सारी महिलाएंँ पगली को लेकर एक जगह पर आ गई थी। यह जगह नदी के किनारे वाली थी। पगली को यह देखकर हैरानी हुई कि पूरा गांँव यहांँ जमा हो रखा था। इसी वजह से पूरे गांँव में सन्नाटा पसरा हुआ था।
भीड़ को तितर-बितर करके वह महिलाएंँ पगली को सबसे आगे ले आई। आगे पहुंँचकर,वहांँ का मंजर देखकर,पगली के तो जैसे होश ही उड़ गए। वहांँ का नजारा देख पगली को चक्कर आ गए और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। गांँव वालों ने उसके मुख पर पानी की छीटें मारी,उसको झकझोरा,तब जाकर उसको होश आया। पगली के सामने उसके बच्चे का शव पड़ा हुआ था। पगली ने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। पगली की चीखों,और उसके रोने की आवाजों ने,गांँव वालो के कलेजे को चीर दिया था। सबकी आंँखें यह देखकर नम हो चली थी। अधिकतर लोग यह जानकर भी हैरान हो रहे थे कि,आज पगली पल भर में सब कुछ जान रही थी,और समझ रही थी। यह कैसे संभव था?
रोते-रोते पगली ने एक रहस्यो्घटान से पर्दा हटाया। हाय मेरे लाल तेरे लिए तो, तेरी मांँ पगली बन गई थी, इस जालिम समाज,और पत्थर दिल लोगों के बीच में, तुझे कहांँ लेकर जाती मैं। तेरे लिए आश्रय और छत के लिए तेरी मांँ पगली बन गई थी, पर अब मेरा क्या होगा? हे विधाता तो क्या उसने अपने जीवन के पिछले 6-7 वर्ष पगली होने का स्वांग किया था। कितना आश्चर्यजनक था यह!
पर अब उसके लिए सब कुछ खत्म सा हो गया था। उसके जीवन का एकमात्र सहारा उसका पुत्र ही अब इस दुनिया में नहीं था।
उसके पुत्र की मृत्यु भी बड़ी संदिग्ध परिस्थितियों में हो रखी थी। आखिर इतना छोटा बालक अकेले नदी किनारे क्या करने गया था?जहांँ नदी के जल का प्रवाह सबसे अधिक था,वह वहांँ तक कैसे पहुंँचा था?
इन प्रश्नों के उत्तर आने अभी बाकी थे।
अपने बच्चे के शव पर विलाप करते-करते पगली के दिल का रोष बार-बार बाहर निकलता रहा। वह बार-बार अपने परिवार को ऐसी बद्दुआयें दे रही थी कि सुनने वालों के कानों में शीशा पिघल गया था। थोड़ी देर बाद विचित्र रूप से पगली का अट्टहास शुरू हो गया था। पहले तो गांँव वालों को कुछ समझ में नहीं आया। फिर उन्होंने देखा पगली अब अपने बेटे के शव के चारों तरफ नाचने लगी थी। वो अब सच में पगला चुकी थी।
हे परमात्मा!यह कैसा खेल रचा था तुमने।
वहांँ का मंजर बहुत ही भयानक हो चला था। पगली के परिवार वाले भी,वहांँ पर आ चुके थे। इतने बड़े प्रकरण का भी,उन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था।आनन-फानन में उन लोगों ने बच्चे को उठाया और उसको उचित स्थान पर दफन कर दिया।पगली अब सच में पागल हो चुकी थी। उसकी जीने की इच्छा अब मर चुकी थी। दिन भर वह नदियों पहाड़ों,वीरानों में घूमती रहती थी। कभी कभार रह-रह कर उसे कुछ याद आता,फिर वह कलेजा चीर कर रोती,और सब कुछ धूमिल हो जाता था।
उसे अब किसी भी चीज से भय नहीं लगता था। वह रात में भी,तूफानों और बारिशों में, जंगलों में भटकती रहती थी। ना उसे जंगली जानवरों का भय था,ना किसी और चीज का। और एक दिन आखिरकार वही हुआ, जिस चीज का डर था।
और फिर एक दिन अचानक क्या हुआ था?
क्या हुआ पगली की जिंदगी के साथ?
क्या कभी पगली के साथ न्याय हुआ?
क्या हुआ पगली के गुनहगारों के साथ?
यह हम कहानी के अंतिम भाग में पढ़ेंगे....