Tuesday, December 17, 2024

सफर



क्या कभी आपने सोचा है कि जिंदगी एक सफर ही तो है, हमें तो बस चलते जाना है। इस सफर का अंत कहां है?, किसी को भी नहीं मालूम। बस चले जा रहे हैं, अपनी मंजिलों की तलाश में हम।
 उम्र के हर पड़ाव में सफर की परिभाषा, और तय मंजिलों का लक्ष्य,बदलता रहता है। उदाहरण के लिए एक छोटे बालक का सफर, विद्यालय तक का होता है, तथा मंजिल अच्छी शिक्षा पाना होता है। समय-समय पर मंजिले बदल जाती हैं,तो सफर भी बदलता रहता है। सफर तो जिंदगी भर चलता रहता है, शायद उससे आगे भी। सफर में भटकना और बिछड़ना भी बहुत मायने रखता है।
 अपनी-अपनी मंजिले भी,हर किसी को आसानी से नहीं मिलती, कुछ लोग तो राह में इतनी ठोकरें खा चुके होते हैं कि, दोबारा उठने की हिम्मत तक नहीं कर पाते।यही ठोकरें तो इंसान को मजबूत बनाती है, उसके आत्मबल को,नव संचार व,नव ऊर्जा प्रदान करती है। यह एक ऐसी अग्नि पैदा करती है, जिसमें तपकर इंसान या तो जलकर हार मान ले,या तपकर कुंदन बन जाये। किसी भी नए सफर में अनेकों साथी मिलते हैं, और फिर बारी आती है बिछड़ाव की। उदाहरण के लिए, किसी गाड़ी की अनजान सवारियांँ, सब बारी-बारी अपनी मंजिल पर उतरती रहती हैं, और एक दूसरे से बिछड़ती रहती हैं। शायद मिलते ही है लोग सफर में,बिछड़ने के लिये। कोई सफर किसी को क्षणिक खुशी,तो किसी को गहरा दर्द भी दे जाता है।
 सफर में चलते जाने की जो चुनौतियां होती हैं, वह व्यक्ति के आत्मबल को भी बढ़ाती हैं। सबसे बढ़िया सफर वह है,जो अकेले तय किया जाता है। अकेला चलना फायदेमंद रहता है, इससे व्यक्ति में आत्मविकास, आत्मविश्वास,व आत्मबल, में बढ़ोतरी होती है। भीड़ तंत्र का हिस्सा बनने की बजाय, अकेले अपनी मंजिल तक का सफर तय करना,अच्छा है। नये-नये सफर में व्यक्ति को, नई-नई जानकारियांँ मिलती रहती हैं। इससे व्यक्ति के ज्ञान,और अनुभव में, इजाफा होता है। अलग-अलग जगहों पर व्यक्ति को, अलग-अलग,रहन-सहन, खान-पीन, और नई चीजों का अनुभव होता है। वैसे भी,
 चार कोष में बदले पानी,
 चार कोष में वाणी।
 कभी-कभी सफर इंसान में एक, सकारात्मक बदलाव लाता है। कोई नया सफर, व्यक्ति की सोच, उसकी दिशा,और उसके व्यक्तित्व तक को बदल देता है। यह प्रभाव विभिन्न व्यक्तियों पर अलग-अलग हो सकता है।
 और अंत में, जिंदगी के सफर में अकेले ही आए थे,और अंत में अकेले ही जाएंँगे।
 सफर से यहां उद्देश्य केवल नई-नई जगहों पर,घूमना फिरना ही नहीं है, सफर तो रोज का है, हर किसी का है,पल-पल का है, आज और कल का भी है। मंजिलों से रोज मिलने का नाम सफर है, तो मंजिले ना मिले, तो हिम्मत ना हारना भी सफर है। सफर कामयाबी का भी है, और नाकामयाबी का भी है। सफर हिम्मत करने का नाम है, दोबारा खड़े होकर,गतिशील होने का नाम भी है। हर जीवन का संघर्ष,एक सफर ही तो है। निरंतर प्रयास करना, और किसी का हाथ थाम कर, उसको उसकी मंजिल तक छोड़ सको, तो छोड़ देना,यही सफर है। जो दूसरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाते हैं, ईश्वर खुद ही उनके लिए मार्ग बनाते हैं। इंसानियत और जिंदादिली ही एक नया सफर है।

