Wednesday, November 27, 2024

उत्तराखंड की समस्या


पहाड़ हो रहे हैं वीरान, जिससे सारे उत्तराखंडी हैं परेशान.
 समझ किसी को कुछ आता नहीं,            क्या करें,
 हमारा क्या है, हमारा तो कुछ जाता नहीं.
 घरों-घरों में लटके हुए हैं बड़े-बड़े से तालें,
 खेती - बाड़ी अब करनी नहीं,खाने के पड़े हैं लाले.
 कमाने को जो निकले थे कभी शहर,
 बर्तन मांज रहा है आज होटलों में,चारों पहर.
 सरकारी नौकरी वालों का भी है बुरा हाल,
 ना इधर के, ना उधर के हैं,उनके प्यारे लाल.
 अपने बालों में पड़ती हुई सफेदी को, देखें वो ऐसे,
 गांव में वर्षों पहले देखी हुई,बर्फ हो जैसे.
 पहले दो महीने गर्मी में, सब परिवार आ जाता था,
 अपने खेतों, अपने पेड़ों,और अपने नौलों के बारे में बतलाता था.
 मिट्टी में खेलना, ग्वाले जाना,झूला झूलना, सभी से मिलना,उसके बच्चों को बहुत भाता था.
 लेकर जाता था वह शहरों को,यहां का निश्चल प्यार,
 साथ में सब्जियां, दालें,बाड़ी,घी व आम का अचार.
 वक्त वक्त का फेर है, बदल गया है अब जमाना,
 लगा रहता है यहां, पुरानी पीढ़ी का आना जाना.
 चूल्हों को छोड़, हर दिल में लगी है अब आग,
 हाय रे हम उत्तराखंडी, हमारे कैसे फूटे भाग.
 जो भाई-भाई, पर मरता था कभी,
 वह भाई,अब भाई को देख कर,             पल-पल जल रहा है,
 दूसरे की खुशी, सुख संपत्ति को देख,    तिल-तिल करके मर रहा है.
 झूठा अभिमान, झूठा है दम्भ,
 घर-घर में मचा है कैसा विद्वंश.
 पहाड़ में विकास का भी हाल बुरा है,
 कमीशन खोरी हुई,भू माफिया आये,यह साल बुरा है.
 लड़कियों की पसंद भी गैर उत्तराखंडी, हो रहें हैं,
 धर्म मजहब,जांत -पांत,क्या वह ये सब, देख रहे हैं?
 बहुएं भी कुछ पंजाब से,तो कुछ नेपाल से आ रही है,
 नयी -नयी संस्कृति, नए-नए संस्कार भी साथ में आ रहे हैं,                               "भांगड़ा", "घटु", में भी उत्तराखंडी,अब दबा के नाच रहे हैं.
 ढोल,डमरू, हुड़ुक,मशकबीन,पड़े हैं अब बेजान,
 मुरली की आवाज भी, हुई अब सुनसान.
 पहाड़ हो रहे हैं वीरान,
 जिससे सारे उत्तराखंड़ी हैं परेशान I


  






एटीट्यूड (नजरिया )

