इसका जवाब सबके लिए, अपने-अपने ढंग से अलग-अलग हो सकता है,
"जन्म और मौत",के बीच का वक्त, बस सबने इतना जाना है.
हंसाती है,तो रुलाती भी है,ये जिंदगी,
अपनी भी है, तो पराई भी है,ये जिंदगी,
खुशियों का समुद्र तो, दुखों का पहाड़ है, ये जिंदगी,
कभी सफलता तो,कभी असफलताओं का नाम है ये जिंदगी,
एक शराबी के लिए, शराब है ये जिंदगी,
एक ज्ञानी के लिए, उसका ज्ञान है ये जिंदगी,
जिसने इसको जीना सीखा, उसका तो ठीक,
वरना बहुत ही बेहरम,और खराब है, ये जिंदगी.
पंख लगा के कब बीत गया बचपन,
संगी-साथी,खेल खिलौने,यही तो था छुटपन,
हर दिल में प्यार था,और था अपनापन,
सब मिलजुल कर सजाते थे खुशियों का उपवन.
लड़कपन बीता,आया फिर जीवन का वो दौर,
भागम-भाग मची थी,जहां चारों ओर,
एक संघर्ष, मुकाबला,और आगे निकलने की, लगी थी दौड़,
अब अपनों के लिए,अपने पास,समय की कमी थी,
वाह रे जिंदगी,यह भी कैसी घड़ी थी!
समय का चक्र थोड़ा आगे घूमा,
जिंदगी अब,"जवानी और बुढ़ापे" के बीच खड़ी थी,
बहुत सी बातें,अब समझ में आने लगी थी,
जिंदगी की रफ्तार में थोड़ी कमी थी, परंतु मंजिल अभी,दूर खड़ी थी,
कुछ खुशियों,कुछ दुखों के साथ,जिंदगी फिर,आगे बढ़ती चली थी.
वक्त का पहिया,फिर आगे घुमा,
अब इस पड़ाव पर,जिंदगी खड़ी थी,
कुछ अब ना याद रहे,मुश्किल बड़ी थी कमजोर और जर्जर" मेरी काया हो चली थी,
जो कभी जमाने, और चुनौतियों से लड़ी थी.
और अंत में,अब आ ही गई वह घड़ी, आखिरकार,
मृत्युसैया पर मैं लेटा था,सगे संबंधी मातम के लिए थे तैयार,
इंद्रियां मेरी क्षीण होने लगी, छाया आंखों के आगे अंधकार,
कुछ क्षण तो ठहर जा ऐ जिंदगी,मन ही मन मैं,करूं विचार,
पर हाय !आज जालिम थी ये,मैं था बिल्कुल लाचार,
देह से निकली, उड़ चली फिर वो,पंख पसार,
एक नये मिलन के लिए,पीछे छोड़ा यह सारा संसार.
सारी बातों का निकलता एक ही सार,
जज्बातों का सैलाब है,तो तपती रेगिस्तान है,
बंजर धरती में नई पौध,नई उमंग, यही तो इसकी पहचान है.
जब तक जिंदा है,तब तक,पल-पल रूप बदलती हैं ये जिंदगी,
सबके जीवन में,अलग-अलग रंग भरती है ये जिंदगी,
सच्चाई तो केवल एक है, इसका एक रूप है,एक ही रंग, किसी से भेदभाव न करना,
यही तो है इसका ढंग,
जीवन के अंतिम पड़ाव में,जब जिंदगी साथ छोड़ देती है,
तब आकर मौत,कफ़न ओढ़ाकर,अपने आगोश में समेट,ले जाती है,
यही सत्य है, यही फसाना,
इस अंतिम सफर में,सभी को है बारी-बारी जाना I
जीवन का अंतिम सत्य, "मौत "है I
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