने जोता था, जो खेत, आज वो बंजर हो गया,
 फलों के पेड़ पूछे, मुझे तोड़कर खाने वाला, आज कहाँ खो गया ?
 चलो दोस्तों फिर हिटो (चलो) पहाड़.
 इनके( पहाड़ों के) दुख,दर्द,वेदना,को हमें ही समझना होगा,
 क्या कहना चाहते हैं ये, हमें ही सुनना होगा,
 इनके दिल से आई है यह आवाज,
 बच्चों का बचपन,यहाँ फिर से लौटाना,
 मेरी मिट्टी में इन्हें खिलाना,
 मेरे पेड़ों पर झूला-झूलाना,
 ग्वाले भेजना, शैतानियां करवाना,
 छुप-छुप के मेरी ककड़िया भी चुरवाना,
 मेरी बंजर भूमि पर, हरियाली का हल चलाना,
 खूब मेहनत करना,और अपना पसीना बहाना,
 मेरे(पहाड़ के) दिल में, दर्द बहुत है
 तुम आकर,मेरे घाव भर जाना 
 तुम आना, तुम जरूर-जरूर आना,
 चलो दोस्तों फिर हिटो (चलो )पहाड़ I






Friday, December 6, 2024

"जिंदगी"क्या है?

जिंदगी क्या है?, क्या कभी किसी ने यह सोचा है,
 इसका जवाब सबके लिए, अपने-अपने ढंग से अलग-अलग हो सकता है,
 "जन्म और मौत",के बीच का वक्त, बस सबने इतना जाना है.
 हंसाती है,तो रुलाती भी है,ये जिंदगी,
 अपनी भी है, तो पराई भी है,ये जिंदगी,
 खुशियों का समुद्र तो, दुखों का पहाड़ है, ये जिंदगी,
 कभी सफलता तो,कभी असफलताओं का नाम है ये जिंदगी,
 एक शराबी के लिए, शराब है ये जिंदगी,
 एक ज्ञानी के लिए, उसका ज्ञान है ये जिंदगी,
 जिसने इसको जीना सीखा, उसका तो ठीक,
 वरना बहुत ही बेहरम,और खराब है, ये जिंदगी.
 पंख लगा के कब बीत गया बचपन,
 संगी-साथी,खेल खिलौने,यही तो था छुटपन,
 हर दिल में प्यार था,और था अपनापन,
 सब मिलजुल कर सजाते थे खुशियों का उपवन.
 लड़कपन बीता,आया फिर जीवन का वो दौर, 
 भागम-भाग मची थी,जहां चारों ओर,
 एक संघर्ष, मुकाबला,और आगे निकलने की, लगी थी दौड़,
 अब अपनों के लिए,अपने पास,समय की कमी थी,
 वाह रे जिंदगी,यह भी कैसी घड़ी थी!
 समय का चक्र थोड़ा आगे घूमा,
 जिंदगी अब,"जवानी और बुढ़ापे" के बीच खड़ी थी,
 बहुत सी बातें,अब समझ में आने लगी थी,
 जिंदगी की रफ्तार में थोड़ी कमी थी, परंतु मंजिल अभी,दूर खड़ी थी,
 कुछ खुशियों,कुछ दुखों के साथ,जिंदगी फिर,आगे बढ़ती चली थी.
 वक्त का पहिया,फिर आगे घुमा,
 अब इस पड़ाव पर,जिंदगी खड़ी थी,
 कुछ अब ना याद रहे,मुश्किल बड़ी थी   कमजोर और जर्जर" मेरी काया हो चली थी,
 जो कभी जमाने, और चुनौतियों से लड़ी थी.
 और अंत में,अब आ ही गई वह घड़ी, आखिरकार,
 मृत्युसैया पर मैं लेटा था,सगे संबंधी मातम के लिए थे तैयार,
 इंद्रियां मेरी क्षीण होने लगी, छाया आंखों के आगे अंधकार,
 कुछ क्षण तो ठहर जा ऐ जिंदगी,मन ही मन मैं,करूं विचार,
 पर हाय !आज जालिम थी ये,मैं था बिल्कुल लाचार,
 देह से निकली, उड़ चली फिर वो,पंख पसार,
 एक नये मिलन के लिए,पीछे छोड़ा यह सारा संसार.
 सारी बातों का निकलता एक ही सार,
 जज्बातों का सैलाब है,तो तपती रेगिस्तान है,
 बंजर धरती में नई पौध,नई उमंग, यही तो इसकी पहचान है.
 जब तक जिंदा है,तब तक,पल-पल रूप बदलती हैं ये जिंदगी,
 सबके जीवन में,अलग-अलग रंग भरती है ये जिंदगी,
 सच्चाई तो केवल एक है,                     इसका एक रूप है,एक ही रंग,               किसी से भेदभाव न करना,
 यही तो है इसका ढंग,
 जीवन के अंतिम पड़ाव में,जब जिंदगी साथ छोड़ देती है,
 तब आकर मौत,कफ़न ओढ़ाकर,अपने आगोश में समेट,ले जाती है,
 यही सत्य है, यही फसाना,
 इस अंतिम सफर में,सभी को है बारी-बारी जाना I
 जीवन का अंतिम सत्य, "मौत "है I