हम अपने रोजमर्रा की जीवन में अनेकों काम करते हैं. जिसे हमारा जीवन-क्रम व्यस्त रहता है. जैसे बच्चों का स्कूल जाना, वयस्कों का नौकरी,या अपने व्यवसाय के लिए जाना, और ग्रहणियों का घर पर अपने रोजमर्रा के कार्यों को करना, इत्यादि I हर व्यक्ति के कार्य करने की क्षमता,और उसका तरीका अलग-अलग होता है. कोई सक्षम व्यक्ति,किसी कार्य को, "अच्छे "और "बेहतर "तरीके से कर सकता है, बजाय किसी नए और "अक्षम" व्यक्ति के. किसी भी व्यक्ति का,किसी भी कार्य के लिए,मनोभाव,रवैया या,स्वभाव कैसा है, इसे ही उसका एटीट्यूट कहते हैं I
 दक्षता आने पर किसी भी कार्य में, उस व्यक्ति का नजरिया तय होता है. अर्थात कोई भी व्यक्ति जब अपने-अपने प्रफेशन या फील्ड में सक्षम, और दक्ष हो जाता है तो उसका उस कार्य को करने का जो तरीका होता है, उससे ही उसका नजरिया या "एटीट्यूड" तय होता है. दक्षता को प्राप्त करने के लिए मनुष्य अपना 100% उस काम को देता है. नतीजा उसके लिए अच्छा ही होता है. एटीट्यूड किसी भी व्यक्ति को अपने काम में परफेक्ट या दक्ष करता है. एटीट्यूड से हम किसी भी कार्य को अच्छी तरीके से कर सकते हैं I
 आमतौर आमतौर पर लोग,"एटीट्यूड" और, "घमंड", को एक साथ जोड़कर देखते हैं, वे इन दोनों चीजों को एक ही समझ बैठते हैं, जबकि यह बात एकदम गलत है. एटीट्यूड, (नजरिये),और घमंड( ईगो ),में फर्क होता है.
 जहां एटीट्यूड हमें किसी भी कार्य में दक्ष, या परफेक्ट बनाता है, तो घमंड व्यक्ति में अति आत्मविश्वास को पैदा करता है. किसी भी कार्य को करने का विश्वास अच्छा होता है, परंतु उसे कार्य को करने में अति आत्मविश्वास अच्छा नहीं होता.
 किसी भी कार्य को" मैं कर सकता हूं "यह उस व्यक्ति का विश्वास होता है, परंतु इस कार्य को," केवल मैं कर सकता हूं ",यह उस व्यक्ति का अति आत्मविश्वास है. अति आत्मविश्वास से बना हुआ कार्य भी खराब हो सकता है.
 एटीट्यूड व्यक्ति में एक सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करता है.व्यक्ति में वह गुण पैदा होता है कि,वह हर चीज को एक अलग नजरिए से देख सके. सैकड़ो की भीड़ में एटीट्यूड वाला व्यक्ति,अपनी अलग ही पहचान बनाता है.
 ऐसे व्यक्ति किसी के पीछे रहने,या किसी के पीछे चलने से परहेज करते हैं, ये अपना नया रास्ता खुद बनाते हैं,तथा अपनी मंजिल खुद तय करते हैं.
 "मेरे साथ पीछे सौ लोग हैं", इसके बजाय उन सौ लोगों को ऐसा लगे कि,"मैं उनके साथ खड़ा हूँ",यह एटीट्यूड कहलाता है. सकारात्मक एटीट्यूड से बड़े से बड़ा काम भी संभव है.
 हम सब में भी,थोड़ा बहुत एटीट्यूड होना ही चाहिए. यह सकारात्मक और बेहतर दृष्टिकोण वाला होना चाहिए. सकारात्मक एटीट्यूड वाले व्यक्ति, विश्व पटल पर भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं. विश्व के बड़े-बड़े,"मास-लीडरों ",में भी यह साफ झलकता है, उनके चलने -फिरने, उठने -बैठने से लेकर, उनके कार्यों,उनकी जीवन शैली में यह साफ दिखता है. एक अच्छे और स्वस्थ समाज के लिए, सकारात्मक दृष्टिकोण वाला, संगठित एटीट्यूड होना चाहिए. इससे व्यक्ति बड़ी से बड़ी कामयाबी को, आसानी से हासिल कर सकता है I

