Saturday, January 4, 2025

कौन था वो शक्स.........अंतिम भाग 4

कौन था वो शक्स.....अंतिम भाग 4
 युवक और उस अनजान व्यक्ति का सफर जारी था। मंजिल अभी दूर थी और दोनों बस चले ही जा रहे थे। जहांँ युवक व्यक्ति के तेज चाल की वजह से परेशान हो चला था,वही वह व्यक्ति मस्त होकर,बस चुपचाप आगे की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। उनके सफर के दौरान बीच में कितने गांँव भी पड़ रहे थे। युवक को तो इन गांँवों के नाम भी पता नहीं थे,पर हैरानी की बात यह थी कि वह व्यक्ति, किसी भी गांँव को बीच में से पार नहीं कर रहा था। मतलब यह था कि वह व्यक्ति बीच में पड़ने वाले गांँवो की सीमाओं के साथ-साथ ही चल रहा था, किसी भी गांँव को उसने लाँघा नहीं था।
 इसी प्रकार एक गांँव की सीमा से गुजरते हुए युवक के हाथ पैर फूल गए थे,जब उसने देखा कि एक पहाड़ी भोटिया कुत्ता उन दोनों को देखकर,भौंकते हुए उनकी तरफ आने लगा था। पहाड़ों में भोटिया प्रजाति के कुत्ते काफी खतरनाक होते हैं। पहाड़ों में कहते हैं की, भोटिया नस्ल के कुत्ते, बाघ से अकेले लड़ सकते हैं। थोड़ी देर में वह कुत्ता भौंकते हुए उन दोनों के काफी करीब आ गया था, डर के मारे युवक के हाथ पैर कांपने लग गए थे। युवक तो मानो जैसे वहांँ जड़ हो गया था, तभी वह व्यक्ति,उस युवक के पास आया और रुक गया। इतने में वह खतरनाक कुत्ता भी वहीं पर आ गया, आगे फिर कुछ ऐसा हुआ कि युवक के होश ही उड़ गये।
 युवक ने देखा कि जब वह भोटिया कुत्ता उस व्यक्ति के समीप आया,तो उसने भौंकना और गुर्राना छोड़ दिया था। उल्टा वह पूंँछ हिला हिलाकर उस व्यक्ति के चरणों में लोटपोट होने लगा था। मानो वह कुत्ता उस व्यक्ति को पहले से पहचानता हो। उस व्यक्ति ने भी कुत्ते को बड़े ही प्यार से सहलाया और पुचकारा, और फिर कुत्ता वहांँ से वापिस चला गया। कभी-कभी शायद जानवर वह चीजें देख लेते हैं,जो हम इंसान नहीं देख पाते।
 और फिर से दोनों आगे अपने सफ़र में बढ़ चले। आगे सफर के दौरान उस व्यक्ति ने फिर युवक को दो बार पानी पिलाया। हैरानी की बात यह थी कि युवक को दोनों ही बार फिर से पानी पिलाने के लिए कहना नहीं पड़ा। दोनों बार जल स्रोत पूर्णत प्राकृतिक और स्वच्छ थे। युवक के दिमाग में एक पल के लिए तो फिर से आया कि इस व्यक्ति को इन जल स्रोतों के बारे में कैसे पता होगा? परंतु थोड़ी ही देर में फिर से यह सवाल उसके दिमाग से हवा हो गया।
 सफर के दौरान अंतिम बार दोनों ने जहांँ पर पानी पिया था, वहांँ पर उस व्यक्ति ने युवक से कहा कि, मेरे निरंतर तेज चलने की वजह से तुम्हें मुझ पर क्रोध भी काफी आ रहा होगा, परंतु अगर अपनी मंजिल को पाना है तो लगातार कोशिश करके तेजी से उसकी तरफ बढ़ना चाहिए। निरंतर चलते और बहते रहना चाहिए फिर चाहे वह व्यक्ति हो,या यह निर्मल जल हो। यह उस व्यक्ति की,उस युवक को एक बहुत बड़ी सीख थी। फिर से दोनों,आगे अपनी मंजिल पर बढ़ चुके थे।
 आगे उस व्यक्ति ने कहा कि अब मंजिल काफी नजदीक है, इतना सुनते ही उस युवक को काफी अच्छा महसूस हुआ। उस व्यक्ति के बारे में भी उसके मन में जितना क्रोध था,वह भी दूर हो चुका था। उनकी यात्रा अब अंतिम पड़ाव पर थी। दोनों नीचे से ऊपर पहाड़ की तरफ आ रहे थे, ऊपर पहाड़ पर चढ़ते हुए व्यक्ति ने,युवक से कहा कि ऊपर सड़क मार्ग शुरू हो जाएगा,और तुम्हारे गांँव से लगता हुआ गांँव भी यहांँ पर है। यहांँ पर दोनों गांँव की सीमाएं मिलती हैं,और तुम्हें यहांँ से अपने गांँव का रास्ता भी पता है,जल्दी से ऊपर आ जाओ। इतना कहकर वह व्यक्ति ऊपर सड़क मार्ग पर आ चुका था। थोड़ी देर के पश्चात वह युवक भी ऊपर सड़क मार्ग पर चढ़ चुका था, परंतु यह है क्या ! उसकी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी, वह व्यक्ति वहांँ पर नहीं था।
 युवक के सामने खड़ा पहाड़ था,और दोनों तरफ सर्पिली सड़क थी, उस व्यक्ति का दूर-दूर तक कोई नामोंनिशान नहीं था। युवक ने उस व्यक्ति को बहुत ढूंढा,पर वह नहीं मिला। युवक ने सोचा उस व्यक्ति को कैसे मालूम था, कि यहांँ से मुझे अपने घर का रास्ता पता है। परंतु युवक को इस बात की खुशी थी,कि वहांँ से उसे अपने गांँव का रास्ता पता था। युवक ने अपने गांँव की तरफ दौड़ लगा दी, और थोड़ी ही देर में अपने घर पहुंँच गया। तब तक दोपहर का वक्त हो चुका था। गांँव में युवक की दादी जी रहती थी। युवक के चाचा जी भी पहले ही सुबह के वक्त पहुंँच चुके थे। थोड़ी ही देर में युवक ने अपने सफ़र की सारी कहानी बयां कर दी थी,परंतु युवक के स्वभाव में अजीब सी घबराहट और बेचैनी सी थी। युवक की बातें सुनकर उसकी दादी और चाचा जी के रोंगटे खड़े हो गए थे, तभी दादी ने बोला तू हाथ मुंँह धो कर आजा। युवक जैसे ही हाथ मुंँह धोकर आया,तो देखा कि उसकी दादी जी पूजा की थाली में थोड़ा सा भभूत लेकर आई है। दादी जी ने युवक के माथे पर भभूत लगाते हुए, घर के थान(मंदिर), के सामने हाथ जोड़कर,भूमियाँ बाबा का नाम लिया।भभूत लगाने के थोड़ी देर बाद युवक सामान्य सा हुआ, फिर दादी जी ने उससे पूछा कि क्या तुझे पता है वह व्यक्ति कौन था ? युवक ने ना में सिर हिलाया।
 दादी जी ने आगे कहा अरे पगले वह व्यक्ति, स्वयं भूमियाँ बाबा थे, जिन्होंने वेश बदलकर तेरी मदद करी,तुझे तेरी गांँव की सीमा में छोड़ दिया। जब तूने परेशान होकर उनका पुकारा था तो उन्होंने तेरी पुकार सुन ली थी। इतना सुनते ही पहले तो युवक घबराया, फिर मंदिर में भूमियाँ बाबा का नाम लेकर नतमस्तक हो गया, आखिर हर किसी को भगवान के साक्षात दर्शन थोड़ी ही होते हैं।
 हमारे पहाड़ों को यूंँ ही देवभूमि नहीं कहा जाता, जगह-जगह पर अलग-अलग देवी देवताओं,का निवास स्थान है। उन्हें सच्चे दिल से पुकारो तो वह सबकी सुनते हैं। यह कथा  एक सत्य कथा है, इस कहानी का नवयुवक "मैं "स्वयं हूँ। भूमियाँ बाबा के साथ सफर, और उनके दर्शन मेरी व्यक्तिगत अनुभूति है।
 जय भूमियाँ बाबा।

