घने कोहरे, गिरती ओस,सर्द हवाओं का मौसम,
बर्फ की चादर सा ओढ़े,आया प्यार का मौसम,
कंपकपाती ठंड में आया,गरम पकोड़े, चाय का मौसम।
प्यारी लगती है चढ़ते सूरज की, तपिश भी,
चूल्हे से उठता धुआँ,अब भाये कभी भी,
चाय की केतली हो,या सब्जी की कढ़ाई भी,
भरपेट भोजन हो,फिर काम की चढ़ाई भी।
गर्म कपड़ों में लिपटे,सीधे-साधे लोग अपने,
दिनचर्या को बनाये रखते, मेहनती लोग अपने,
ठंड में बरकत रखने वाले,ऊर्जावान लोग अपने,
घने कोहरे को चीर, उस छोर,जाने वाले लोग अपने।
कोई भी मौसम हो, हम ना मेहनत करना छोड़ते हैं,
बर्फ की सिल्लियों पर,हम नंगे पांँव चलना सीखते हैं,
ओलो की बरसात में भी,हम आग जलाना सीखते हैं,
हम पहाड़ी है जनाब, गैरों को भी अपना बनाना जानते हैं।
बर्फीला तूफान हो,या सर्द काली रात हो,
ठंडी हवाओं का दिन हो,या अलाव तापती शाम हो,
फटी रजाइयों का साथ हो, और ना कंबल अपने पास हो,
हौसला ठंड क्या तोड़ेगी,जब सामने पहाड़ी इंसान हो।
मौसम से हम कर लेते हैं दोस्ती, अपने हिसाब से,
ढल जाते हैं हम,प्रकृति के हिसाब से,
लेते हैं हम उतना ही,अपनी जरूरत के हिसाब से,
कमाते भी हैं हम,अपनी मेहनत के हिसाब से।
ठंड का मौसम लगे,बहुत ही प्यारा,
पूरे पहाड़ों का होता है,अलग ही नजारा,
गुलाबी ठंड में, कोहरे में लिपटा,देवभूमि ये हमारा,
अद्भुत,अलौकिक,पहाड़ों में ठंड का मौसम, बड़ा ही न्यारा।