Tuesday, November 26, 2024

निराशा

कभी-कभी हमारा मन अत्यधिक निराशा से भर जाता है. जब हमें किसी कार्य के पूर्ण हो जाने का विश्वास हो, और ऐसा न होने पर, हमारा मन हताशा - निराशा में डूब जाता है. यही निराशा," अवसाद "को जन्म देती है. अवसाद हमारे जीवन में बड़े-बड़े दुखों और कष्टों का कारण है. निराशा,"नकारात्मकता" का प्रतीक है. निराशा मनुष्य की जड़ चेतना को खत्म कर देता है. फिर जहां नकारात्मकता हो, वहां सकारात्मक कैसे हो सकती है ? हमारे जीवन से पॉजिटिव एनर्जी खत्म हो जाती है. निराश मन में कभी भी,अच्छे और श्रेष्ठ विचार नहीं आ सकते हैं.
 मनुष्य का जीवन एक कुंठा से भर जाता है.
 निराश व्यक्ति को अपना जीवन भी अंधकार-मय लगता है. ऐसे में व्यक्ति सही या गलत का फैसला नहीं ले पता. इसी बीच कई बार मनुष्य गलत रास्ते पर चलने को मजबूर हो जाता है.
 आजकल की भागा दौड़ी वाली जिंदगी में लोगों में धैर्य की कमी हो गई है. हर कोई एक दूसरे से आगे निकलना चाहता है,जैसे इनके जीवन में कोई रेस लगी हो. धैर्य की कमी से मनुष्य स्वभाव क्षण-क्षण में बदल जाता है.
 मनुष्य जल्दी से उग्र (क्रोधित ),हो जाता है. निराशा से व्यक्ति में सहनशीलता की कमी आती है, जिसकी वजह से कोई भी व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार काम नहीं कर पाता.
 निराशा,कुंठा, उग्रता, यह सारी चीज़ें आपस में जुड़ी हुई है.इन क्षण विशेष में, व्यक्ति बड़े से बड़ा पाप भी,कर सकता है.
 जीवन में जीत-हार,आशा-निराशा तो लगी रहती है, इन चीजों को हमें अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए. इस बार हारें हैं तो अगली बार जीत ही जाएंगे, ऐसी सोच के साथ हमें चलना चाहिए. एक बार गिरने से कोई चलना थोड़ी ही छोड़ देता है. किसी विद्यार्थी के अगर अच्छे नंबर नहीं आए हैं,या वह फेल हो गया है, तो निराश होने की कोई जरूरत नहीं है. एक नयी मेहनत, हिम्मत, ऊर्जा, पॉजिटिव एटीट्यूड के साथ, दोबारा उस चीज पर काम करना चाहिए. निराशा में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहिए.
 आजकल इंसान अपने पास सब कुछ होने के बाद भी इसलिए दुखी है, क्योंकि उसके भाई, पड़ोसी, या रिश्तेदार सुखी हैं. दूसरे का सुख आज मनुष्य के दुख का कारण बन गया है. यह मानसिकता बिल्कुल ही गलत है. ऐसी निम्न स्तरीय सोच से बचते हुए, हमें अपनी सोच के स्तर को बढ़ाना चाहिए. अपने जीवन में हमें योग,ध्यान व व्यायाम को, उचित स्थान देना चाहिए. भोजन इत्यादि का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए.हर रात के बाद दिन जरूर होता है,पतझड़ के बाद बहार आती है.
 निराशा, हताशा, या क्रोध आने पर,अपने मन को शांत रखते हुए,लंबे सांस लेकर पूरा समय देकर सोचना चाहिए. सारे मार्ग बंद होने के पश्चात एक मार्ग अवश्य खुला रहता है.

