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Wednesday, December 11, 2024

सत्य की खोज

क्या कभी आपने,सत्य की खोज करने की कोशिश करी है?अपने आप में यह प्रश्न,बड़ा अजीब भी है,और बहुत गहरा भी। हर किसी के मन में यह प्रश्न नहीं आ सकता। सबसे पहले तो यह जानना पड़ेगा कि सत्य क्या है?
 क्या केवल जो दिखता है,वह सच है?या सच बोलना ही सत्य है? यह वाकई में एक गूढ़ प्रश्न है।इस विषय के ऊपर अनेकों धर्मग्रंथ, व पुस्तकें हैं।सब अपने हिसाब से सत्य का मूल्यांकन करते हैं।
सत्य की खोज के लिए बाहरी संसार में भटकने की आवश्यकता नहीं होती। महान सनातन धर्म में, अनेकों ऋषियों, मुनियों, व तपस्वियों ने कठोर तप-साधना, करके, "सत्य के रहस्य ",पर्दा हटाया था।इसके(सत्य के), रहस्य को जानने के लिए आत्मबल, आत्म- चिंतन,ध्यान, योग व बौद्धिक क्षमता की मजबूती अनिवार्य है।अपने भीतर झांक कर, खुद में सत्य की खोज करना बहुत बड़ी बात है।जो मनुष्य इस रहस्य को जान जाता है, उसके लिए फिर सभी मार्ग सुगम हो जाते हैं।
 सत्य में बहुत शक्ति होती है, एक सच हजार झूठों को पछाड़ देता है।सत्य अकेला हो सकता है,परंतु कमजोर नहीं।सत्य के आगे तो बड़ी से बड़ी ताकतें भी झुक जाती है.
 सबके जीवन में इसकी परिभाषा और  
  एहसास अलग-अलग हो सकता है, किंतु निचोड़ एक सा होता है।
 सत्य का सार, और,"अंतिम सत्य" क्या है?
 मानव जीवन का अंतिम सत्य है, "आत्मा", जो हर जीव में है।एक निश्चित अवधि के उपरांत, हर आत्मा का परमात्मा में,विलय हो जाता है।शरीर नश्वर है, परंतु आत्मा अजर- अमर है। संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना उस परमेश्वर ने की है, आत्मा भी उन्हीं का हिस्सा है। जो एक निश्चित समयावधि के बाद, दोबारा परमेश्वर में,विलीन हो जाती है।बाकी सब कर्मों का खेल होता है. कर्मों के हिसाब से ही आत्मा को भिन्न-भिन्न प्रकार की योनियाँ मिलती है. अच्छे और सत्कर्मों से, अच्छी योनी, व बुरे कर्मों से ख़राब योनी.उस ईश्वर के लिए हमें,समय अवश्य निकालना चाहिये।प्रभु भक्ति और एकाग्र मन से, सत्य की खोज अवश्य करनी चाहिए।भक्ति,प्रार्थना,व योगों के माध्यम से,यह मार्ग सरल हो जाता है। सत्य की खोज करके,सत्य को जान लेना, किसी वरदान से कम नहीं है।

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...