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Wednesday, December 25, 2024

सच्ची घटना------ कौन था वह शक्स। भाग 2

युवक जब ऊपर चाय की दुकान पर पहुंँचा, तो उसके होश उड़ गये। उसने देखा कि वह दुकान भी अब बंद हो चुकी थी, वहां पर ना तो उसके चाचा जी थे,ना दुकानदार,और ना ही अन्य लोग। एक रहस्यमय खामोशी,चारों तरफ फैली थी। फिर युवक ने इधर-उधर चारों तरफ,अपने चाचा जी को,खोजने कि कोशिश की,पर वह नाकाम रहा।तभी दूर कहीं पर उसे,कुछ लोगों का झुंड दिखा,तो वह दौड़कर वहांँ पहुंँचा,परंतु वहां भी निराशा उसके हाथ लगी। यह समूह बंद में खड़ी गाड़ियों के ड्राइवरों का था। थक हार कर युवक,अंतत  उसी मिठाई वाले की दुकान पर पहुंँचा, पर दुकान अभी भी बंद थी।
 तभी उसकी नजर सामने से आते हुए दुकानदार पर पड़ी, उसकी आंँखों में एक चमक सी पैदा हो गई थी। उसने दुकानदार से अपने चाचा जी के बारे में पूछा, तो दुकानदार बोला, हांँ बेटा तुम्हारे चाचा जी कुछ समय पहले यहांँ आए थे। उसी समय एक सब्जी की गाड़ी,(छोटा ट्रक या टेंपो जैसा) आगे जाने के लिए तैयार हो गया था। सब्जियों के खराब होने के डर से,वह चोरी छुपे,आगे जाने के लिए तैयार था,तुम्हारे चाचा जी भी उसी गाड़ी में निकल गए हैं। तुम्हारा बैग और जो भी सामान था,उन्होंने अपने पास रख लिया था, कह रहे थे कि,तुम आओगे तो तुम्हें बता देना। इतना सुनते ही युवक और घबरा गया। इसके बाद दुकान वाला भी अपने खेतों में काम करने के लिए,वहां से रवाना हो गया था।
 अब युवक वहाँ पर अकेला था, चारों तरफ एक अजीब सी सुनसानी थी। युवक सोच रहा था क्या पता उसे भी कोई ऐसी ही गाड़ी मिल जाए,और वह किराया देकर आगे निकल जायेगा। तभी युवक ने अपनी जेबें टटोली,पर यह क्या,उसे ध्यान आया कि पैसे तो उसने अपने बैग में रखे थे। इतने में उसका हाथ अपनी पेंट की जेब में एक सिक्के से टकराया। उसके सिक्का बाहर निकाल के देखा तो,वह 1 रुपये का सिक्का था। इस एक रुपये के अलावा उसके पास और कोई पैसा भी नहीं था।
 परेशान अवस्था में युवक मासी बाजार में, इधर-उधर घूमने लगा। तभी वह भूमियाँ बाबा मंदिर के सामने की तरफ आ गया। वहांँ पर दान पात्र,और एक बड़ा सा घंटा लगा हुआ था। मंदिर में दर्शन के लिए उस पार जाना होता था। वह मंदिर तो नहीं गया,परंतु उसने इस पार से ही,भूमियाँ बाबा को नतमस्तक होकर,उनका स्मरण किया। उसके पास जो एक रूपये का सिक्का था,वह भी उसने दान पात्र में डाल दिया,और घंटा बजाते हुए वह मन ही मन बोला,हे भूमियाँ बाबा,आज मुझे इस मुसीबत से बचा लो। हाथ जोड़कर वह बोला,आज किसी भी तरह,मुझे मेरे घर तक पहुंँचवा दो। इतना कहकर वह वापस मिठाई वाले की दुकान पर लौट आया।
 मिठाई वाले की दुकान अभी भी बंद थी।थक-हार कर वह मिठाई वाले के सामने,एक ऊंँची पटरी पर बैठ गया। वह परेशान हो गया था,उसने सोचा ना तो मैं यहांँ पर किसी को जानता हूंँ,ना मेरे पास जेब में पैसे हैं,और ना कोई गाड़ी वाला आगे जाने को तैयार होगा।
 हताशा और परेशानी में उसने अपना सिर पकड़ लिया,उसकी आंँखें भी डबडबा गई थी।
 उसे अपने आप पर क्रोध भी आ रहा था, क्यों उसने नदी में इतना समय लगाया।अगर वह समय से ऊपर दुकान में आ जाता,तो शायद वह भी अपने चाचा जी के साथ निकल जाता,पर अब क्या हो सकता था। उसने अपनी दोनों हाथों से आंँखों में छलक आए आंँसुओ को पोछा।आंँखे पोंछकर जैसे ही उसके सामने देखा तो.............
 आखिर युवक ने सामने क्या देखा?
 क्या वह अपनी मंजिल पर पहुंँच पायेगा?
 क्या कोई उसकी मदद करेगा ?
 यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेगें।
 

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...