Sunday, December 29, 2024

कौन था वह शक्स ------ भाग 3

हताश,निराश,व परेशान युवक,अपना सिर पकड़कर बैठा हुआ था। आंँखों से छलक आए आंँसुओं को,उसने जैसे-तैसे करके पोंछा। तभी उसकी नजर बिल्कुल अपने सामने खड़े एक व्यक्ति पर गई। युवक को उसे व्यक्ति के अपने सामने खड़े होने तक की भनक नहीं लग पाई थी। उस व्यक्ति का व्यक्तित्व भी अलग ही था, उस व्यक्ति का कद लंबा और बदन छरहरा था। उसने क्रीम रंग की पेंट,व सफेद कमीज पहन रखी थी। दायें कधें पर एक झोला(सब्जी वाला),लटका रखा था। उस व्यक्ति के ललाट पर एक अद्भुत तेज था,मानो कितनी तेज रोशनी, वहांँ से निकल रही हो।
 उस व्यक्ति ने अपनी भारी आवाज में उस युवक से पूछा, कैसे परेशान हो ? उस व्यक्ति को देख युवक को भी एक उम्मीद की किरण नजर आई, उसने पल भर में सारी बातें उस व्यक्ति को बता दी। सारी बातें सुनकर वह व्यक्ति बोला,परेशानी की कोई बात नहीं, मैं आज सुबह ही 4 बजे केदार से निकला हूंँ, और तुम्हारे गांव की तरफ से होते हुए जाऊंँगा, तुम मेरे साथ चल सकते हो।
 इतना सुनते ही युवक अत्यंत प्रसन्न हो गया, खुशी के मारे वह बोला ठीक है,मैं आपके साथ चलने को तैयार हूंँ। फिर दोनों अपने आगे की मंजिल के लिए तैयार हुए,तो व्यक्ति ने युवक से कहा सड़क मार्ग पर पैदल चलने से काफी समय व्यर्थ होगा,और तुम इतना पैदल चल भी नहीं पाओगे, पहाड़ों के बीच-बीच में से कई रास्ते हैं जो छोटे व सुगम हैं,हम उन्हीं रास्तों से चलेंगे। मुझे सारे रास्ते पता हैं। 
 इतना कहकर वह व्यक्ति आगे-आगे और युवक पीछे-पीछे चलने लगा। घने पहाड़ों व जंगलों के बीच में से कितने मार्ग थे, युवक यह सब पहली बार देख,रहा था। चलते-चलते कितने पहाड़, नदी,झरने व गधेरे उन लोगों ने, पार कर लिए थे। इस यात्रा के दौरान एक चीज हैरान कर देने वाली थी, वह थी उस व्यक्ति की "तेज चाल"। उस व्यक्ति की चाल इतनी तेज थी की कितनी बार वह,उस युवक की आंँखों से ओझल हो जाता, तब युवक घबराकर,दौड़ लगाकर,उस व्यक्ति तक पहुंँच पाता था। इस प्रकार निरंतर चलते रहने से युवक को प्यास लग गई थी, प्यास के मारे उस युवक का कंठ सूख चूका था। पर वह व्यक्ति तो अपनी चाल में ही मगन था। अब युवक को उस व्यक्ति पर क्रोध भी आने लगा था, युवक सोच रहा था पता नहीं इतना तेज चलकर यह अपने आप को क्या समझ रहा है, इसको तो पहाड़ों पर चलने की आदत है पर मुझे तो नहीं है। युवक जैसे तैसे दौड़कर उस व्यक्ति तक पहुंँचता,तो वह व्यक्ति फिर से
आगे की राह,अपनी तेज चाल में शुरू कर देता।युवक ने सोचा अब इसको थोड़ा धीमी चाल में चलने को कहूंँगा, और पानी पिलाने के लिए भी बोलूंगा। फिर युवक दौड़कर उस व्यक्ति तक पहुंँचा। इस बार वह व्यक्ति वहीं पर खड़ा था, मानो युवक का इंतजार कर रहा हो।
 युवक के कुछ कहने से पहले ही वह व्यक्ति बोला, इस पहाड़ के पिछले हिस्से में पानी मिल जाएगा, चलते-चलते तुम्हें प्यास लग गई होगी, तुम वहांँ पर पानी पीकर अपनी प्यास बुझा सकते हो। इतना सुनते ही युवक पहले तो हैरान हुआ,फिर उसने सोचा इसको भी प्यास लगी होगी तभी ऐसा कह रहा है। पहाड़ी का पिछला हिस्सा वहांँ से ज्यादा दूर नहीं था। वहांँ पर युवक ने देखा कि पहाड़ के बीच में से एक सीर(ठंडे व स्वच्छ जल धारा का मार्ग) निकल रही थी। पहले उस व्यक्ति ने मुँह-हाथ धोकर पानी पिया, उसके बाद युवक ने जी भर कर उस ठंडे जल को पिया,जल का स्वाद अमृत समान था। युवक को यह सोच हैरानी हुई कि,इस व्यक्ति को पहाड़ों में,जंगल के बीच,इस जल स्रोत के बारे में कैसे पता?
 इस व्यक्ति को कैसे पता की प्यास के मारे मेरा कंठ सूख रहा है? युवक आगे कुछ सोच पाता,कि वह व्यक्ति फिर से अपनी तेज चाल में आगे की ओर निकल पड़ा। युवक ने फिर से उसके पीछे दौड़ लगा दी। 
आखिर क्यों थी उस व्यक्ति की इतनी तेज चाल?
 उस व्यक्ति को इस जल स्रोत के बारे में, व  युवक के मनोभाव के बारे में,कैसे पता था?
 आगे सफर के दौरान क्या-क्या हुआ? उस व्यक्ति ने युवक को क्या सीख दी?