 





Thursday, December 5, 2024

अपने काम में जोखिम( रिस्क )उठाना

हमें अपने जीवन में कभी ना कभी जोखिम जरूर उठाना चाहिए. कभी कुछ ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती है, कि हमारे पास जोखिम उठाने के अलावा, और कोई रास्ता नहीं बचता है, और हमें जोखिम उठाना ही पड़ता है. एक हद तक देखा जाए तो यह ठीक ही है. चुनौतियां हर इंसान की जीवन में होती है, इन चुनौतियों को हमें, "सकारात्मक तरीके" से लेना चाहिए. चुनौतियों के बीच में हमें, जोखिम उठाना ही पड़ेगा, तभी हम इनको हरा पाएंगे. जोखिम उठाने से हमें,या तो, जिंदगी में,"जीत" मिलती है, या फिर एक," नई सीख", मिलती है. यह नई सीख हमारे अंदर, जीतने का जज्बा पैदा करती है.
 वास्तव में जिंदगी में, जोखिम ना उठाना ही, सबसे बड़ा जोखिम है. हर इंसान के कार्यक्षेत्र  में एक सेफ जोन,(सुरक्षात्मक क्षेत्र) होता है, वह इसी जोन के दायरे में कार्य करता है. इस जोन में,"गलती के अवसर "भी कम होते हैं, और , "प्रगति के अवसर" भी कम होते हैं.
 इस सुरक्षात्मक जोन से बाहर निकलकर, अपने ज्ञान, अनुभव, और,कार्य दक्षता, के आधार पर जोखिम उठाकर, उस काम को कुछ नए तरीके,और,मौलिकता के साथ किया जा सकता है.जोखिम उठाने से हमें उस कार्य में," दक्षता" व," कुशलता" प्राप्त होती है. साथ ही यह कार्य में,एक नई ऊर्जा और नयापन भी लाता है.
 जोखिम किसी भी क्षेत्र में लिया जा सकता है, चाहे व्यापार हो, खेल जगत हो,कला हो या विज्ञान हो. एक जगह डूबने से तो अच्छा है कि,तैरने की एक नई कोशिश करी जाए, क्या पता तैर कर पार हो ही जाएंगे.
 विज्ञान जगत में आए दिन नए-नए अविष्कार होते रहते हैं. इन आविष्कारों से एक नई कामयाबी, और नई-नई जानकारियां हमें प्राप्त होती रहती है. ये आविष्कार मानव के लिए फायदेमंद भी होते हैं. यह आविष्कार भी तभी बनते हैं जब उस क्षेत्र में,महान वैज्ञानिकों ने बड़े से बड़ा जोखिम उठाया.
 उदाहरण स्वरूप हमारा देश, "भारत "चांद के, "दक्षिणी ध्रुव", पर पहुंचने वाला पहला देश बना था. भारत ने,"चंद्रयान-3"को, दक्षिणी पोल पर भेज कर, यह कामयाबी प्राप्त की थी. परंतु इससे पहले भारत का, "मिशन चंद्रयान 2",फेल हो गया था.यहीं से वैज्ञानिकों ने एक नया, और बड़ा जोखिम उठाया, और बड़ी कामयाबी हासिल की.
 दुनिया में जितने भी बड़े-बड़े लोग चाहे,पूंजीपति, व्यापारी,व्यवसायी,या राजनेता हो,सब जोखिम उठा कर ही अपने-अपने फील्ड में कामयाब हुए हैं. इतिहास भी गवाह है,जिसने जितना बड़ा जोखिम उठाया, वह उतना ही अधिक कामयाब हुआ है.
 अर्थशास्त्र में जोखिम दो प्रकार के होते हैं, "व्यवस्थित "और,"अव्यवस्थित". व्यवस्थित जोखिम का संबंध पूरे बाजार से होता है, इसके पीछे बड़े-बड़े कारक होते हैं, इसलिए इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. पूरा बाजार ही इसकी चपेट में आता है.
 अव्यवस्थित जोखिम का संबंध,किसी खास कंपनी, संगठन, या,क्षेत्र विशेष से होता है. इसके पीछे छोटे कारक होते हैं, इसलिए इसको नियंत्रित किया जा सकता है.
 सार यही है कि,जोखिम उठाकर, कामयाबी के एक अलग स्तर को,छुआ जा सकता है.