Sunday, November 24, 2024

ब्लॉगिंग टिप्स



एक अच्छा ब्लॉग लिखने के लिए,हमें ब्लॉग के बारे में बेसिक जानकारियों का होना, बहुत जरूरी है. इन जानकारियों के अभाव में हमारा ब्लॉग उतना प्रभावशाली नहीं बन पाता. हमारी ब्लॉगिंग में "मौलिकता",व,  "गहनता", का होना बहुत आवश्यक है. लोग आपके लेखन से तभी जुड़ सकते हैं जब आपका लेख मौलिक  हो, वह उसमें गहनता हो.आपका ब्लॉग "स्वयं लिखित "होना चाहिए.
 कहीं किसी की नकल ना हो,इस बात का ध्यान रखना चाहिए.
 एक ही विषय पर अनेकों लोग ब्लॉगिंग कर सकते हैं, फिर लोग आपका ब्लॉक क्यों पढ़ेंगे? यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि हम दूसरों से अलग,कुछ नया,रुचि पूर्ण, व गहनता पूर्वक, उस विषय के बारे में अपने ब्लॉग में लिखें. उदाहरण के लिए यदि सभी लोग कार के बारे में ब्लॉग लिख रहे हैं तो आप कार की बारीक़ -बारीक़ चीजों,के बारे में भी लिखें. इंजन की बेसिक खराबी ठीक करने, स्पार्क प्लग रिपेयर करने, तेल चैक,और चेंज करने,या गाड़ी के पहिए बदलने के बारे में भी लिखें. इससे ज्यादा से ज्यादा लोग आपके ब्लॉग को पढ़ना पसंद करेंगे, क्योंकि कार के साथ ये चीज़े भी आपस में जुड़ी हुई है.
 हमारे ब्लॉग की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए, सरल और स्पष्ट भाषा लोगों को भी आसानी से समझ में आ जाती है. इससे उनका जुड़ाव आपके ब्लॉक की तरफ हो सकता है.
 ब्लॉगिंग के लिए नए-नए विचार और नए-नए विषय आपके पास उपलब्ध होने चाहिए.
 नयापन ही लोगों को,आपकी तरफ आकर्षित करता है. उदाहरण के लिए लोगों को नए-नए फैशन के कपड़े,या नई-नई जगह पर घूमना,ज्यादा अच्छा लग सकता है,बजाए कि पुराने कपड़े,या पुरानी जगह पर घूमने के.
 नयापन लोगों को ही खुशी देता है,और इसी का प्रयोग अपने ब्लागिंग में कर सकते हैं.
 अब सवाल यह भी उड़ता है कि हम ब्लॉगिंग के लिए लगातार अलग-अलग विषय कहां से लेकर आये? तो इसके लिए हम अपनी हॉबिओं (रुचियों )इस्तेमाल कर सकते हैं.
 जैसे फैशन डिजाइनर, फैशन के बारे में, इंटीरियर-डिजाइनर,इंटीरियर,के बारे में, फोटोग्राफर अपने कैमरे व लेंसो के बारे में, एक अच्छा कुक अलग-अलग,फूड रेसिपीज के बारे में,बहुत अच्छा लिख सकता है.
 आजकल लोग अपनी सेहत के विषय में पहले से बहुत अधिक जागरूक हो गए हैं.
 मोटापा या बढ़ा हुआ वजन एक ग्लोबली समस्या है. मोटापे से बहुत सी बीमारियों का जन्म होता है. इसी पर वेट लॉस (वजन कम करने)के लिए, तथा उत्तम डाइट, एक्सरसाइज के बारे में लिखा जा सकता है. "हेल्थ डाइट चार्ट "और "न्यूट्रिशन डाइट", के ऊपर लिखा जा सकता है.
 योगा, मेडिटेशन वह आयुर्वेद के बारे में लिख सकते हैं.
 आजकल ओटीटी प्लेटफॉर्म का जमाना है, "ओटीटी मूवी रिव्यू", व "टीवी सीरियल रिव्यू",के बारे में लिखा जा सकता है. इन पर ब्लॉग लिखने से भी,अधिक से अधिक लोगों को अपने से जोड़ा जा सकता है.
 अपनी अपनी रुचियां के अनुरूप हम अलग-अलग विषयों पर लंबे समय तक लिख सकते हैं. 

