Saturday, January 25, 2025

एक शापित खानदान ---- भाग 4

एक शापित खानदान ------ भाग 4


 उन चीखों और आवाजों से सारा गाँव तो मानो जैसे नींद से जाग गया था। एक तरफ पागलों जैसी हंँसी थी, तो दूसरी तरफ कलेजा चीर रुदन। सारे गांँव वाले दौड़कर उस पेड़ की तरफ दौड़े, जहांँ रात को वह औरत और उसका बच्चा रुके थे। वहांँ पहुंँचकर उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी। वह औरत पागलों की तरह ठहाके लगाकर हंँसे जा रही थी। उसके बाल खुले और बिखरे हुए थे। ना जाने कितनी देर रोने वाली उसकी आंँखें, और अब इस तरह पागलों की तरह हंँसना, सब कुछ विरोधाभासी था। रुदन का स्वर उसके बालक का था। जिसे उसने नीचे जमीन पर रखा हुआ था। वह बेचारा भूख,  प्यास,और मौसम की मार से व्याकुल होकर रोए जा रहा था। गांँव वालों ने घबराते हुए उस औरत का हाल पूछा, पर यह क्या! वह तो बस अपनी धुन में ही मगन थी। किसी भी बात का वो जवाब नहीं दे रही थी,बस मुंँह में कुछ बड़बड़ा रही थी। अपने साथ घटी घटना से उसको मानसिक सदमा लग गया था। इस सदमे का असर यह हुआ कि वह मानसिक रूप से कमजोर हो गई थी। उसे कुछ भी याद नहीं था। बस हंँसना,बड़बड़ाना,ताली पीटना, और चीखना,वह यही सब कर रही थी। तरस खाकर गांँव वाले,उसको और उसके बच्चे को लेकर उसके घर आ गये। काश यह हिम्मत उन गांँव वालों ने पहले दिखाई होती।
 गांँव वालों के गुस्से,और उस औरत की बिगड़ी मानसिक हालात को देखकर उसके घर वाले भी घबरा गए थे। मजबूरी में उन्हें उन दोनों को घर में रखना पड़ा। पर अब हालात पहले से बदल गए थे। कभी पूरे घर-परिवार को अकेले संभालने वाली वह धार्मिक औरत, आज मजबूर और लाचार हो गई थी। वह पूरे घर में पागलों की तरह घूमती थी। कभी बिना बात के हँसती,तो कभी रोती रहती थी। बच्चे का भी उसको कुछ होश नहीं था। मानसिक तौर पर उसकी स्थिति काफी खराब हो गई थी। उसे अपनी सुध-बुध तक नहीं थी।
 धीरे-धीरे वह पूरे गांँव में पगली के नाम से पहचाने जाने लगी। उसका एक नया नामकरण हो चुका था। उसका नाम अब पगली पड़ चुका था। धूल,मिट्टी,गंदगी, में लिपटी रहने वाली पगली। भूख लगने पर खाना मिल गया तो ठीक, वरना वह कुछ भी खा जाती थी। उसकी स्थिति बड़ी ही दयनीय हो गई थी। धीरे-धीरे वक्त आगे गुजरता चला गया।अब वह बालक भी 6-7 वर्ष का हो गया था। वह जब पगली को मांँ कह कर बुलाता, तो बस वह उसको निहारती रहती, जैसे वह कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो। घर वालों के लिए अब वह पगली,एक आवारा पशु के समान थी। जब मन करता उसे जी भर के पीटते,जमीन पर खाना परोस कर देते।
 कभी-कभी उसे कितने दिनों तक, बंद कमरे में रस्सियों से बाँधकर रख देते थे। उस औरत का बहुत ही बुरा वक्त चल रहा था। उसकी जिंदगी मौत से भी भयानक हो गई थी। ना जाने उसे,किस जन्म का कष्ट भोगना पड़ रहा था। ऐसी नरकीय जिंदगी से तो मौत ही अच्छी थी।
 सामान्य दिनों की तरह एक दिन सवेरे-सवेरे वह औरत सो कर उठी। उसे पूरे घर में कोई भी नजर ना आया। घर में बड़ी अजीब सी शांति फैली हुई थी। उसका बेटा भी घर पर नहीं था। ना जाने पूरे घरवाले कहांँ चले गए थे। तभी वहांँ पर गांँव की कुछ महिलाएं आई। वह उसका हाथ पकड़ कर कहीं चलने के लिए बोलने लगी। पगली भी उनके साथ-साथ चलने लगी। जाते-जाते उसने देखा पूरा गांँव भी खाली पड़ा हुआ था। एक अजीब सी खामोशी और सन्नाटा चारों तरफ फैला हुआ था। थोड़ी देर बाद वह लोग उसको लेकर एक जगह पर पहुंँचे। वहां पहुंँचने के बाद मानो पगली की,पूरी दुनिया ही खत्म हो गई थी।
 आखिर ऐसा क्या हुआ था?
 कहांँ लेकर आए वह लोग पगली को?
 क्यों पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था?
 उसके बाद फिर पगली के साथ क्या हुआ?
 यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेंगे...... 

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