Wednesday, December 4, 2024

मातृशक्ति

तू आदि है, तू ही अनंत,
 तू प्राण है,तू है विहंग,
 सब वेदों का सार तुम्हीं हो,
 गंगा की पावन धार तुम्हीं हो,
 हे मातृशक्ति तुझे कोटि-कोटि नमन.
 "वेदो" और "पुराणो"का,ज्ञान तुम्हीं हो,
 नवचेतन संसार का आधार,तुम्हीं हो,
 महादेव की आदिशक्ति हो तुम, गति और प्रकाश भी तुम्हीं हो,
 हे मातृशक्ति तुझे कोटि-कोटि नमन.
 समस्त सृष्टि की रचयिता हो तुम,
 अनेक रूपों में कण-कण में व्याप्त हो तुम,
 ऊर्जा और विज्ञान हो तुम,                                दिशा और आसमान हो तुम,
 हे मातृशक्ति तुझे कोटि-कोटि नमन.
 ईश्वर को भी इस जगत में पड़ी जरूरत मातृशक्ति की,
 कैसा वह दर्शनीय दृश्य हे देवी, जब सब देवों ने तुम्हारी भक्ति की,
 ईश्वर भी झुके,शीश झुका कर,तेरे पावन चरणों में,
 दिए उन्हें ढेरों वरदान, तुमने अपने वर्णों में,
 हे मातृ शक्ति तुझे कोटि-कोटि नमन.
 सिर पर हमारे,हमेशा बनाए रखना,हे माँ अपनी छाया,
 एक तू सच्ची माँ,बाकी सब झूठी मोह-माया,
 सद् मार्ग पर चलते रहे हम,है बस इतनी आस, हे माँ,
 बुराइयों से दूर रहे हम, रखना अपने दिल के पास, हे माँ I
 या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता.          नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः I