 और आखिरकार कौन था वह व्यक्ति?
 यह हम कहानी के अगले और अंतिम भाग में पढ़ेंगे।

Friday, December 27, 2024

Who was The Man ------------Part 2

When the young man reached the tea shop above, his senses flew away. He saw that the shop was also closed now, there was neither his uncle ji, nor the shopkeeper, nor the other people. A mysterious silence, spread all around. Then the young man around here and there,tried to find his uncle, but he failed.Then at far away, he showed him a bunch of people,Then he ran and turned around, but there was also despair his hands. This group was of drivers of parked trains in closed. Young man by losing tired, finally on the shop of the same sweet man, the shop was still closed. Just then his eyes were lying on the shopkeeper coming from the front, a shining si was born in his gaze. He asked the shopkeeper about his uncle ji, so the shopkeeper spoke, ?Beta your uncle ji had come to yuh some time ago. At the same time a vegetable cart, (like a small truck or a tempo) was ready to go ahead. Afraid of the spoils of vegetables, he hid the theft, was ready to go ahead, your uncle ji has also left in the same car. Whatever was your bag and the luggage, they had kept it with them, saying that, if you come, let you know. The young man was nervous and nervous when he heard so much. After this, the shop man had also left from there, to work in his fields. Now the young man was alone over there, there was a strange heartening all around. The young man was wondering if he could find a similar car, and he would go ahead with the fare. Only then did the young man put his pockets, but what did it take, he noticed that the money was kept in his bag. In so much his hand hit a coin in his paint pocket. looked out of his coin, he was a 1 rupee coin. Apart from this one rupee, he had no more money. In a troubled state, the young man started walking around, in the Masi market. Then he came to the front side of the Bhumiya Baba temple. On the occasion, Dan eligible, and a big little hour was engaged. The temple had to go across it for darshan. He did not go to the temple, but he rememberedhim from this cross, the landlords, Baba, through his hands. The one rupee coin that he had, he also put it in the charity character, and he spoke the mind while playing the hour, he spoke the land, Baba, save me from this trouble today. With folded hands he spoke, today anyhow, let me cook until my house. Saying so, he returned back to the sweet shop. The sweet shop was still closed.Tired of losing it, in front of the sweet one, a theechi sat on the track. He was upset, he thought neither I know anyone on Yahon, na I have money in the pocket, and no cart person would be willing to go ahead. In desperation and trouble, he grabbed his head, his gaze had also gone to Dabba. He was also getting anger on himself, why did he spend so much time in the river.If he had come to the shop above time, then maybe he would also have left with his uncle ji, but what could have happened now. She came to the chhalak in both her hands with the gaze............... After all, what did the young man see in front? Will he be able to digest on his floor? Will anyone help him ? This we will read in the next part of the story. 

