दिल में है दर्द,और आंखों में पानी है,
समझ गए तो ठीक,
वरना मौजों की मस्त रवानी है।
पीड़ है दिल में, घाव मन-मस्तिष्क में,
सिल दिए होंठ भी, इसी कश्मकश में,
सोचा था कोई जान ना पायेगा,हमारी कहानी,
पर आंँसुओं ने कह दी अपनी जुबानी।
बता के भी रोये,छुपा के भी रोये,
अपना दुख भूल के,दूसरों को,हंँसा के भी रोये,
बरसातों में नाव को, किनारे पर छोड़,
हम अपने ख्यालों में थे खोये।
खुशी में भी निकले,गम में भी निकले,
दिन में भी निकले, शाम को भी निकले,
हाल तो यह था कि, आग से कम,
पानी से, ये ज्यादा पिघले।
आंँसू-आंँसू में भी होता है फर्क,जान लो,
किसी के छलके हैं, तो उनकी कदर जान लो,
दूसरों ने जो दिये आंँसू,वह तो थम ही जाएंगे,
पर अपनों के दिये आंँसू है नासूर, तुम इतना मान लो।
किसी को मजबूत, तो किसी को कमजोर कर देते हैं,
किसी को इस ओर,तो किसी को उस ओर कर देते हैं,
ये तो वों फनकार है जो,
पत्थर को मोम,और रात को भोर कर देते हैं।
इन्हें (आंँसुओं को) दबाना भी सीख लो,
इन्हें छुपाना भी सीख लो,
जमाने को यह ना लगे, कि कमजोर हो तुम,
इसलिए इन्हें अपनी ताकत बनाना भी सीख लो।
मां की आंँखों के,ममता के आंँसू,
भाई-बहनों की आंँखों के, निश्चल प्रेम के आंँसू,
ना जाने कहांँ, खो गए हैं अब,
हर आंँखों से बहते, निस्वार्थ से आंँसू।
इन आंँसुओं को अपनी,ढाल बना लो अब,
युद्ध के मैदान में हम अकेले,यही पुकार बना लो अब,
कोई साथ दे,या ना दे,
इन्हें (आंसुओं को) ना व्यर्थ बहने देंगे, यही जज्बात बना लो अब,
"मैं अब बहुत अकेला हूंँ ",या,
"अब अकेला बहुत हूंँ मैं ",
इसी को अपने दिल की आवाज बना लो अब।