वास्तव में जिंदगी में, जोखिम ना उठाना ही, सबसे बड़ा जोखिम है. हर इंसान के कार्यक्षेत्र में एक सेफ जोन,(सुरक्षात्मक क्षेत्र) होता है, वह इसी जोन के दायरे में कार्य करता है. इस जोन में,"गलती के अवसर "भी कम होते हैं, और , "प्रगति के अवसर" भी कम होते हैं.
इस सुरक्षात्मक जोन से बाहर निकलकर, अपने ज्ञान, अनुभव, और,कार्य दक्षता, के आधार पर जोखिम उठाकर, उस काम को कुछ नए तरीके,और,मौलिकता के साथ किया जा सकता है.जोखिम उठाने से हमें उस कार्य में," दक्षता" व," कुशलता" प्राप्त होती है. साथ ही यह कार्य में,एक नई ऊर्जा और नयापन भी लाता है.
जोखिम किसी भी क्षेत्र में लिया जा सकता है, चाहे व्यापार हो, खेल जगत हो,कला हो या विज्ञान हो. एक जगह डूबने से तो अच्छा है कि,तैरने की एक नई कोशिश करी जाए, क्या पता तैर कर पार हो ही जाएंगे.
विज्ञान जगत में आए दिन नए-नए अविष्कार होते रहते हैं. इन आविष्कारों से एक नई कामयाबी, और नई-नई जानकारियां हमें प्राप्त होती रहती है. ये आविष्कार मानव के लिए फायदेमंद भी होते हैं. यह आविष्कार भी तभी बनते हैं जब उस क्षेत्र में,महान वैज्ञानिकों ने बड़े से बड़ा जोखिम उठाया.
उदाहरण स्वरूप हमारा देश, "भारत "चांद के, "दक्षिणी ध्रुव", पर पहुंचने वाला पहला देश बना था. भारत ने,"चंद्रयान-3"को, दक्षिणी पोल पर भेज कर, यह कामयाबी प्राप्त की थी. परंतु इससे पहले भारत का, "मिशन चंद्रयान 2",फेल हो गया था.यहीं से वैज्ञानिकों ने एक नया, और बड़ा जोखिम उठाया, और बड़ी कामयाबी हासिल की.
दुनिया में जितने भी बड़े-बड़े लोग चाहे,पूंजीपति, व्यापारी,व्यवसायी,या राजनेता हो,सब जोखिम उठा कर ही अपने-अपने फील्ड में कामयाब हुए हैं. इतिहास भी गवाह है,जिसने जितना बड़ा जोखिम उठाया, वह उतना ही अधिक कामयाब हुआ है.
अर्थशास्त्र में जोखिम दो प्रकार के होते हैं, "व्यवस्थित "और,"अव्यवस्थित". व्यवस्थित जोखिम का संबंध पूरे बाजार से होता है, इसके पीछे बड़े-बड़े कारक होते हैं, इसलिए इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. पूरा बाजार ही इसकी चपेट में आता है.
अव्यवस्थित जोखिम का संबंध,किसी खास कंपनी, संगठन, या,क्षेत्र विशेष से होता है. इसके पीछे छोटे कारक होते हैं, इसलिए इसको नियंत्रित किया जा सकता है.
सार यही है कि,जोखिम उठाकर, कामयाबी के एक अलग स्तर को,छुआ जा सकता है.