Wednesday, December 25, 2024

who was The Man -------------Part 1

Who was that man. Part-1
On 1st October, 2002, a young man left with his uncle ji, Uttarakhand from Delhi to go to his seminary. Roadways bus facility for Uttarakhand Kumaon Mandal comes from Anand Vihar Bus Station. Both of this also left at 5:30 in the evening from Anand Vihar Bus Airport. At that time the bus journey used to be 13- 14 hours. In Uttarakhand, in September-October, it takes a month of assoge, during this time there is a lot of work of farming-bari. The work is so high that the people who eat do not live until the Sudh of drinking. No one glass of tea also give pakorcha to those who worked in the fields, so it was also a great help. In the month of this Asoj,both uncle and nephew,mountains from Delhi, had left for his village. By the bus they had to land at Masi (famous Bhumiyan Baba Temple place), from there, taking a jeep or other ride, to be found out to be found out to be his 've. He had 14 kilometers from there. The next morning on October 2, at 6:30, both had landed on Masi. But what this! Unfortunately on 2nd October that day,Uttarakhand was closed. There was also a strike of transport people because of the shutdown, due to which the jeep, truck, gypsy, taxi, bus, etc. The closure had also been affected on the shops of the Vaughan, all the shops and markets were closed. Both had not even imagined it. The outside atmosphere was also filled with strange silence. On the lookout around, he noticed that a sweet had dropped half the shutter, opened the shop a little bit. According to the circumstances, he was making the shutter, up and down, because together he was also putting a tea stall. From the drivers of all the horsemen, and how many riders, there was a substantial sale of tea. How many drivers did the two beg to run, but because of the shutdown, no one agreed to walk. had become a terrible situation. The two things in Masi are big famous one, "Bhumiyan Baba Mandir" and the other, "Pavan river Ram Ganga". The Ramganga river flows down the temple as well as the bottom.Then the uncle spoke,washing hands-on in the river,erasing a little fatigue,then freshening up,and thinking about the journey ahead. Anyway, most people, as soon as they go for a bath in the river Ramganga, people after a bath, also visit the temple. Then in a while, both uncle and nephew, went up towards the Ramganga river. There, after reading, both washed their mouths with the cold water of the river. Uncle ji was then going to the top, but the young man was feeling very good, playing in the cold water of the river. Anyway, Delhi people get such a look, beautiful sight from heaven, to look at the clown. The young man said to his uncle, "You drink tea at the sweet man's shop above, I just come in a while. As soon as you hear so much, uncle ji, go up towards the shop. The young man had spent a long time playing in the cold-blooded waters of the river, he had no idea of time, For a moment he had also forgotten a formidable situation like,off. A little later, the young man felt that he should now go up to the shop, as if his consciousness was awakened. Thinking so much, he moved towards the shop. But is it? The ground slipped from under his feet as soon as he reached the shop above? What happened at the end? What did the young man see so ? This we shall read in the next part of the story

