युवक और उस अनजान व्यक्ति का सफर जारी था। मंजिल अभी दूर थी और दोनों बस चले ही जा रहे थे। जहांँ युवक व्यक्ति के तेज चाल की वजह से परेशान हो चला था,वही वह व्यक्ति मस्त होकर,बस चुपचाप आगे की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। उनके सफर के दौरान बीच में कितने गांँव भी पड़ रहे थे। युवक को तो इन गांँवों के नाम भी पता नहीं थे,पर हैरानी की बात यह थी कि वह व्यक्ति, किसी भी गांँव को बीच में से पार नहीं कर रहा था। मतलब यह था कि वह व्यक्ति बीच में पड़ने वाले गांँवो की सीमाओं के साथ-साथ ही चल रहा था, किसी भी गांँव को उसने लाँघा नहीं था।
इसी प्रकार एक गांँव की सीमा से गुजरते हुए युवक के हाथ पैर फूल गए थे,जब उसने देखा कि एक पहाड़ी भोटिया कुत्ता उन दोनों को देखकर,भौंकते हुए उनकी तरफ आने लगा था। पहाड़ों में भोटिया प्रजाति के कुत्ते काफी खतरनाक होते हैं। पहाड़ों में कहते हैं की, भोटिया नस्ल के कुत्ते, बाघ से अकेले लड़ सकते हैं। थोड़ी देर में वह कुत्ता भौंकते हुए उन दोनों के काफी करीब आ गया था, डर के मारे युवक के हाथ पैर कांपने लग गए थे। युवक तो मानो जैसे वहांँ जड़ हो गया था, तभी वह व्यक्ति,उस युवक के पास आया और रुक गया। इतने में वह खतरनाक कुत्ता भी वहीं पर आ गया, आगे फिर कुछ ऐसा हुआ कि युवक के होश ही उड़ गये।
युवक ने देखा कि जब वह भोटिया कुत्ता उस व्यक्ति के समीप आया,तो उसने भौंकना और गुर्राना छोड़ दिया था। उल्टा वह पूंँछ हिला हिलाकर उस व्यक्ति के चरणों में लोटपोट होने लगा था। मानो वह कुत्ता उस व्यक्ति को पहले से पहचानता हो। उस व्यक्ति ने भी कुत्ते को बड़े ही प्यार से सहलाया और पुचकारा, और फिर कुत्ता वहांँ से वापिस चला गया। कभी-कभी शायद जानवर वह चीजें देख लेते हैं,जो हम इंसान नहीं देख पाते।
और फिर से दोनों आगे अपने सफ़र में बढ़ चले। आगे सफर के दौरान उस व्यक्ति ने फिर युवक को दो बार पानी पिलाया। हैरानी की बात यह थी कि युवक को दोनों ही बार फिर से पानी पिलाने के लिए कहना नहीं पड़ा। दोनों बार जल स्रोत पूर्णत प्राकृतिक और स्वच्छ थे। युवक के दिमाग में एक पल के लिए तो फिर से आया कि इस व्यक्ति को इन जल स्रोतों के बारे में कैसे पता होगा? परंतु थोड़ी ही देर में फिर से यह सवाल उसके दिमाग से हवा हो गया।
सफर के दौरान अंतिम बार दोनों ने जहांँ पर पानी पिया था, वहांँ पर उस व्यक्ति ने युवक से कहा कि, मेरे निरंतर तेज चलने की वजह से तुम्हें मुझ पर क्रोध भी काफी आ रहा होगा, परंतु अगर अपनी मंजिल को पाना है तो लगातार कोशिश करके तेजी से उसकी तरफ बढ़ना चाहिए। निरंतर चलते और बहते रहना चाहिए फिर चाहे वह व्यक्ति हो,या यह निर्मल जल हो। यह उस व्यक्ति की,उस युवक को एक बहुत बड़ी सीख थी। फिर से दोनों,आगे अपनी मंजिल पर बढ़ चुके थे।