Saturday, November 23, 2024

"ब्लॉगिंग "कैसे करें

आजकल की इस भागम भाग वाली जिंदगी में हर व्यक्ति भागा दौड़ी में लगा हुआ है.
 सुबह से शाम तक एक संघर्ष है, हर किसी के जीवन में,
 इस तेज रफ्तार जिंदगी में किसी के पास समय ही नहीं है. पर इस भागा-दौड़ी वाली जिंदगी में, हर व्यक्ति को अपने लिए समय निकालना चाहिए. इस समय का सदुपयोग वह योग,व्यायाम,या अपनी रुचियां को पूरा करने के लिए कर सकता हैI हर व्यक्ति की रुचियां अलग-अलग होती हैं. किसी को पढ़ने का शौक हो सकता है, तो किसी को लिखने का,
 किसी को नई-नई जगहों पर घूमने- फिरने का शौक, तो किसी को बागवानी इत्यादि का शौक हो सकता है I
 इसी प्रकार यदि किसी को लिखने का शौक है,तो इसे ब्लॉगिंग के माध्यम से पूरा किया जा सकता है I लिखने की कोई सीमा नहीं हो सकती, और ना लेखन( विषयानुसार)में कोई व्यक्ति पूर्ण हो सकता है. जितना लिखो उससे ज्यादा लिखने की इच्छा मन में हमेशा बनी रहती है. ब्लॉगिंग के माध्यम से हम इस कमी को दूर कर सकते हैं. हम चाहे तो ब्लागिंग में पूर्ण रूप से अपना कैरियर बना सकते हैं, या कुछ समय निकालकर कुछ नया लिख सकते हैं I लेखन की अपनी सीमाएं होती है, एक अच्छा लेखक वह है जो अपनी सीमाओं में रहकर,व अपने ज्ञान और क्षमतानुसार  बात को लिख डाले.
 ब्लॉगिंग के भी अपने अलग-अलग रूप होते हैं. करंट अफेयर्स, टेक्नोलॉजी,फूड कंटेंट, नॉलेज,पर्यटन,खानपान इत्यादि कितनी ही चीजों के ऊपर ब्लॉगिंग करी जा सकती है. यह अपने ऊपर निर्भर करता है कि हमें किसी फील्ड(क्षेत्र),का कितना ज्ञान है व हमारी क्षमताएं क्या है?
 ब्लॉगिंग चाहे हम जिस विषय के ऊपर लिख कर रहे हो, पढ़ने वाले को आपके अगले ब्लॉक का इंतजार होना चाहिए. उनकी जानकारी,उसे विषय के बारे में, आपके ब्लॉक के माध्यम से बढ़नी चाहिए. छोटी से छोटी चीजों के बारे में ज्ञानवर्धन होना चाहिए. ब्लॉक में नयापन वह एक उचित कंटेंट का होना आवश्यक है. ब्लॉकिंग मे कंटेंट एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है. उदाहरण स्वरूप किसी को टेक्नोलॉजी का अच्छा ज्ञान है, और वह व्यक्ति लिखने का शौकीन है तो वह उस  विषय के ऊपर अच्छा लिख सकता है, अपने ज्ञान से है  वह टेक्नोलॉजी को अपना कंटेंट बना सकता है. इसी प्रकार कोई व्यक्ति घूमने- फिरने का शौकीन है,साथ में वह लिखता भी है तो,वह अलग-अलग स्थानों पर घूम कर,उन जगहों के बारे में नई-नई बातों को,अपने ब्लॉक के माध्यम से सामने ला सकता है. उस क्षेत्र विशेष के खानपान,रहन-सहन,मौसम, दार्शनिक,व पर्यटन स्थलों,की जानकारी अपने ब्लॉक के माध्यम से दे सकता है.
 हर ब्लॉगर को अपनी सीमाओं, क्षमताओं व विषयांतर विषयों का ज्ञान,होना आवश्यक है. तभी वह एक कामयाब ब्लॉगर बन सकता है.
 ब्लॉगिंग में सबसे आवश्यक और महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति की रचनाएं "मौलिक" व, "स्वयं लिखित "होनी चाहिए. लेखनी कहीं से चुराई हुई ना हो, इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए. एक ही विषय पर अलग-अलग लोग लिख सकते हैं,परंतु आपका लिखा हुआ दूसरों से अलग, व ज्ञानप्रद होना चाहिए. आप अपनी बौद्धिक क्षमता अनुसार,अलग-अलग कंटेंट पर ब्लॉग लिख सकते हैं.
 ब्लॉगिंग के माध्यम से आप पाठकों के साथ सीधे तौर पर जुड़ सकते हैं, उनसे सीधा संवाद कर सकते हैं, उन तक अपनी बात सीधे तौर पर पहुंचा सकते हैं. ब्लागिंग में हिंसा, नग्नता,फूहड़पन,तथा किसी धर्म विशेष के बारे में अपशब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए. आपका ब्लॉक मौलिक व शुद्ध होना चाहिए. अच्छा ज्ञान ही अच्छे समाज का निर्माण कर सकता है.
 अगले ब्लॉक में,मैं,आपके सामने ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां लेकर आऊंगा, जिससे आपका ज्ञानवर्धन हो,वह आपको नई-नई जानकारियां प्राप्त हो I