Sunday, December 15, 2024

युद्ध और शांति

वैश्विक पटल पर इस समय,युद्ध की वजह से, पूरे विश्व की स्थिति,काफी भयावह बनी हुई है। क्या किसी भी समस्या का समाधान युद्ध द्वारा संभव हो सकता है?  इस प्रश्न का उत्तर सबके लिए अलग-अलग हो सकता है। युद्ध का परिणाम चाहे जो कुछ भी हो,परंतु एक चीज का हमेशा से विनाश होता आया है,और वह है,मानवता। युद्ध से सबसे अधिक क्षति, निर्दोष नागरिकों,को ही प्राप्त होती है। युद्ध से कितने मासूम लोग अपंग,अपाहिज,तथा अनाथ हो जाते हैं,भुखमरी और बदहाली का आलम होता है। युद्ध ग्रसित देश का मंजर, काफी भयावह और रुलाने वाला होता है।
 मासूमों और निर्दोषों की लाशों पर आखिर, युद्ध विजय कहांँ तक उचित,और न्याय संगत है। सबसे अधिक नुकसान तो मानव जाति का ही होता है। 
 वैश्विक पटल पर भी इस समय कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि, हमारी पृथ्वी ज्वालामुखी के मुँहाने पर बैठी है,बस उसके फटने का इंतजार है। कालांतर में हम दो विश्व युद्ध देख चुके हैं, प्रथम,व द्वितीय विश्व युद्ध।
 प्रथम विश्व युद्ध सन 1914 से 1918 तक चला था। यह युद्ध जर्मनी और इंग्लैंड, फ्रांस के मध्य चला था। इस विश्व युद्ध में लाखों की संख्या में लोग मारे गए थे। तदुपरांत द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक हुआ था। यह युद्ध जर्मनी के नाजीवाद,इटली के फासीवाद, जापान के शाही,"धुरी शक्तियों", व,"मित्र राष्ट्रों" के मध्य हुआ था। बाद में विश्व के अनेकों देश, इस युद्ध से जुड़ते चले गये। इस विश्व युद्ध में 70 देशों ने जल,थल,व नभ सेनाओं के माध्यम से, हिस्सा लिया था। इस युद्ध में जापान के दो शहरों, "हिरोशिमा और नाकासाकी ", के ऊपर परमाणु बमों से हमला हुआ था। इसका दीर्घकालिक व प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। विश्व में करोड़ों लोगों ने इस युद्ध में अपनी जान गंवाई थी। बमों के प्रभाव से उत्पन्न रेडिएशन से,कितने वर्षों तक यहां मानवता अपंग,और,अपाहिज पैदा हुई, जिसका कोई हिसाब किताब नहीं है।
 आज की स्थिति तो और भी अलग है। अब तो विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है। विश्व के अनेकों देशों के पास,घातक व नवीन तकनीक वाले हथियार आ चुके हैं। अब विश्व के अनेकों देश परमाणु हथियारों से संपन्न है।
 अनेकों देशों के पास हाईटेक और सुपर नोटिक हथियार हैं। डर इस बात का भी है कि बहुत से गलत मानसिकता वाले लोगों के पास भी,ऐसे हथियार हैं। ऐसे लोग अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए, मानवता को मिटाने और कुचलने से भी,पीछे नहीं रहते।
 युद्ध की भयावहता,और नुकसान को देखकर, इसका एक ही उपाय है, शांति। "शांति ",से ही युद्ध को टाला जा सकता है, व एक निर्णायक बोर्ड पर आकर,युद्ध को समाप्त किया जा सकता है।
 विश्व के बड़े और शक्तिशाली देश,यदि शांति की अपील करके,अपने साथ और अधिक राष्ट्रों को जोड़ें, तथा युद्ध स्तर पर कार्य करें, तो शांति बहाल की जा सकती है। यदि हम मानवता का बड़ा हनन,एक बार फिर से नहीं देखना चाहते हैं तो,शांति की बहाली बहुत आवश्यक है। शांति,प्रेम,और सौहार्द,से ही युद्ध को रोका जा सकता है,व एक निर्णायक लकीर खींची जा सकती है।