आगे उस व्यक्ति ने कहा कि अब मंजिल काफी नजदीक है, इतना सुनते ही उस युवक को काफी अच्छा महसूस हुआ। उस व्यक्ति के बारे में भी उसके मन में जितना क्रोध था,वह भी दूर हो चुका था। उनकी यात्रा अब अंतिम पड़ाव पर थी। दोनों नीचे से ऊपर पहाड़ की तरफ आ रहे थे, ऊपर पहाड़ पर चढ़ते हुए व्यक्ति ने,युवक से कहा कि ऊपर सड़क मार्ग शुरू हो जाएगा,और तुम्हारे गांँव से लगता हुआ गांँव भी यहांँ पर है। यहांँ पर दोनों गांँव की सीमाएं मिलती हैं,और तुम्हें यहांँ से अपने गांँव का रास्ता भी पता है,जल्दी से ऊपर आ जाओ। इतना कहकर वह व्यक्ति ऊपर सड़क मार्ग पर आ चुका था। थोड़ी देर के पश्चात वह युवक भी ऊपर सड़क मार्ग पर चढ़ चुका था, परंतु यह है क्या ! उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी, वह व्यक्ति वहांँ पर नहीं था।
युवक के सामने खड़ा पहाड़ था,और दोनों तरफ सर्पिली सड़क थी, उस व्यक्ति का दूर-दूर तक कोई नामोंनिशान नहीं था। युवक ने उस व्यक्ति को बहुत ढूंढा,पर वह नहीं मिला। युवक ने सोचा उस व्यक्ति को कैसे मालूम था, कि यहांँ से मुझे अपने घर का रास्ता पता है। परंतु युवक को इस बात की खुशी थी,कि वहांँ से उसे अपने गांँव का रास्ता पता था। युवक ने अपने गांँव की तरफ दौड़ लगा दी, और थोड़ी ही देर में अपने घर पहुंँच गया। तब तक दोपहर का वक्त हो चुका था। गांँव में युवक की दादी जी रहती थी। युवक के चाचा जी भी पहले ही सुबह के वक्त पहुंँच चुके थे। थोड़ी ही देर में युवक ने अपने सफ़र की सारी कहानी बयां कर दी थी,परंतु युवक के स्वभाव में अजीब सी घबराहट और बेचैनी सी थी। युवक की बातें सुनकर उसकी दादी और चाचा जी के रोंगटे खड़े हो गए थे, तभी दादी ने बोला तू हाथ मुंँह धो कर आजा। युवक जैसे ही हाथ मुंँह धोकर आया,तो देखा कि उसकी दादी जी पूजा की थाली में थोड़ा सा भभूत लेकर आई है। दादी जी ने युवक के माथे पर भभूत लगाते हुए, घर के थान(मंदिर), के सामने हाथ जोड़कर,भूमियाँ बाबा का नाम लिया।भभूत लगाने के थोड़ी देर बाद युवक सामान्य सा हुआ, फिर दादी जी ने उससे पूछा कि क्या तुझे पता है वह व्यक्ति कौन था ? युवक ने ना में सिर हिलाया।
दादी जी ने आगे कहा अरे पगले वह व्यक्ति, स्वयं भूमियाँ बाबा थे, जिन्होंने वेश बदलकर तेरी मदद करी,तुझे तेरी गांँव की सीमा में छोड़ दिया। जब तूने परेशान होकर उनका पुकारा था तो उन्होंने तेरी पुकार सुन ली थी। इतना सुनते ही पहले तो युवक घबराया, फिर मंदिर में भूमियाँ बाबा का नाम लेकर नतमस्तक हो गया, आखिर हर किसी को भगवान के साक्षात दर्शन थोड़ी ही होते हैं।
हमारे पहाड़ों को यूंँ ही देवभूमि नहीं कहा जाता, जगह-जगह पर अलग-अलग देवी देवताओं,का निवास स्थान है। उन्हें सच्चे दिल से पुकारो तो वह सबकी सुनते हैं। यह कथा एक सत्य कथा है, इस कहानी का नवयुवक "मैं "स्वयं हूँ। भूमियाँ बाबा के साथ सफर, और उनके दर्शन मेरी व्यक्तिगत अनुभूति है।
जय भूमियाँ बाबा।