योग का महत्त्व


भारतवर्ष में योग का काफी महत्व है। भारत में योग 5000 वर्ष से भी अधिक पुराना है।योग  शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द "युज"से हुई है, जिसका अर्थ होता है "जुड़ना", " इक्ट्ठा "होना । योग भी हमारे शरीर में, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों को इक्ट्ठा करके इनको जोड़ता है। योग से इंसान में एक अलग ही सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।योग की उत्पति हमारे भारतवर्ष में ही हुई थी।इसके पक्षचात ये विश्व के अलग-अलग देशों में फ़ैला।योग शब्द का उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद में होता है. बाद में हमारे महान ऋषि मुनियों और संतों ने योग को संपूर्ण पृथ्वी में फेलाया। हदप्पा और मोहनजोदड़ो में जो अवशेष मिले हैं, उनमें भी योग मुद्रा देखने को मिलती है।
योग का जनक "महर्षि पतंजलि"को कहा जाता है। अपने योगसूत्र में  उनहोने अलग-अलग प्रकार के योगो का वर्णन करके उन्हें एक सूत्र में व्यवस्थित किया है।
योग करने के अनेक फायदे हैं।योग से इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है। कितनी गंभीर बीमारियां है, जिनका इलाज योग द्वारा संभव है। योग करने से हमको भूख और नींद भी समय से आती है. योग इंसान के पlचन तंत्र को मजबूत करता है।योग करने से मनुष्य मानसिक रूप से मजबूत बनता है।विश्व के बड़े-बड़े उद्योगपति, व्यवसाई ,खिलाड़ी बड़े-बड़े लीडर  इत्यादी नीयमीत तौर पर योग करते हैंl
योग के सर्वभौमिक प्रभाव को देखकर संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है। छोटे-छोटे बच्चों को बचपन से योग करना चाहिए। उनके लिए "सूर्य- नमस्कार "सबसे बढ़िया योगासन हैं, जिनमें 12 आसन होते हैंl इन 12 आसनों को करके उनका शाररिक और मानसिक विकास होता है।हमें भी योग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए और नियमित रूप से योग करना चाहिए।

लोक पर्व इगास


दिवाली के 11 दिनों के बाद आज हमारे उत्तराखंड का लोक पर्व "इगास"धूमधाम से मनाया जा रहा है।इसे बड़ी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सवेरे-सवेरे घरो में पूजा पाठ के बाद पकवान बनाये जाते हैं। रात में भेला (एक प्रकार की मशाल) जलाकर उसे चारो तरफ घुमाकर, ढोल , बीन,और नगाड़ों के साथ डांस होता है। मान्यता है कि भगवान राम जी की अयोध्या वापसी आने की जानकारी हमारे पहाड़ों में 11 दिनों के बाद मिली, इसलिए इसे दिवाली के 11 दिनों के बाद मनाते हैं।एक और मान्यता इस दिन हमारे उत्तराखंड के वीर सैनिक, "माधो सिंह भंडारी "जी अपने वीर सैनिकों के साथ तिब्बत से युद्ध जीत कर, वापसी आए थे, उनके आने की खुशी में गांव वालो ने,शानदार दिवाली मानकर उनका स्वागत किया था। ये लोग दिवाली के 11 दिन बाद वापस आए थे, तभी से ये लोक पर्व "इगास" मनाया जाता है।