मेरे पहाड़ का एक आदमी

मेरे पहाड़ का एक आदमी,
 सीधा-साधा,भोला-भाला,
 दिल का था साफ,
सारी दुनिया से निराला।
 बचपन में माँ गई थी छोड़,
 मां की मृत्यु के बाद हो गया अकेला,
 पिता का व्यवहार फिर हो गया सौतेला,
 चाचा-चाची ने फिर,उसको पाला,
 समझ कर अपना लाड़ला, 
 बचपन से कुछ कमियांँ, उसमें दिखने लगी थी,
 स्वभाव उसका,थोड़ा गुस्स़ैल, थोड़ा शर्मीला,
 औरो से था हटकर,बचपन उसका,
 मिजाज बना फिर,उसका रंगीला।
 पढ़ाई-लिखाई में झुकाव ना था,
 स्कूल से कोई लगाव ना था,
 बौद्धिक स्तर उसका,बिन मांँझी नाव सा डोला,
 पर दिल का साफ था,वह दिलवाला।
 वक्त के साथ,उम्र भी उसकी बढ़़ रही थी,
 तरुण जवानी भी, धीरे-धीरे चढ़ रही थी,
 लोगों की मदद करना, जो बताया वो करना,
 बिना स्वार्थ सभी का काम,करने वाला,
 ऐसा था वो पागल मतवाला।
 पूरे गांँव में उसकी,एक अलग पहचान बन चुकी थी,
 किसी के लिए अच्छी,
 तो किसी के लिए उपवास का पात्र,
 बन चुकी थी, 
ऊपर वाले के अलावा,कोई भी ना था,उसका दुख-दर्द सुनने वाला,
 आंँसुओं को छुपाना सीख गया था,वो हिम्मतवाला।
 कभी कोई अपने पुराने कपड़े दे देता,
 कभी-कभी कोई खाना भी,उसको खिलाता,
 हंँस-हंँस के भोग लगाता,वो हर एक निवाला,
 खुश हो जाता फिर, उसको खिलाने वाला।
 फटे पुराने कपड़ों में भी,खुश रहता था वो,
 पैरों में जिंदगी भर,ना जूते-चप्पल कभी,       पहना था वो,
 ना धन-दौलत की चाहत,ना मोह-माया वाला,
 जगमगाते सितारों में, ध्रुव तारे वाला।
 वक्त का पहिया फिर आगे घूमा......
 बालों में आ चुकी थी, अब सफेदी उसकी,
 दिखने लगी थी,शरीर में कमजोरी भी उसकी,
 टूटे पीले दांतों में,खीसें निपोरने वाला,
 दर्पण जैसा साफ,आचरण वाला।
 और फिर एक दिन,चला गया वो सबको हंँसाने वाला,
 पत्थर को भी मोम जैसे,पिघलाने वाला,
 उसकी मौत पर फिर,सब एक होये थे,
 अपनों से ज्यादा, बाहर वाले वहाँ रोएं थे।
 हर दूसरे गांँव में दोस्तों, वैसा आदमी मिल ही जायेगा,
 किसी चीज का ना उसको लालच होगा,
 बस अपनों के प्यार का भूखा होगा,
 दुत्कारो मत, उन्हें प्यार दो,
 अपनों ने जिन्हें छोड़ा,समाज से उन्हें जोड़ दो।
 प्यार से गले लगाकर,कुशल-क्षेम उनकी पूछ लो,
 जाना तो है एक दिन सभी को, कर्म अपने सुधार लो।





Saturday, December 14, 2024

"जिंदगी और मौत"

