सभी के काम आना, हर मुश्किल में साथ देना, मुझे बहुत भाता था.
लोग भी अपने मतलब के लिए, प्यार से बुलाते मुझे,अपने पास,
अपने काम निकाल लेते मुझसे,चाहे दिन हो या रात.
शुरू-शुरू में, यह सब मुझको बहुत भाता था,
दूसरों का काम होता, मैं गदगद् हो जाता था. परंतु मेरी इसी आदत को जान,
लोगों ने बना दी मेरी गलत पहचान,
अपने सभी कामों का, वह मुझ से लेते थे संज्ञान,
मैं बेचारा भोल-भाला,इन सब बातों से अंजान.
धीरे-धीरे, बाद -बाद में एहसास हुआ,
क्या सही,क्या गलत,मेरे साथ हुआ,
दे रहे थे,ये लोग,मानसिक वेदना मुझे,
क्या इन्हें कभी मेरी पीड़ा का एहसास हुआ?
मैं सीधा-साधा सरल सा था,
दूसरों की मदद,अपने संस्कारों में था,
जान बूझकर अपनों से धोखा खाना,वो मेरा प्रेम था,
पर इन लोगों ने मेरी बात को गलत ढंग से समझा था,
हर काम मुझ से निकलवाने की, यह उनकी गजब सोच का जज्बा था.
परंतु अब और नहीं,
अब और नहीं झेल सकता मैं,
तुम भी समझो,फरिश्ता नहीं इंसान हूं मैं,
बार-बार अपने धैर्य,सब्र,की परीक्षा नहीं दे सकता है मैं,
तुम्हारे कहने पर,रात को दिन,और,दिन को रात,नहीं कह सकता मैं,
इस अजब कश्मकश में,अब नहीं उलझ सकता हूं मैं.
अब मैं तुम्हारे लिए खराब हो जाऊंगा,
तमाम लांछन लगाओगे,और मैं बदनाम हो जाऊंगा,
कटने लगोगे तुम मेरी परछाई से,
और मैं एक बदनुमा दाग़ हो जाऊंगा.
परंतु अब मुझे फर्क नहीं पड़ता है,
क्योंकि मैंने अब, "ना"कहना,सीख लिया है,
मंझधार में फसी नाव को,मैंने निकालना सीख लिया है,
अपने स्वाभिमान को ऊपर उठा के रखना,
मुझे यह सबक मिल गया है,
मैं इंसान हूं, अब मैंने "ना",कहना सीख लिया है. अब मैंने,"ना "कहना सीख लिया है.