आयुर्वेद में मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन पर जोर दिया जाता है। आयुर्वेद में मनुष्य की खानपान, तनlव ,दिनचर्या व जीवन शैली में बदलाव किया जाता है।जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माण पंचतत्वो,पृथ्वी,जल,वायु, अग्नि और आकाश से होता है ,हमारे शरीर का निर्माण भी इसमें शामिल है। इन पंच तत्वों को" पंचमहाभूत "भी कहा जाता है। इन पंच तत्त्वों के असंतुलन से अनेक रोग पैदा हो जाते हैं, आयुर्वेद में इसी असंतुलन को ठीक करके चिकित्सा की जाती है। आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी बूटीयों, तेल, मालिश एक्यूपंक्चर व योग के माध्यम से चिकित्सा की जाती है। हमारे शरीर में अधिकतर बिमारियाँ तीन दोषो के कारण होती हैं ,यह होते हैं वात, पित्त और कफ। इनके असंतुलन को,आयुर्वेद में ठीक किया जाता है। आयुर्वेद का जनक,"ऋषि धनवंतरी" को कहा जाता है। इन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। ये देवी देवताओं के वैद्य थे।
आयुर्वेद में अनेक प्रकार की जड़ी बूटियांँ होती हैं। "अश्वगंधा "को आयुर्वेदिक जड़ी बूटीयों का राजा कहा जाता है। आयुर्वेद में "शिलाजीत "सबसे शक्तिशाली औषधि होती हैl इसी प्रकार तुलसी को "आयुर्वेद की रानी" औषधि भी कहा जाता है।
आज की इस भागा दौड़ी वाली जीवन शैली में हम सब आयुर्वेद को अपना सकते हैं। प्रातः काल व्यायाम ,योग ,दौड़ना या टहलना, अपने भोजन में ताजा,व मौसमी फल और सब्जियों को शामिल करना, पर्याप्त नींद लेना,मदिरापान ना करना, व एक सकारात्मकता और नवचेतना के साथ जीवन जीना ,आयुर्वेद में शामिल है।स्वस्थ और अच्छे जीवनशैली के लिए आयुर्वेद को अपनाना चाहिए l आयुर्वेद अपने आप में एक संपूर्ण विज्ञान है।