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Tuesday, December 24, 2024

सच्ची घटना-- कौन था वह शख्स। भाग -1

1अक्टूबर सन 2002 को एक युवक अपने चाचा जी के साथ, दिल्ली से उत्तराखंड अपने गांँव जाने के लिए रवाना हुआ। उत्तराखंड कुमाऊँ मंडल के लिए रोडवेज बस की सुविधा आनंद विहार बस अड्डा से होती है। यह दोनों भी आनंद विहार बस अड्डे से शाम को 5:30 बजे रवाना हुए। उस वक्त बस का सफर 13- 14 घंटो का हुआ करता था। उत्तराखंड में सितंबर-अक्टूबर में,असोज का महीना लग जाता है, इस दौरान खेती-बाड़ी का बहुत सा काम होता है। काम इतना अधिक होता है कि गांँव वालों को खाने पीने की सुध तक नहीं रहती है। कोई एक गिलास चाय भी खेतों में काम करने वालों तक पहुंँचा दे,तो यह भी बहुत बड़ी मदद होती थी। इसी असोज के  महीने में,दोनों चाचा-भतीजा,दिल्ली से पहाड़,
 अपने गांव के लिए रवाना हुए थे। बस के द्वारा उनको मासी (प्रसिद्ध भूमियाँ बाबा मंदिर स्थान )पर उतरना होता था, वहां से फिर जीप या अन्य सवारी लेकर, अपने गांँव तक पहुंँचा जाता था। वहां से उनका गांँव 14 किलोमीटर पड़ता था।
 अगली सुबह 2 अक्टूबर को, 6:30 बजे, दोनों मासी पर उतर चुके थे। परंतु यह क्या!
 दुर्भाग्य से उस दिन 2 अक्टूबर को,उत्तराखंड बंद था। बंद की वजह से ट्रांसपोर्ट वालों की भी हड़ताल थी, जिस वजह से जीप,ट्रक, जिप्सी, टैक्सी,बस इत्यादि आगे जाने का, कोई भी साधन नहीं था। बंद का असर वहांँ की दुकानों पर भी पड़ा था, सारी दुकानें और मार्केट बंद पड़ी थी। दोनों ने इसकी कल्पना भी नहीं करी थी। बाहर का माहौल भी अजीब से सन्नाटे से भरा हुआ था।
 आसपास नजर दौड़ाने पर,उन्होंने देखा कि एक मिठाई वाले ने आधा शटर गिरा कर, दुकान को थोड़ा सा खोला था। परिस्थितियों के हिसाब से,वह शटर को,ऊपर-नीचे कर रहा था, क्योंकि साथ में वह चाय का स्टाल भी लगाये हुए था। सारी खड़ी गाड़ियों के ड्राइवरों,और कितनी सवारियों से, चाय की अच्छी खासी बिक्री हो रही थी।
 दोनों ने कितने ड्राइवरों से चलने की विनती की,परंतु बंद की वजह से,कोई भी चलने को राजी ना हुआ। बड़ी ही विकट स्थिति बन चुकी थी। मासी में दो चीज बड़ी प्रसिद्ध हैं एक,"भूमियाँ बाबा मंदिर" व दूसरी, "पावन नदी राम गंगा"। रामगंगा नदी मंदिर के साथ-साथ ही नीचे की तरफ बहती है।तब चाचा ने बोला,नदी में हाथ-मुंँह धोकर,थोड़ा थकान मिटा लेते हैं,फिर तरोताजा होकर,आगे के सफर के बारे में सोचते हैं। वैसे भी अधिकतर लोग,रामगंगा नदी में स्नान के लिए जाते ही हैं, स्नान के उपरांत लोग,मंदिर के दर्शन भी करते हैं।
 फिर थोड़ी देर में दोनों चाचा-भतीजा,रामगंगा नदी की तरफ बढ़ चले। वहां पहुंँचकर दोनों ने नदी के ठंडे जल से अपने मुँह-हाथ धोये। चाचा जी तो उसके बाद,ऊपर की तरफ जा रहे थे, परंतु युवक को नदी के ठंडे जल में खेलना,बहुत ही अच्छा लग रहा था। वैसे भी दिल्ली वालों को ऐसा,स्वर्ग से सुंदर नजारा, कहांँ देखने को मिलता है। युवक ने अपने चाचा जी से कहा,आप ऊपर मिठाई वाले की दुकान पर चाय पी लो,मैं बस थोड़ी देर में आता हूंँ। इतना सुनते ही चाचा जी,ऊपर दुकान की तरफ बढ़ चले। युवक को नदी के ठंडे-ठंडे जल में खेलते हुए काफी वक्त बीत चुका था, उसे वक्त का आभास भी नहीं था,
 एक पल के लिए वह,बंद जैसी विकट परिस्थिति को भी भूल चुका था। थोड़ी देर बाद युवक को लगा कि अब ऊपर दुकान की तरफ जाना चाहिए, जैसे कि उसकी चेतना जागृत हुई हो। इतना सोचते ही वह दुकान की तरफ बढ़ चला। परंतु यह है क्या?
 ऊपर दुकान पर पहुंचते ही उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई? आखिर वहांँ पर क्या हुआ था? युवक ने ऐसा क्या देखा ?
 यह हम कहानी के,अगले भाग में पढ़ेंगे।

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...