सच्ची घटना------ कौन था वह शक्स। भाग 2

युवक जब ऊपर चाय की दुकान पर पहुंँचा, तो उसके होश उड़ गये। उसने देखा कि वह दुकान भी अब बंद हो चुकी थी, वहां पर ना तो उसके चाचा जी थे,ना दुकानदार,और ना ही अन्य लोग। एक रहस्यमय खामोशी,चारों तरफ फैली थी। फिर युवक ने इधर-उधर चारों तरफ,अपने चाचा जी को,खोजने कि कोशिश की,पर वह नाकाम रहा।तभी दूर कहीं पर उसे,कुछ लोगों का झुंड दिखा,तो वह दौड़कर वहांँ पहुंँचा,परंतु वहां भी निराशा उसके हाथ लगी। यह समूह बंद में खड़ी गाड़ियों के ड्राइवरों का था। थक हार कर युवक,अंतत  उसी मिठाई वाले की दुकान पर पहुंँचा, पर दुकान अभी भी बंद थी।
 तभी उसकी नजर सामने से आते हुए दुकानदार पर पड़ी, उसकी आंँखों में एक चमक सी पैदा हो गई थी। उसने दुकानदार से अपने चाचा जी के बारे में पूछा, तो दुकानदार बोला, हांँ बेटा तुम्हारे चाचा जी कुछ समय पहले यहांँ आए थे। उसी समय एक सब्जी की गाड़ी,(छोटा ट्रक या टेंपो जैसा) आगे जाने के लिए तैयार हो गया था। सब्जियों के खराब होने के डर से,वह चोरी छुपे,आगे जाने के लिए तैयार था,तुम्हारे चाचा जी भी उसी गाड़ी में निकल गए हैं। तुम्हारा बैग और जो भी सामान था,उन्होंने अपने पास रख लिया था, कह रहे थे कि,तुम आओगे तो तुम्हें बता देना। इतना सुनते ही युवक और घबरा गया। इसके बाद दुकान वाला भी अपने खेतों में काम करने के लिए,वहां से रवाना हो गया था।
 अब युवक वहाँ पर अकेला था, चारों तरफ एक अजीब सी सुनसानी थी। युवक सोच रहा था क्या पता उसे भी कोई ऐसी ही गाड़ी मिल जाए,और वह किराया देकर आगे निकल जायेगा। तभी युवक ने अपनी जेबें टटोली,पर यह क्या,उसे ध्यान आया कि पैसे तो उसने अपने बैग में रखे थे। इतने में उसका हाथ अपनी पेंट की जेब में एक सिक्के से टकराया। उसके सिक्का बाहर निकाल के देखा तो,वह 1 रुपये का सिक्का था। इस एक रुपये के अलावा उसके पास और कोई पैसा भी नहीं था।
 परेशान अवस्था में युवक मासी बाजार में, इधर-उधर घूमने लगा। तभी वह भूमियाँ बाबा मंदिर के सामने की तरफ आ गया। वहांँ पर दान पात्र,और एक बड़ा सा घंटा लगा हुआ था। मंदिर में दर्शन के लिए उस पार जाना होता था। वह मंदिर तो नहीं गया,परंतु उसने इस पार से ही,भूमियाँ बाबा को नतमस्तक होकर,उनका स्मरण किया। उसके पास जो एक रूपये का सिक्का था,वह भी उसने दान पात्र में डाल दिया,और घंटा बजाते हुए वह मन ही मन बोला,हे भूमियाँ बाबा,आज मुझे इस मुसीबत से बचा लो। हाथ जोड़कर वह बोला,आज किसी भी तरह,मुझे मेरे घर तक पहुंँचवा दो। इतना कहकर वह वापस मिठाई वाले की दुकान पर लौट आया।
 मिठाई वाले की दुकान अभी भी बंद थी।थक-हार कर वह मिठाई वाले के सामने,एक ऊंँची पटरी पर बैठ गया। वह परेशान हो गया था,उसने सोचा ना तो मैं यहांँ पर किसी को जानता हूंँ,ना मेरे पास जेब में पैसे हैं,और ना कोई गाड़ी वाला आगे जाने को तैयार होगा।
 हताशा और परेशानी में उसने अपना सिर पकड़ लिया,उसकी आंँखें भी डबडबा गई थी।
 उसे अपने आप पर क्रोध भी आ रहा था, क्यों उसने नदी में इतना समय लगाया।अगर वह समय से ऊपर दुकान में आ जाता,तो शायद वह भी अपने चाचा जी के साथ निकल जाता,पर अब क्या हो सकता था। उसने अपनी दोनों हाथों से आंँखों में छलक आए आंँसुओ को पोछा।आंँखे पोंछकर जैसे ही उसके सामने देखा तो.............
 आखिर युवक ने सामने क्या देखा?
 क्या वह अपनी मंजिल पर पहुंँच पायेगा?
 क्या कोई उसकी मदद करेगा ?
 यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेगें।
 

