मासूमों और निर्दोषों की लाशों पर आखिर, युद्ध विजय कहांँ तक उचित,और न्याय संगत है। सबसे अधिक नुकसान तो मानव जाति का ही होता है।
वैश्विक पटल पर भी इस समय कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि, हमारी पृथ्वी ज्वालामुखी के मुँहाने पर बैठी है,बस उसके फटने का इंतजार है। कालांतर में हम दो विश्व युद्ध देख चुके हैं, प्रथम,व द्वितीय विश्व युद्ध।
प्रथम विश्व युद्ध सन 1914 से 1918 तक चला था। यह युद्ध जर्मनी और इंग्लैंड, फ्रांस के मध्य चला था। इस विश्व युद्ध में लाखों की संख्या में लोग मारे गए थे। तदुपरांत द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक हुआ था। यह युद्ध जर्मनी के नाजीवाद,इटली के फासीवाद, जापान के शाही,"धुरी शक्तियों", व,"मित्र राष्ट्रों" के मध्य हुआ था। बाद में विश्व के अनेकों देश, इस युद्ध से जुड़ते चले गये। इस विश्व युद्ध में 70 देशों ने जल,थल,व नभ सेनाओं के माध्यम से, हिस्सा लिया था। इस युद्ध में जापान के दो शहरों, "हिरोशिमा और नाकासाकी ", के ऊपर परमाणु बमों से हमला हुआ था। इसका दीर्घकालिक व प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। विश्व में करोड़ों लोगों ने इस युद्ध में अपनी जान गंवाई थी। बमों के प्रभाव से उत्पन्न रेडिएशन से,कितने वर्षों तक यहां मानवता अपंग,और,अपाहिज पैदा हुई, जिसका कोई हिसाब किताब नहीं है।
आज की स्थिति तो और भी अलग है। अब तो विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है। विश्व के अनेकों देशों के पास,घातक व नवीन तकनीक वाले हथियार आ चुके हैं। अब विश्व के अनेकों देश परमाणु हथियारों से संपन्न है।
अनेकों देशों के पास हाईटेक और सुपर नोटिक हथियार हैं। डर इस बात का भी है कि बहुत से गलत मानसिकता वाले लोगों के पास भी,ऐसे हथियार हैं। ऐसे लोग अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए, मानवता को मिटाने और कुचलने से भी,पीछे नहीं रहते।
युद्ध की भयावहता,और नुकसान को देखकर, इसका एक ही उपाय है, शांति। "शांति ",से ही युद्ध को टाला जा सकता है, व एक निर्णायक बोर्ड पर आकर,युद्ध को समाप्त किया जा सकता है।
विश्व के बड़े और शक्तिशाली देश,यदि शांति की अपील करके,अपने साथ और अधिक राष्ट्रों को जोड़ें, तथा युद्ध स्तर पर कार्य करें, तो शांति बहाल की जा सकती है। यदि हम मानवता का बड़ा हनन,एक बार फिर से नहीं देखना चाहते हैं तो,शांति की बहाली बहुत आवश्यक है। शांति,प्रेम,और सौहार्द,से ही युद्ध को रोका जा सकता है,व एक निर्णायक लकीर खींची जा सकती है।