इसी प्रकार समाज में एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे सब सज्जनता की दृष्टि से देखते हैं. ये लोग होते भी सभ्य और सीधे हैं. ऐसे लोग हर समाज और हर जगह मिल ही जाते हैं.
परंतु इनका यही सीधापन,अक्सर इनके लिए एक चुनौती बन जाता है.इनके सरल स्वभाव की वजह से लोग इनसे अपना हर काम निकलवाना चाहते हैं, फिर चाहे वो घर हो, समाज हो,या ऑफिस हो. बार-बार इन पर हर काम,(चाहे वह दूसरे का हो),का इतना बोझ डाल दिया जाता है,कि व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है. कुछ लोग मदद के नाम पर,दूसरे का पूरा वक्त ही खराब कर देते हैं. उन्हें इस बात का कोई एहसास भी नहीं होता. ऐसी परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति को,"ना",कहना सीखना चाहिए. "ना" कहने से उस व्यक्ति का, " स्वाभिमान "भी बना रहता है. अपने मन में कोई ग्लानि भी नहीं रखनी चाहिए, कि सामने वाला मेरे "ना", कहने से क्या सोचेगा. हर काम के लिए किसी को आश्वासन देने से अच्छा है कि एक बार "ना"कहना. "ना" मतलब "ना".
इस प्रकार आप एक बार ही बुरे बनोगे, परंतु सामने वाला व्यक्ति भी अगली बार के लिए सचेत हो जाएगा." ना "कहने से आप गिरते, नहीं बल्कि आपका कद और भी बढ़ता है. लोग इसे आपका ईगो (अहंकार),भी समझ सकते हैं, परंतु यह आपके लिए अच्छी बात है.
अति हर चीज की बुरी होती है. अपनी शर्म, झिझक,को छोड़कर एक बार "ना" तो कहिए. आपको अपने जीवन में बदलाव अवश्य दिखाई देगा. यह बदलाव आपके लिए सकारात्मक और अच्छा ही होगा. परंतु हां, हर काम के लिए "ना" नहीं कहना, यह आपको निर्धारित करना है. आपको अपने लिए एक लक्ष्मण रेखा खींचनी पड़ेगी. आपको उस रेखा के पार नहीं जाना है, फिर चाहे सामने कोई भी हो.