जिंदगी और मौत दो सहेलियांँ थी,
 रहती थी एक दूसरे से,खफा-खफा,
 फिर भी यह अजीब पहेलियांँ थी।
 एक दिन किसी तीसरे ने,इन दोनों से पूछा,
 तुम दोनों क्यों,एक दूसरे से अलग-अलग रहती हो?
 बनाया तुम दोनों को ऊपर वाले ने,
 आपस में तनकर,तुम दोनों क्यों,फिर यह दर्द सहती हो?
 दोनों चुप थे,इस बात को लेकर,
 मैं बेहतर या तू बेहतर,
 बाकी सब बातों को छोड़,
 यह कैसे जज्बात, यह कैसी अजब सी होड़।
 थोड़ी चुप्पी, फिर जिंदगी बोली,
 मैं अच्छी हूंँ, मैं सच्ची हूंँ,
 जीवन जीना, सपने देखना,पूरे करना,मस्त- जिंदगी,हसीन सपने, सब कुछ तो मैं देती हूंँ।
 मेरे होने से, चारों तरफ नजारे हैं,
 बागों में मस्त बहारें हैं,
 अंँबर में टिमटिमाते सितारे हैं।
 चारों तरफ आहटें हैं,
 दुनिया में मुस्कुराहटें हैं,
 सोच समझ कर कह रही हूंँ,
 मैं अच्छी हूंँ, मैं बेहतर हूंँ।
 मौत तो बस रुलाती है,
 नाते सभी तुड़ाती आती है,
 सपने सभी छुड़ाती है,
 जिंदगी ने अपनी बात रखी थी।
 मौत अभी तक सुन रही थी,
 अपनी बात रखने की,अब धुन जगी थी,
 बोली मौत सुन जिंदगी, मैं रुलाती हूंँ,
 तो क्या तू नहीं रुलाती?
 इस पूरी दुनिया में कितनों को,
 क्या भूखे पेट तू नहीं सुलाती,
 हताशा और निराशा में, 
दुख-दर्द,और कुंठाओं में,
 दरकते रिश्ते, टूटते विश्वास,
 चकनाचूर हुये सपनों में,
 क्या मनुष्य की आंखों से नीर,
 तुम नहीं बहाती?
 अमीरी और गरीबी, जिंदगी की दो जिंदगानियों का,
 जमीन-आसमान सा फर्क है, इन दोनों की कहाँनियों का।
 टूटे ख्वाब, अधूरे सपने, रेंगती जिंदगी, पापी पेट की आग, गरीबों की कहानियाँ हैं,
 सुनहरे सपने,ठांट-बांट,रंगीन मिजाज,
 चिर-यौवन साथ, अमीर चिंगारियांँ हैं।
 फिर आगे तनकर बोली मौत,
 मैं कोई चेहरा नहीं बदलती,
 कोई प्राणी, कैसा भी हो,मेरे सामने सब एक समान,
 पंचतत्वों मे विलीन होना है सबने,
इसलिए मैं हूंँ महान।
 अब निर्णय की बारी थी,
 तीसरे शख्स ने कर ली तैयारी थी,
 तुम दोनों आपस में क्यों लड़ते हो?
 एक-दूसरे के पीछे क्यों पड़ते हो?
 इस लोक से परलोक, जाने का खेल है सारा,
 मोह-माया, प्रेम-बंधन, अपना पराया, मिथ्या है सारा।
 जिंदगी अगर आई है,तो मौत भी आएगी,
 यहांँ कोई ना रह पाएगा,आगे करम गति बताएगी,
 जीवन में ईश भक्ति है,तो जीवन में संतोष है,
 ना कोई कष्ट, ना कोई चिंता,और ना कोई दोष है।
 मौत सभी की आनी है,
 यह बात जानी और पहचानी है,
 कर्म मानव के अच्छे हैं तो,
 हम ईश्वर के सच्चे हैं तो,
 मोक्ष मिलेगा, हरि चरणों में,
 मुक्ति मिलेगी, प्रभु भक्ति में।








  

  

