सीधा-साधा,भोला-भाला,
दिल का था साफ,
सारी दुनिया से निराला।
बचपन में माँ गई थी छोड़,
मां की मृत्यु के बाद हो गया अकेला,
पिता का व्यवहार फिर हो गया सौतेला,
चाचा-चाची ने फिर,उसको पाला,
समझ कर अपना लाड़ला,
बचपन से कुछ कमियांँ, उसमें दिखने लगी थी,
स्वभाव उसका,थोड़ा गुस्स़ैल, थोड़ा शर्मीला,
औरो से था हटकर,बचपन उसका,
मिजाज बना फिर,उसका रंगीला।
पढ़ाई-लिखाई में झुकाव ना था,
स्कूल से कोई लगाव ना था,
बौद्धिक स्तर उसका,बिन मांँझी नाव सा डोला,
पर दिल का साफ था,वह दिलवाला।
वक्त के साथ,उम्र भी उसकी बढ़़ रही थी,
तरुण जवानी भी, धीरे-धीरे चढ़ रही थी,
लोगों की मदद करना, जो बताया वो करना,
बिना स्वार्थ सभी का काम,करने वाला,
ऐसा था वो पागल मतवाला।
पूरे गांँव में उसकी,एक अलग पहचान बन चुकी थी,
किसी के लिए अच्छी,
तो किसी के लिए उपवास का पात्र,
बन चुकी थी,
ऊपर वाले के अलावा,कोई भी ना था,उसका दुख-दर्द सुनने वाला,
आंँसुओं को छुपाना सीख गया था,वो हिम्मतवाला।
कभी कोई अपने पुराने कपड़े दे देता,
कभी-कभी कोई खाना भी,उसको खिलाता,
हंँस-हंँस के भोग लगाता,वो हर एक निवाला,
खुश हो जाता फिर, उसको खिलाने वाला।
फटे पुराने कपड़ों में भी,खुश रहता था वो,
पैरों में जिंदगी भर,ना जूते-चप्पल कभी, पहना था वो,
ना धन-दौलत की चाहत,ना मोह-माया वाला,
जगमगाते सितारों में, ध्रुव तारे वाला।
वक्त का पहिया फिर आगे घूमा......
बालों में आ चुकी थी, अब सफेदी उसकी,
दिखने लगी थी,शरीर में कमजोरी भी उसकी,
टूटे पीले दांतों में,खीसें निपोरने वाला,
दर्पण जैसा साफ,आचरण वाला।
और फिर एक दिन,चला गया वो सबको हंँसाने वाला,
पत्थर को भी मोम जैसे,पिघलाने वाला,
उसकी मौत पर फिर,सब एक होये थे,
अपनों से ज्यादा, बाहर वाले वहाँ रोएं थे।
हर दूसरे गांँव में दोस्तों, वैसा आदमी मिल ही जायेगा,
किसी चीज का ना उसको लालच होगा,
बस अपनों के प्यार का भूखा होगा,
दुत्कारो मत, उन्हें प्यार दो,
अपनों ने जिन्हें छोड़ा,समाज से उन्हें जोड़ दो।
प्यार से गले लगाकर,कुशल-क्षेम उनकी पूछ लो,
जाना तो है एक दिन सभी को, कर्म अपने सुधार लो।