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Friday, January 17, 2025

एक शापित खानदान ------- भाग 2

एक शापित खानदान भाग 2 
 यह कहानी सदियों पुरानी है। किसी गांँव में चार भाई रहते थे, चारों भाई मिल जुलकर खेती-बाड़ी करते थे और अपना जीवन यापन करते थे। उस वक्त संयुक्त परिवार होते थे, चारों भाई भी मिलकर एक छत के नीचे रहते थे। दो बड़े भाइयों की शादियांँ हो चुकी थी, और दो छोटे भाई अभी छोटे थे। यह कथा शुरू होती है दूसरे नंबर के भाई की बीवी से, जो की एक बहुत गरीब घर की बेटी थी। वह घर के हर काम में दक्ष थी, और ईश्वर की परम भक्त थी। शादी के बाद वह ससुराल में अपनी गरीबी की वजह से प्रताड़ित की जाती थी। उसका अत्यंत गरीब परिवार से होना उसके ससुराल वालों को नहीं भाता था। अपनी सास के अलावा वह अपनी जेठानी के ताने भी सुनती रहती थी। उसके हर काम में मीन मेख निकलना,उनकी तो जैसे आदत ही बन गई थी। घर के अलावा खेती-बाड़ी के सारे काम भी वह उसी से करवाते थे। उस वक्त की दिनचर्या भी काफी कठिन होती थी। सुबह भोर के तारे को देखकर उठना,और अपने काम में लग जाना, और अपने ईश्वर की पूजा आराधना करना उसके जीवन का हिस्सा बन गया था। दैनिक कामों में उसे किसी की कोई मदद भी नहीं मिलती थी। बार-बार उन लोगों की जली-खोटी व ताने सुनने के अलावा, उसके पास और कोई रास्ता भी ना था। वह भी हंँसते-हंँसते सारी बातें सुनती और अपने काम में मग्न रहती थी। ज्यादा कष्ट होने पर वह भगवान को याद करके अपने मन को थोड़ा हल्का करती थी।
 वक्त के साथ-साथ उसके ऊपर होने वाले अत्याचार और ज्यादा बढ़ गये थे। अब उसे सास व जेठानी के अलावा,पति और जेठ की भी खरी-खोटी सुननी पड़ती थी। उसकी चुप्पी को सभी लोगों ने उसकी कमजोरी समझ लिया था। इस दौरान उसने एक प्यारे से लड़के को जन्म दिया। वह सोचती थी कि शायद अब उन लोगों के जुल्म व अत्याचार कम होंगे,पर उसकी सोच गलत साबित हुई।
 अब तानों और गालियों के साथ,उसके साथ मारपीट भी होने लगी थी। छोटी-छोटी बातों में भी वह लोग उसको बुरी तरह से मारते थे।
 घर के अधिकतर लोग उससे घृणा और नफरत करने लगे थे। यह लोग उसे कोल्हू के बैल की तरह काम करवाते थे,और खाने के लिए आधा पेट भी भोजन ना देते थे। वो बेचारी दूसरों के लिए तीनों वक्त का भरपेट भोजन बनाकर भी,खुद भूखी रह जाती थी।
 अपना दुखड़ा वो भगवान के आगे कहती थी, जिससे उसका मन थोड़ा हल्का हो जाया करता था।
 पति का नजरिया भी उसके प्रति ठीक ना था। अगर वह उन लोगों के खिलाफ जाकर, अपनी पत्नी का साथ देता तो शायद ऐसी बातें ना होती। परंतु ऐसा ना था। उसके अत्याचार भी दिनों दिन बढ़ गए थे। अपनी पत्नी के साथ मारपीट और गाली-गलौच करना तो,उसके दिए आम बात हो गई थी। उसे अपने बेटे से भी कोई लगाव ना था। शायद वह अपने बेटे में,उसकी मांँ का अक्स देखता था। अपनी बेटे को भी वह,हर चीज से मोहताज रखने लगा था। उफ़!कैसा पिता था वो।अपनी जेठानी के बच्चों और अपने लड़के में हर जगह भेदभाव होता देखकर भी वह औरत चुप रहती थी। आखिर वह कर भी क्या सकती थी, आवाज उठाने पर तो उसके साथ बुरे तरीके से मारपीट की जाती थी। वह तो बस खून के आंँसू,और अपमान का घूँट पीकर,अपनी जिंदगी बिता रही थी। उसके साथ अत्याचार वक्त के साथ बढ़ता ही चला गया था।
 और आखिर एक दिन उसके परिवार वालों ने उसके साथ वह किया,जो उसने सपने में भी नहीं सोचा था। आखिर उन लोगों ने ऐसा क्या किया जिससे एक सीधी-सादी और निर्दोष औरत की जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई? क्या हुआ था उस औरत और उसके बच्चे के साथ?
 क्या भगवान ने भी उस औरत की एक न सुनी जिनकी वह परम भक्त थी?
 और आखिरकार कैसे एक खानदान शापित  बन गया था?
 यह हम कहानी की तीसरी भाग में पढ़ेंगे...... 

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...