Tuesday, December 24, 2024

सच्ची घटना-- कौन था वह शख्स। भाग -1

1अक्टूबर सन 2002 को एक युवक अपने चाचा जी के साथ, दिल्ली से उत्तराखंड अपने गांँव जाने के लिए रवाना हुआ। उत्तराखंड कुमाऊँ मंडल के लिए रोडवेज बस की सुविधा आनंद विहार बस अड्डा से होती है। यह दोनों भी आनंद विहार बस अड्डे से शाम को 5:30 बजे रवाना हुए। उस वक्त बस का सफर 13- 14 घंटो का हुआ करता था। उत्तराखंड में सितंबर-अक्टूबर में,असोज का महीना लग जाता है, इस दौरान खेती-बाड़ी का बहुत सा काम होता है। काम इतना अधिक होता है कि गांँव वालों को खाने पीने की सुध तक नहीं रहती है। कोई एक गिलास चाय भी खेतों में काम करने वालों तक पहुंँचा दे,तो यह भी बहुत बड़ी मदद होती थी। इसी असोज के  महीने में,दोनों चाचा-भतीजा,दिल्ली से पहाड़,
 अपने गांव के लिए रवाना हुए थे। बस के द्वारा उनको मासी (प्रसिद्ध भूमियाँ बाबा मंदिर स्थान )पर उतरना होता था, वहां से फिर जीप या अन्य सवारी लेकर, अपने गांँव तक पहुंँचा जाता था। वहां से उनका गांँव 14 किलोमीटर पड़ता था।
 अगली सुबह 2 अक्टूबर को, 6:30 बजे, दोनों मासी पर उतर चुके थे। परंतु यह क्या!
 दुर्भाग्य से उस दिन 2 अक्टूबर को,उत्तराखंड बंद था। बंद की वजह से ट्रांसपोर्ट वालों की भी हड़ताल थी, जिस वजह से जीप,ट्रक, जिप्सी, टैक्सी,बस इत्यादि आगे जाने का, कोई भी साधन नहीं था। बंद का असर वहांँ की दुकानों पर भी पड़ा था, सारी दुकानें और मार्केट बंद पड़ी थी। दोनों ने इसकी कल्पना भी नहीं करी थी। बाहर का माहौल भी अजीब से सन्नाटे से भरा हुआ था।
 आसपास नजर दौड़ाने पर,उन्होंने देखा कि एक मिठाई वाले ने आधा शटर गिरा कर, दुकान को थोड़ा सा खोला था। परिस्थितियों के हिसाब से,वह शटर को,ऊपर-नीचे कर रहा था, क्योंकि साथ में वह चाय का स्टाल भी लगाये हुए था। सारी खड़ी गाड़ियों के ड्राइवरों,और कितनी सवारियों से, चाय की अच्छी खासी बिक्री हो रही थी।
 दोनों ने कितने ड्राइवरों से चलने की विनती की,परंतु बंद की वजह से,कोई भी चलने को राजी ना हुआ। बड़ी ही विकट स्थिति बन चुकी थी। मासी में दो चीज बड़ी प्रसिद्ध हैं एक,"भूमियाँ बाबा मंदिर" व दूसरी, "पावन नदी राम गंगा"। रामगंगा नदी मंदिर के साथ-साथ ही नीचे की तरफ बहती है।तब चाचा ने बोला,नदी में हाथ-मुंँह धोकर,थोड़ा थकान मिटा लेते हैं,फिर तरोताजा होकर,आगे के सफर के बारे में सोचते हैं। वैसे भी अधिकतर लोग,रामगंगा नदी में स्नान के लिए जाते ही हैं, स्नान के उपरांत लोग,मंदिर के दर्शन भी करते हैं।
 फिर थोड़ी देर में दोनों चाचा-भतीजा,रामगंगा नदी की तरफ बढ़ चले। वहां पहुंँचकर दोनों ने नदी के ठंडे जल से अपने मुँह-हाथ धोये। चाचा जी तो उसके बाद,ऊपर की तरफ जा रहे थे, परंतु युवक को नदी के ठंडे जल में खेलना,बहुत ही अच्छा लग रहा था। वैसे भी दिल्ली वालों को ऐसा,स्वर्ग से सुंदर नजारा, कहांँ देखने को मिलता है। युवक ने अपने चाचा जी से कहा,आप ऊपर मिठाई वाले की दुकान पर चाय पी लो,मैं बस थोड़ी देर में आता हूंँ। इतना सुनते ही चाचा जी,ऊपर दुकान की तरफ बढ़ चले। युवक को नदी के ठंडे-ठंडे जल में खेलते हुए काफी वक्त बीत चुका था, उसे वक्त का आभास भी नहीं था,
 एक पल के लिए वह,बंद जैसी विकट परिस्थिति को भी भूल चुका था। थोड़ी देर बाद युवक को लगा कि अब ऊपर दुकान की तरफ जाना चाहिए, जैसे कि उसकी चेतना जागृत हुई हो। इतना सोचते ही वह दुकान की तरफ बढ़ चला। परंतु यह है क्या?
 ऊपर दुकान पर पहुंचते ही उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई? आखिर वहांँ पर क्या हुआ था? युवक ने ऐसा क्या देखा ?
 यह हम कहानी के,अगले भाग में पढ़ेंगे।

Sunday, December 22, 2024

बचपन के दोस्त

बचपन की दोस्ती होती है बड़ी अनमोल,
 खट्टी मीठी सी यादें,व मीठे-मीठे से बोल।
 छल,कपट, ईर्ष्या, द्वेष, से बचपन होता है नादान ,
 प्यारी-प्यारी सी अपनी शरारतें, दुनियादारी से अनजान।
 साथ में पढ़ना, दिनभर खेलना, करे धमाचौकड़ी दिन भर में,
 एक दूजे से लड़ना,रूठ जाना,अपना फिर बन जाना,पल भर में।
 एक साथ खाना,एक साथ पीना,
 एक साथ मिलकर,फिर हंँसना रोना।
 सुनहरी यादों सा होता है बचपना,
 जैसे सुनहरी धूप की किरणों से, चादर का बुनना।
 फटे कपड़ों में भी खुश रहता था, बचपन हमारा,
 अपने में ही मस्त था,संग हमारा।
 भोला भाला बचपन था, मीठी मीठी यादें थी,
 भोर के तारे के जैसे,सबकी यही कहानी थी।
 जिंदगी की भागा दौड़ी में,छूट जाते हैं सब संगी साथी,
 आंखों में आंँसू लाने को,रह जाती है उनकी मीठी यादें।
 खुशकिस्मत होते हैं वह लोग, जिनके बचपन के सच्चे दोस्त अभी तक साथ हैं,
 वरना मुश्किल वक्त में यहांँ परछाईं भी,नहीं खड़ी होती,अपने साथ है।
 काश वो दिन फिर लौट आते,
 मिलकर सारे दोस्त अपने बचपन में चलते,
 साथ में क्रिकेट खेलते, मिट्टी में लट्टू चलाते,
 अपनी उंगलियों को कंचो पर नचाते,
 झूला-झूलते,एक दूसरे को पकड़ते,
 दौड़ लगाते,साइकिल से लंबी सैर पर चलते,
 काश वो दिन फिर से लौट आते।
 खुश रहे चाहे जहांँ भी हो,यार अपने,
 पूरे हो उनके जिंदगी के,सारे सपने।

 



