रहती थी एक दूसरे से,खफा-खफा,
फिर भी यह अजीब पहेलियांँ थी।
एक दिन किसी तीसरे ने,इन दोनों से पूछा,
तुम दोनों क्यों,एक दूसरे से अलग-अलग रहती हो?
बनाया तुम दोनों को ऊपर वाले ने,
आपस में तनकर,तुम दोनों क्यों,फिर यह दर्द सहती हो?
दोनों चुप थे,इस बात को लेकर,
मैं बेहतर या तू बेहतर,
बाकी सब बातों को छोड़,
यह कैसे जज्बात, यह कैसी अजब सी होड़।
थोड़ी चुप्पी, फिर जिंदगी बोली,
मैं अच्छी हूंँ, मैं सच्ची हूंँ,
जीवन जीना, सपने देखना,पूरे करना,मस्त- जिंदगी,हसीन सपने, सब कुछ तो मैं देती हूंँ।
मेरे होने से, चारों तरफ नजारे हैं,
बागों में मस्त बहारें हैं,
अंँबर में टिमटिमाते सितारे हैं।
चारों तरफ आहटें हैं,
दुनिया में मुस्कुराहटें हैं,
सोच समझ कर कह रही हूंँ,
मैं अच्छी हूंँ, मैं बेहतर हूंँ।
मौत तो बस रुलाती है,
नाते सभी तुड़ाती आती है,
सपने सभी छुड़ाती है,
जिंदगी ने अपनी बात रखी थी।
मौत अभी तक सुन रही थी,
अपनी बात रखने की,अब धुन जगी थी,
बोली मौत सुन जिंदगी, मैं रुलाती हूंँ,
तो क्या तू नहीं रुलाती?
इस पूरी दुनिया में कितनों को,
क्या भूखे पेट तू नहीं सुलाती,
हताशा और निराशा में,
दुख-दर्द,और कुंठाओं में,
दरकते रिश्ते, टूटते विश्वास,
चकनाचूर हुये सपनों में,
क्या मनुष्य की आंखों से नीर,
तुम नहीं बहाती?
अमीरी और गरीबी, जिंदगी की दो जिंदगानियों का,
जमीन-आसमान सा फर्क है, इन दोनों की कहाँनियों का।
टूटे ख्वाब, अधूरे सपने, रेंगती जिंदगी, पापी पेट की आग, गरीबों की कहानियाँ हैं,
सुनहरे सपने,ठांट-बांट,रंगीन मिजाज,
चिर-यौवन साथ, अमीर चिंगारियांँ हैं।
फिर आगे तनकर बोली मौत,
मैं कोई चेहरा नहीं बदलती,
कोई प्राणी, कैसा भी हो,मेरे सामने सब एक समान,
पंचतत्वों मे विलीन होना है सबने,
इसलिए मैं हूंँ महान।
अब निर्णय की बारी थी,
तीसरे शख्स ने कर ली तैयारी थी,
तुम दोनों आपस में क्यों लड़ते हो?
एक-दूसरे के पीछे क्यों पड़ते हो?
इस लोक से परलोक, जाने का खेल है सारा,
मोह-माया, प्रेम-बंधन, अपना पराया, मिथ्या है सारा।
जिंदगी अगर आई है,तो मौत भी आएगी,
यहांँ कोई ना रह पाएगा,आगे करम गति बताएगी,
जीवन में ईश भक्ति है,तो जीवन में संतोष है,
ना कोई कष्ट, ना कोई चिंता,और ना कोई दोष है।
मौत सभी की आनी है,
यह बात जानी और पहचानी है,
कर्म मानव के अच्छे हैं तो,
हम ईश्वर के सच्चे हैं तो,
मोक्ष मिलेगा, हरि चरणों में,
मुक्ति मिलेगी, प्रभु भक्ति में।