Monday, December 2, 2024

सीखो "ना" कहना

मैं सीधा-साधा,सरल,सज्जन व्यक्ति था.
 सभी के काम आना,                                 हर मुश्किल में साथ देना, मुझे बहुत भाता था.
 लोग भी अपने मतलब के लिए, प्यार से  बुलाते मुझे,अपने पास,
 अपने काम निकाल लेते मुझसे,चाहे दिन हो या रात.
 शुरू-शुरू में, यह सब मुझको बहुत भाता था,
 दूसरों का काम होता, मैं गदगद् हो जाता था. परंतु मेरी इसी आदत को जान,
 लोगों ने बना दी मेरी गलत पहचान,
 अपने सभी कामों का, वह मुझ से लेते थे संज्ञान,
 मैं बेचारा भोल-भाला,इन सब बातों से अंजान.
 धीरे-धीरे, बाद -बाद में एहसास हुआ,
 क्या सही,क्या गलत,मेरे साथ हुआ,
 दे रहे थे,ये लोग,मानसिक वेदना मुझे,
 क्या इन्हें कभी मेरी पीड़ा का एहसास हुआ?
 मैं सीधा-साधा सरल सा था,
 दूसरों की मदद,अपने संस्कारों में था,
 जान बूझकर अपनों से धोखा खाना,वो मेरा प्रेम था,
 पर इन लोगों ने मेरी बात को गलत ढंग से समझा था,
 हर काम मुझ से निकलवाने की, यह उनकी गजब सोच का जज्बा था.
 परंतु अब और नहीं,
 अब और नहीं झेल सकता मैं,
 तुम भी समझो,फरिश्ता नहीं इंसान हूं मैं,
 बार-बार अपने धैर्य,सब्र,की परीक्षा नहीं दे सकता है मैं,
 तुम्हारे कहने पर,रात को दिन,और,दिन को रात,नहीं कह सकता मैं,
 इस अजब कश्मकश में,अब नहीं उलझ सकता हूं मैं.
 अब मैं तुम्हारे लिए खराब हो जाऊंगा,
 तमाम लांछन लगाओगे,और मैं बदनाम हो जाऊंगा,
 कटने लगोगे तुम मेरी परछाई से,
 और मैं एक बदनुमा दाग़ हो जाऊंगा.
 परंतु अब मुझे फर्क नहीं पड़ता है,
 क्योंकि मैंने अब, "ना"कहना,सीख लिया है,
 मंझधार में फसी नाव को,मैंने निकालना सीख लिया है,
 अपने स्वाभिमान को ऊपर उठा के रखना,
 मुझे यह सबक मिल गया है,
 मैं इंसान हूं, अब मैंने "ना",कहना सीख लिया है.                                                           अब मैंने,"ना "कहना सीख लिया है.




शब्द

लिखने के लिए क्या चाहिए बस, "शब्द ",।
 शब्द से ही शुरुआत होती है,किसी भी विषय की।हर चीज को समझने,देखने,और कहने के लिए,अलग-अलग शब्द हैं।अपने शब्दों के माया-जाल में,अपने पाठकों को बाँधना, एक कुशल लेखक का काम है। शब्द रचना ही तो लेखक का रचा हुआ संसार है। शब्दों में सच्चाई, गहराई,अपनापन,और ऐसा दृष्टिकोण होना चाहिए कि हम सही और गलत तथ्यों में अंतर कर पाए। शब्दों में स्पष्टवादिता का होना आवश्यक है, हड़प्पा मोहनजोड़ारो,मेसोपोटामिया,जैसी प्राचीन सभ्यता और संस्कृतियों का वर्णन अलग-अलग शब्दों में उल्लेखित है।
 शब्दों के ऊपर एक छोटी सी लिखित कविता है।
                         शब्द

 शब्द हूँ मैं,आदि अनंत हूं मैं,
 जब से सभ्यताये बनी,
 तुम्हारा अस्तित्व हूं मैं.
 मेरा ना कोई एक रूप,
मेरा ना कोई एक रंग,
 लिबास मेरा बदल जाता,
 ढल जाता तुम्हारे संग.
 अलग-अलग शिलाओं में मैं हूंँ,
 भिन्न-भिन्न वर्णमालाओं में मैं हूँ,
 चार कोस पर जो बदल जाए,
 उस पानी की जलधाराओ में हूँ।
 मैं आदिम,मैं प्राचीन हूँ,
 जग तक तुम्हारी बात पहुंचाये, मैं वो जज्बात हूंँ,
विश्व के हर प्राणियों को आपस में जोड़ता हूंँ,
 एक दूसरे की भाषा संस्कृति से अवगत कराता हूंँ,
 लेकर चलता हूं मैं नूतन विचार,
 बदले मेरा रूप बार-बार।
 मैं शब्द हूँ, मैं शब्द हूँ.
 वेद पुराणों,धर्म शास्त्रों में मैं हूँ,
 बाइबिलों,तो कुरानों की आयतो मैं हूं,
   मैं धर्म शास्त्रों का पवित्र विचार,
 मानव सभ्यता को और करूँ प्रखार।
 बोली को उकरने का,माध्यम मैं हूँ,
 भाषाओं के महासागर में उतरने वाला नाविक मैं हूँ,
 व्याकरण की छांव में बैठा पथिक मैं हूं,
 धवनियों को जो जोड़े,वह अडिग मैं हूँ,
 रूढ़ भी मैं हूँ, यौगिग भी मैं हूँ,
 मैं कर्म में,और मैं,धर्म में भी हूंँ,
 मैं शब्द हूँ, मैं शब्द हूँ I



लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...