Friday, December 20, 2024

आयुर्वेद


 आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में से एक है l आयुर्वेद संस्कृत भाषा के शब्द ,"आयुष" और "वेद" से मिलकर बना हुआ है।"आयुष "का अर्थ होता है ,जीवन और "वेद" का अर्थ होता है ज्ञान। अर्थात हमारा जीवन क्रम और ज्ञान ही आयुर्वेद है।
आयुर्वेद में मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन पर जोर दिया जाता है। आयुर्वेद में मनुष्य की खानपान, तनlव ,दिनचर्या व जीवन शैली में बदलाव किया जाता है।जिस प्रकार समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माण पंचतत्वो,पृथ्वी,जल,वायु, अग्नि और आकाश से होता है ,हमारे शरीर का निर्माण भी इसमें शामिल है। इन पंच तत्वों को" पंचमहाभूत "भी कहा जाता है। इन पंच तत्त्वों के असंतुलन से अनेक रोग पैदा हो जाते हैं, आयुर्वेद में इसी असंतुलन को ठीक करके चिकित्सा की जाती है।  आयुर्वेद में प्राकृतिक जड़ी बूटीयों, तेल, मालिश एक्यूपंक्चर व योग के माध्यम से चिकित्सा की जाती है। हमारे शरीर में अधिकतर बिमारियाँ तीन दोषो के कारण होती हैं ,यह  होते हैं वात, पित्त और कफ। इनके असंतुलन को,आयुर्वेद में ठीक किया जाता है। आयुर्वेद का जनक,"ऋषि धनवंतरी" को कहा जाता है। इन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। ये देवी देवताओं के वैद्य थे।
आयुर्वेद में अनेक प्रकार की जड़ी बूटियांँ होती हैं। "अश्वगंधा "को आयुर्वेदिक जड़ी बूटीयों का राजा कहा जाता है। आयुर्वेद में "शिलाजीत "सबसे शक्तिशाली औषधि होती हैl इसी प्रकार तुलसी को "आयुर्वेद की रानी" औषधि भी कहा जाता है।
आज की इस भागा दौड़ी वाली जीवन शैली में हम सब आयुर्वेद को अपना सकते हैं। प्रातः काल व्यायाम ,योग ,दौड़ना या टहलना, अपने भोजन में ताजा,व मौसमी फल और सब्जियों को शामिल करना, पर्याप्त नींद  लेना,मदिरापान ना करना, व एक सकारात्मकता और नवचेतना के साथ जीवन जीना ,आयुर्वेद में शामिल है।स्वस्थ और अच्छे जीवनशैली के लिए आयुर्वेद को अपनाना चाहिए l आयुर्वेद अपने आप में एक संपूर्ण विज्ञान है।

Thursday, December 19, 2024

पहाड़ों पर ठंड का मौसम

पहाड़ों पर छाया,ठंड का मौसम,
 घने कोहरे, गिरती ओस,सर्द हवाओं का  मौसम,
 बर्फ की चादर सा ओढ़े,आया प्यार का मौसम,
 कंपकपाती ठंड में आया,गरम पकोड़े, चाय का मौसम।
 प्यारी लगती है चढ़ते सूरज की, तपिश भी,
 चूल्हे से उठता धुआँ,अब भाये कभी भी,
 चाय की केतली हो,या सब्जी की कढ़ाई भी,
 भरपेट भोजन हो,फिर काम की चढ़ाई भी।
 गर्म कपड़ों में लिपटे,सीधे-साधे लोग अपने,
 दिनचर्या को बनाये रखते, मेहनती लोग अपने,
 ठंड में बरकत रखने वाले,ऊर्जावान लोग अपने,
 घने कोहरे को चीर, उस छोर,जाने वाले लोग अपने।
 कोई भी मौसम हो, हम ना मेहनत करना छोड़ते हैं,
 बर्फ की सिल्लियों पर,हम नंगे पांँव चलना सीखते हैं,
ओलो की बरसात में भी,हम आग जलाना सीखते हैं,
 हम पहाड़ी है जनाब, गैरों को भी अपना बनाना जानते हैं।
 बर्फीला तूफान हो,या सर्द काली रात हो,
 ठंडी हवाओं का दिन हो,या अलाव तापती शाम हो,
 फटी रजाइयों का साथ हो, और ना कंबल अपने पास हो,
 हौसला ठंड क्या तोड़ेगी,जब सामने पहाड़ी इंसान हो।
 मौसम से हम कर लेते हैं दोस्ती, अपने हिसाब से,
 ढल जाते हैं हम,प्रकृति के हिसाब से,
 लेते हैं हम उतना ही,अपनी जरूरत के हिसाब से,
 कमाते भी हैं हम,अपनी मेहनत के हिसाब से।
 ठंड का मौसम लगे,बहुत ही प्यारा,
 पूरे पहाड़ों का होता है,अलग ही नजारा,
 गुलाबी ठंड में, कोहरे में लिपटा,देवभूमि ये हमारा,
 अद्भुत,अलौकिक,पहाड़ों में ठंड का मौसम, बड़ा ही न्यारा।