Friday, November 22, 2024

फैशन


आजकल फैशन का आया है वह दौर,
 जिसकी चर्चा है चारों ओर,
 क्या पहने हम,कब पहने हम,
 क्यों पहने हम,यह हमारी मर्जी है,
 मत टोको हमें,पहहने दो हमें,
  ये आजकल का स्टाइल है,
 ये हमारी अर्जी है I
 आया आजकल फैशन का है वह दौर,
जिसकी चर्चा है चारों ओर  I
 सूट सलवार अब छोड़ दिया,
 पल्लू,दुपट्टा,अब तोड़ दिया,
 साड़ी भी हो गई है रफ,
 अब तो फैशन आया है,
 बिल्कुल रफ एंड टफ I
 कपड़ा क्या है मालूम नहीं,
 सूती-तेरीकोट,का फर्क नहीं,
 फ्लैट, हाई- हील का आया है वह दौर,
 दो-चार कदम चलके गिरु कहीं और,
 आया आजकल फैशन का वह दौर.
 जिसकी चर्चा है चारों ओर I
 छोटी है ड्रेस पर हमें पता नहीं,
 बांहे उधेरी हैं,पर हमें दिखा नहीं,
 चूड़ी मांग-टीका कब छूटा, अब पता नहीं,
 जींस का चलन है अब तो चारों ओर,
 आया आजकल फैशन का वह दौर.
 जिसकी चर्चा है चारों ओर I
 टाइट कपड़े पहनकर लड़के सोचते हैं,
 बॉडी अब हमारी बन गई है,
 पर वह भूल जाते हैं जींस खिसक कर कहां गई है,
 टी-शर्ट जो पहन रखी है टाइट,
 पर क्या है उसकी हाइट?
 धोती-कुर्ता, पैंट-कमीज, ये भी थे कभी चारों ओर,
 आया आजकल फैशन का वह दौर.
 जिसकी चर्चा है चारों ओर I
 अर्धनग्न युवक-युवतियों को देख रहे हैँ,
 अपनी मर्यादा-संस्कृति को खो रहे हैं 
 रूप,रंग,श्रृंगार,यौवन को धो रहें है,
 विदेश (फ्रांस) से निकलकर आया है हमारी ओर,
 रोड मॉडल ऐसे बनाएं,जो बदनाम है चारों ओर,
 आया आजकल फैशन का वह दौर.
 जिसकी चर्चा है चारों ओर I
 सोलह- श्रृंगार  कभी करके तो देखो,
 पारंपरिक वेशभूषा कभी पहन करके तो देखो,
 पूर्वजो ने जो हमारे छोड़ा, उसे कभी धारण करके तो देखो,
 देव-तुल्य तुम्हें यही दिखोगे अपने चारों ओर 
 यही था फैशन का वह दौर,
 यही है फैशन का वही दौर I






पलायन

वो गांव का टूटा ढ़हता हुआ घर,

जर्जर हुआ और हुआ बेजर,
टूटने लगी है दीवारें, अंदर लगता है अब डर,   
वो गाँव का टूटा 
ढ़हता हुआ  घर,    
कभी रसोई में इजा (मां),तो चौंथर(आंगन) में 
अम्मा होती थी,
चूल्हे में मडुए की रोटी, साग, चावल और गौहत की दाल होती थी,
चौंथर को रोज़ गोबर से लिपा जाता था ,जो करता है ,
अब चर चर,
वो गांव का टूटा ढ़हता हुआ घर .
खेतो में खेती होती थी, गौशालाओ में गाये दुही जाती थी, 
भैसों को रोज़ नहलाया जाता, गरमी उनको ज्यादा होती थी,                                      बाछुर,गायें,दौड़ती थी सर सर,
वो गांव का टूटा ढ़हता हुआ घर।
आज दाथुली की धार टूटी,
कौटुवे की खान टूटी,
हौ की नव वान टूटी,
बाघ और मिनुक टर्रानी टर टर,
वो गांव का टूटा ढ़हता हुआ घर .
छुआरें का पेड़ टूटा, 
निम्बू,अखरोट,पीछे छूटा,
"काफल की झाड़ी"से अब लगता है डर,
वो गांव का टूटा ढ़हता हुआ घर।
दाड़िम अब झड़ रहे,
आम अब सड़ रहे,
"अमरूद "का अब पता नहीं,
काफ़ो, हंसौलु अब झड़े झर- झर,
वो गांव का टूटा ढ़हता हुआ घर।
लौट आओ फिर भी,
देवभूमि हमारी है,
पहाड़ यहाँ पुकार रहे,अभी कितनी ज़िम्मेदारी है,
देने वाली भी वही है, करने वाले भी हमीं है,
और कितना रहेंगे हम अकड़कर,
वो गांव का टूटा ढ़हता हुआ घर।
                    

