खट्टी मीठी सी यादें,व मीठे-मीठे से बोल।
छल,कपट, ईर्ष्या, द्वेष, से बचपन होता है नादान ,
प्यारी-प्यारी सी अपनी शरारतें, दुनियादारी से अनजान।
साथ में पढ़ना, दिनभर खेलना, करे धमाचौकड़ी दिन भर में,
एक दूजे से लड़ना,रूठ जाना,अपना फिर बन जाना,पल भर में।
एक साथ खाना,एक साथ पीना,
एक साथ मिलकर,फिर हंँसना रोना।
सुनहरी यादों सा होता है बचपना,
जैसे सुनहरी धूप की किरणों से, चादर का बुनना।
फटे कपड़ों में भी खुश रहता था, बचपन हमारा,
अपने में ही मस्त था,संग हमारा।
भोला भाला बचपन था, मीठी मीठी यादें थी,
भोर के तारे के जैसे,सबकी यही कहानी थी।
जिंदगी की भागा दौड़ी में,छूट जाते हैं सब संगी साथी,
आंखों में आंँसू लाने को,रह जाती है उनकी मीठी यादें।
खुशकिस्मत होते हैं वह लोग, जिनके बचपन के सच्चे दोस्त अभी तक साथ हैं,
वरना मुश्किल वक्त में यहांँ परछाईं भी,नहीं खड़ी होती,अपने साथ है।
काश वो दिन फिर लौट आते,
मिलकर सारे दोस्त अपने बचपन में चलते,
साथ में क्रिकेट खेलते, मिट्टी में लट्टू चलाते,
अपनी उंगलियों को कंचो पर नचाते,
झूला-झूलते,एक दूसरे को पकड़ते,
दौड़ लगाते,साइकिल से लंबी सैर पर चलते,
काश वो दिन फिर से लौट आते।
खुश रहे चाहे जहांँ भी हो,यार अपने,
पूरे हो उनके जिंदगी के,सारे सपने।
Nice poem
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