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Sunday, December 29, 2024

कौन था वह शक्स ------ भाग 3

हताश,निराश,व परेशान युवक,अपना सिर पकड़कर बैठा हुआ था। आंँखों से छलक आए आंँसुओं को,उसने जैसे-तैसे करके पोंछा। तभी उसकी नजर बिल्कुल अपने सामने खड़े एक व्यक्ति पर गई। युवक को उसे व्यक्ति के अपने सामने खड़े होने तक की भनक नहीं लग पाई थी। उस व्यक्ति का व्यक्तित्व भी अलग ही था, उस व्यक्ति का कद लंबा और बदन छरहरा था। उसने क्रीम रंग की पेंट,व सफेद कमीज पहन रखी थी। दायें कधें पर एक झोला(सब्जी वाला),लटका रखा था। उस व्यक्ति के ललाट पर एक अद्भुत तेज था,मानो कितनी तेज रोशनी, वहांँ से निकल रही हो।
 उस व्यक्ति ने अपनी भारी आवाज में उस युवक से पूछा, कैसे परेशान हो ? उस व्यक्ति को देख युवक को भी एक उम्मीद की किरण नजर आई, उसने पल भर में सारी बातें उस व्यक्ति को बता दी। सारी बातें सुनकर वह व्यक्ति बोला,परेशानी की कोई बात नहीं, मैं आज सुबह ही 4 बजे केदार से निकला हूंँ, और तुम्हारे गांव की तरफ से होते हुए जाऊंँगा, तुम मेरे साथ चल सकते हो।
 इतना सुनते ही युवक अत्यंत प्रसन्न हो गया, खुशी के मारे वह बोला ठीक है,मैं आपके साथ चलने को तैयार हूंँ। फिर दोनों अपने आगे की मंजिल के लिए तैयार हुए,तो व्यक्ति ने युवक से कहा सड़क मार्ग पर पैदल चलने से काफी समय व्यर्थ होगा,और तुम इतना पैदल चल भी नहीं पाओगे, पहाड़ों के बीच-बीच में से कई रास्ते हैं जो छोटे व सुगम हैं,हम उन्हीं रास्तों से चलेंगे। मुझे सारे रास्ते पता हैं। 
 इतना कहकर वह व्यक्ति आगे-आगे और युवक पीछे-पीछे चलने लगा। घने पहाड़ों व जंगलों के बीच में से कितने मार्ग थे, युवक यह सब पहली बार देख,रहा था। चलते-चलते कितने पहाड़, नदी,झरने व गधेरे उन लोगों ने, पार कर लिए थे। इस यात्रा के दौरान एक चीज हैरान कर देने वाली थी, वह थी उस व्यक्ति की "तेज चाल"। उस व्यक्ति की चाल इतनी तेज थी की कितनी बार वह,उस युवक की आंँखों से ओझल हो जाता, तब युवक घबराकर,दौड़ लगाकर,उस व्यक्ति तक पहुंँच पाता था। इस प्रकार निरंतर चलते रहने से युवक को प्यास लग गई थी, प्यास के मारे उस युवक का कंठ सूख चूका था। पर वह व्यक्ति तो अपनी चाल में ही मगन था। अब युवक को उस व्यक्ति पर क्रोध भी आने लगा था, युवक सोच रहा था पता नहीं इतना तेज चलकर यह अपने आप को क्या समझ रहा है, इसको तो पहाड़ों पर चलने की आदत है पर मुझे तो नहीं है। युवक जैसे तैसे दौड़कर उस व्यक्ति तक पहुंँचता,तो वह व्यक्ति फिर से
आगे की राह,अपनी तेज चाल में शुरू कर देता।युवक ने सोचा अब इसको थोड़ा धीमी चाल में चलने को कहूंँगा, और पानी पिलाने के लिए भी बोलूंगा। फिर युवक दौड़कर उस व्यक्ति तक पहुंँचा। इस बार वह व्यक्ति वहीं पर खड़ा था, मानो युवक का इंतजार कर रहा हो।
 युवक के कुछ कहने से पहले ही वह व्यक्ति बोला, इस पहाड़ के पिछले हिस्से में पानी मिल जाएगा, चलते-चलते तुम्हें प्यास लग गई होगी, तुम वहांँ पर पानी पीकर अपनी प्यास बुझा सकते हो। इतना सुनते ही युवक पहले तो हैरान हुआ,फिर उसने सोचा इसको भी प्यास लगी होगी तभी ऐसा कह रहा है। पहाड़ी का पिछला हिस्सा वहांँ से ज्यादा दूर नहीं था। वहांँ पर युवक ने देखा कि पहाड़ के बीच में से एक सीर(ठंडे व स्वच्छ जल धारा का मार्ग) निकल रही थी। पहले उस व्यक्ति ने मुँह-हाथ धोकर पानी पिया, उसके बाद युवक ने जी भर कर उस ठंडे जल को पिया,जल का स्वाद अमृत समान था। युवक को यह सोच हैरानी हुई कि,इस व्यक्ति को पहाड़ों में,जंगल के बीच,इस जल स्रोत के बारे में कैसे पता?
 इस व्यक्ति को कैसे पता की प्यास के मारे मेरा कंठ सूख रहा है? युवक आगे कुछ सोच पाता,कि वह व्यक्ति फिर से अपनी तेज चाल में आगे की ओर निकल पड़ा। युवक ने फिर से उसके पीछे दौड़ लगा दी। 
आखिर क्यों थी उस व्यक्ति की इतनी तेज चाल?
 उस व्यक्ति को इस जल स्रोत के बारे में, व  युवक के मनोभाव के बारे में,कैसे पता था?
 आगे सफर के दौरान क्या-क्या हुआ? उस व्यक्ति ने युवक को क्या सीख दी?
 और आखिरकार कौन था वह व्यक्ति?
 यह हम कहानी के अगले और अंतिम भाग में पढ़ेंगे।

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...