दारु


दारू पी-पी कर ना कर मुझे बदनाम,
सब कुछ जानकार मैं क्यों हूं अनजान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचानI
 जहां भी जाएं, ददा,भुली आओ बैठो,
 दी (दो )पैग में लैंणू (लेता ), दी (दो ) तुम लो,
 कुछ तुम आपन सुनाओ, कुछ मेरी सुन लो,
 जब तक बोतल ना हो खत्म,तब तक मेरा क्या काम,
 मैं हूँ उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचान I
 भल (भला) काम हो,या हो दुख की घड़ी,
 बोतल खोलो, हमें दूसरों की क्या पड़ी,
 पी-पीकर कर सैणी(औरत )हो गई है परेशान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचान I
 समय-समय का फेर है, पी सबने,"बूबू "," बाबू" हो या हो मेरे "चाचू",
 आज बात अपने पर आ गई तो खराब हो गया मेरा नाम,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या यही है मेरी पहचान I
 शादियों में चार दिन पहले से चार दिन बाद तक,
 मातम में घाट से तेरहवी तक,
 ढूंग (पत्थर ),टीपने तक रुकी है, किसी तरह मेरी जान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या यही है मेरी पहचान I
 नौ रातो (नवरात्रि )में भक्त मैं ही हूं,
 घर में जागर लगी तो ईष्ट मैं ही हूँ,
 और तुम्हें क्या बतलाऊं अपनी पहचान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या,यही है मेरी पहचान I
फसल कहीं पके,सड़क कहीं बनें,या खुले कहीं पर काम,
 आंधी आए, बरसात आये, या आये बर्फीला तूफान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचान I
 गृह प्रवेश किसी का हो, नामकरण किसी का हो,
 मुंडन हो किसी का,या नया काम किसी का हो,
 क्यों नहीं लेते हैं हम किसी से ज्ञान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या यही है मेरी पहचान I
 देवभूमि है यह हमारी पहचानो इसको,
 विश्व में फैली हुई है संस्कृति हमारी,संभालो इसको,
 आज भी होता है आदर हर  एक रिश्तो का,
 पूजे जाते हैं,जहां आज भी छल-कपट और मशाण,
 मैं हूं उत्तराखंडी यही है मेरी पहचान I
 इतनी महान विरासत हमारी है,
 फिर यह बोतल कहां से तुम्हारी है?
 मैं हूं उत्तराखंड से, जो है मेरी जान 
 मैं हूं उत्तराखंडी बस यही है मेरी पहचान.
 मैं हूं उत्तराखंडी बस यही है मेरी असली पहचानI

Thursday, November 21, 2024

जय माँ नैथना देवी

हमारा उत्तराखंड देव भूमि कहलाता है। हमारे यहां हर तरफ, हर जगह देवी, देवताओं का वास है। यहां गाड़ (नदियों), गधेरे, जंगलों, पहाड़ों, कंदराओं, में अलग-अलग देवियों और देवताओं का वास है। यहां हर घर में अपने-अपने कुल देवी- देवता है, ईष्ट देव है, जो सबकी रक्षा करते है. नौबड़ा गांव के ऊपर नैथना पर्वत के शिखर पर श्री" नैथना देवी मंदिर" है। ये मंदिर माता की शक्ति पीठो में से एक है। मान्यता है कि जब भगवान शंकर जी, माता सती की मृत देह को लेकर,बरहमांड में विचरण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती माता की देह के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे, माता के अंग जहां जहां गिरे थे वो कालांतर में शक्ति पीठ कहलाते हैं.माता नैथना देवी भी उन्हीं शक्ति पीठों में से एक हैं।पर्वत की चोटी पर होने की वजह से यहां से चारो तरफ का नजारा अद्भुत हो जाता है।यहाँ की अलौकिक शक्तियों का मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है.माता की कृपा आप सभी पर बनी रहे.जय माता दी.

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...