कलम की व्यथा

एक दिन कलम खामोश सी पड़ी थी,
 मैंने कलम से पूछा,
 आज खामोश हो क्यों,
 इतना व्यथित हो क्यों?
 चुप्पी अभी भी बरकरार थी,
 बंद लबों पर कुछ तो आस थी।
 थोड़ा और झंझोरा, थोड़ा और निचोड़ा,
 कलम ने जवाब दिया तब,
 अपने अंदर का दुख-दर्द बयां किया अब।
 मैं तो केवल माध्यम हूँ,
 विचार तो तुम्हारे हैं,
 मैं तो केवल मंजिल हूंँ,
 राहें तो तुम्हारी है,
 चुनौतियांँ, समस्याएंँ हजारों हैं,
 पीड़ा-वेदना हर दिल में है,
 उजाले की चाह में,भटक कर,
 तुम पथ-प्रदर्शक तो बनो।
 फैली है समाज में गंदगी,और कुरुतियांँ कईं,
 मेैला पड़ा है दामन,श्वेत वस्त्रों में कईं,
 कहीं पर व्यभिचार है,तो कहीं पर है भ्रष्टाचार,
 धोने को इनके दाग,
 तुम तेज करो,अपने विचारों की आग।
 जातियों में बटाँ हुआ,
 पिछड़ा और दलित समाज,
 सदियों से कुचला हुआ,
 पीड़ित और शोषित समाज,
 उठाओ उनकी समस्याओं को,
 जगाओ जड़ चेतन समाज को,
 लौटकर इनकी सुधाओं को, 
आगे बढ़ाओ समाज को।
 चुनौतियांँ हर तरफ है,
 खामोशियांँ चादर लपेटे हैं,
 पहाड़ों के सीने में छुपे हैं कितने ज्वालामुखी,
 जो इसने अपने में समेटे हैं,
 चीरकर पहाड़ों के सीने,
 करना होगा इलाज इनकी बीमारियों का,
 लौह पुरुष फिर बना होगा,
 भार उठाकर, अपनी जिम्मेदारियों का।
 मेरे (कलम)में,शक्ति बहुत है,
 बहुत ही तेज मेरा आत्मबल है,
 तलवार से भी तेज धार मेरी है,
 सीमाओं का मेरा,कोई ओर,कोई छोर नहीं है,
 दिशा निर्देशित हूंँ मैं, राह मेरी उज्जवल है।
 अपनी लेखनी के माध्यम से बनना होगा तुम्हें युग पुरुष,
 लेखनी में अपनी गहराई लाओ,
 विचारों को अपने और बढ़ाओ,
 सबसे जुड़कर,सिंचित करो,तुम नव नूतन विचार,
 आदि पुरुष बनके,करो समाज का तुम  उद्धार।
 हर कलम की यही व्यथा,और काम है,
 बड़े परिवर्तनों में जुड़ा,उसका भी नाम है।





Wednesday, December 18, 2024

वो जोड़ा

नव विवाहित एक जोड़ा,
 प्रेम में डूबा हुआ,
 मस्ती में लिपटा हुआ, 
 आपस में खोया हुआ।
 नया नया मौसम था, नई-नई जवानी थी,
 बदलें मौसम फिर, दोनों में अजब रवानी थी,
 नये-नये पत्ते थे, नई-नई शाखायें थी।
 घर गृहस्थी की गाड़ी दौड़ी जब,
 खटपट की आवाजें आई,उनकी गाड़ी में तब,
 प्रेम का स्थान अब तानों ने ले लिया,
 मधुर भाषी जुब़ान ने अब,नीम पी लिया।
 होने लगी फिर रोज की लड़ाईयाँ,
 ईर्ष्या,तनाव, बुराई,क्लेश की थी गहराइयांँ ,
 अपशब्दों का कोई वाण ऐसा ना बचा, जो 
 छूटा ना था,
 भीतर थी वाणों की शैय्या, बस बाहर यह जिस्म बचा था।
 बाहर वाले क्या रिश्तो के टूटने से,खुश नहीं होते हैं?
 उनके क्या है पैमाने,जिसमें वह पीते हैं?
 दोनों नासमझी में करते रहे यह गलतियांँ,
 धूल चेहरे पर,और आईने के साथ मस्तियांँ। 
 एक दूसरे की आंँखों में देकर वह आंँसू,गहरे,
 चीरकर कलेजे को, दोनों अब किस मोड़ पर   हैं ठहरे,
 टकराव हुआ,ठहराव हुआ,फिर एक दूजे से, लंबा अलगाव हुआ।
 अब बाग ही नहीं, वहांँ बगीचा भी था,
 फूल और कलियों का नवजीवन,दोनों ने साथ सींचा भी था,
 फिर से दोनों एक हुए,
आखिर उन्हें अपने फूलों को बचाना भी तो था।
 अपने थे जो,वह सब खो गए थे,
 आंँखें सूख गई,किस-किस के लिए वह रोये  थे। 
वक्त का चक्र,अब आगे बढ़ता है।
 थोड़ा-थोड़ा अब वो,एक दूसरे को समझने लगे थे,
 गिले-शिकवे जितने थे,वो अब गलने लगे थे,
 अपनी अपनी गलतियों का उन्हें अब    आभास था,
 बात तो दिल की, दिल में थी, बाहर खुला आसमान था।
 जिम्मेदारियांँ अब कंधों पर थी,
 मिलकर चलने में ही,दोनों की भलाई थी।
 वक्त कटता रहा,समय बितता रहा,
 पंछी अब खोंसला छोड़, उड़ चुके थे 
 बालों में सफेदी, और शरीर अब झुक चुके थे,
 अब ना कोई इच्छा थी,ना कोई उमंगें थी,
 दिन रात लड़ते रहे जिसके लिए, अब कहांँ वो तरंगे थी।
 मृत्यु शैय्या पर लेटी थी पत्नी,
 हाथ थाम अपने साथी का,
 निशब्द काया थी, आंँखों में दोनों के आंँसुओं की झड़ी थी,
 मास था कार्तिक का,बाहर दीपों की लड़ी थी,
  यहीं पर तो जीवन साथी की जरूरत, हर  काम में जरूरी थी,
 प्राण छोड़े जब एक ने, दूसरे की अर्थी फिर वहांँ क्यों, तैयार खड़ी थी?
 यही था वो प्रेम, यही थी वो शक्ति,
 दो नश्वर शरीरों को,दे दी जिन्होंने मुक्ति।
 साथ जीवन भर का हो,
 प्रेम राधा-कृष्ण सा हो।












लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...