Thursday, December 12, 2024

"आंँसुओं "की कहानी

आंँसुओं की भी अपनी कहानी है,
 दिल में है दर्द,और आंखों में पानी है,
 समझ गए तो ठीक,
वरना मौजों की मस्त रवानी है।
 पीड़ है दिल में, घाव मन-मस्तिष्क में,
 सिल दिए होंठ भी, इसी कश्मकश में,
 सोचा था कोई जान ना पायेगा,हमारी कहानी,
 पर आंँसुओं ने कह दी अपनी जुबानी।
 बता के भी रोये,छुपा के भी रोये,
 अपना दुख भूल के,दूसरों को,हंँसा के भी रोये,
 बरसातों में नाव को, किनारे पर छोड़,
 हम अपने ख्यालों में थे खोये।
 खुशी में भी निकले,गम में भी निकले,
 दिन में भी निकले, शाम को भी निकले,
 हाल तो यह था कि, आग से कम,
 पानी से, ये ज्यादा पिघले।
 आंँसू-आंँसू में भी होता है फर्क,जान लो,
 किसी के छलके हैं, तो उनकी कदर जान लो,
 दूसरों ने जो दिये आंँसू,वह तो थम ही जाएंगे,
 पर अपनों के दिये आंँसू है नासूर, तुम इतना मान लो।
 किसी को मजबूत, तो किसी को कमजोर कर देते हैं,
 किसी को इस ओर,तो किसी को उस ओर कर देते हैं,
 ये तो वों फनकार है जो,
 पत्थर को मोम,और रात को भोर कर देते हैं।
 इन्हें (आंँसुओं को) दबाना भी सीख लो,
 इन्हें छुपाना भी सीख लो,
 जमाने को यह ना लगे, कि कमजोर हो तुम,
 इसलिए इन्हें अपनी ताकत बनाना भी सीख लो।
 मां की आंँखों के,ममता के आंँसू,
 भाई-बहनों की आंँखों के, निश्चल प्रेम के आंँसू,
 ना जाने कहांँ, खो गए हैं अब,
 हर आंँखों से बहते, निस्वार्थ से आंँसू।
 इन आंँसुओं को अपनी,ढाल बना लो अब,
 युद्ध के मैदान में हम अकेले,यही पुकार बना लो अब,
 कोई साथ दे,या ना दे,
 इन्हें (आंसुओं को) ना व्यर्थ बहने देंगे, यही जज्बात बना लो अब,
 "मैं अब बहुत अकेला हूंँ ",या,
 "अब अकेला बहुत हूंँ मैं ",
 इसी को अपने दिल की आवाज बना लो अब।







Wednesday, December 11, 2024

सत्य की खोज

क्या कभी आपने,सत्य की खोज करने की कोशिश करी है?अपने आप में यह प्रश्न,बड़ा अजीब भी है,और बहुत गहरा भी। हर किसी के मन में यह प्रश्न नहीं आ सकता। सबसे पहले तो यह जानना पड़ेगा कि सत्य क्या है?
 क्या केवल जो दिखता है,वह सच है?या सच बोलना ही सत्य है? यह वाकई में एक गूढ़ प्रश्न है।इस विषय के ऊपर अनेकों धर्मग्रंथ, व पुस्तकें हैं।सब अपने हिसाब से सत्य का मूल्यांकन करते हैं।
सत्य की खोज के लिए बाहरी संसार में भटकने की आवश्यकता नहीं होती। महान सनातन धर्म में, अनेकों ऋषियों, मुनियों, व तपस्वियों ने कठोर तप-साधना, करके, "सत्य के रहस्य ",पर्दा हटाया था।इसके(सत्य के), रहस्य को जानने के लिए आत्मबल, आत्म- चिंतन,ध्यान, योग व बौद्धिक क्षमता की मजबूती अनिवार्य है।अपने भीतर झांक कर, खुद में सत्य की खोज करना बहुत बड़ी बात है।जो मनुष्य इस रहस्य को जान जाता है, उसके लिए फिर सभी मार्ग सुगम हो जाते हैं।
 सत्य में बहुत शक्ति होती है, एक सच हजार झूठों को पछाड़ देता है।सत्य अकेला हो सकता है,परंतु कमजोर नहीं।सत्य के आगे तो बड़ी से बड़ी ताकतें भी झुक जाती है.
 सबके जीवन में इसकी परिभाषा और  
  एहसास अलग-अलग हो सकता है, किंतु निचोड़ एक सा होता है।
 सत्य का सार, और,"अंतिम सत्य" क्या है?
 मानव जीवन का अंतिम सत्य है, "आत्मा", जो हर जीव में है।एक निश्चित अवधि के उपरांत, हर आत्मा का परमात्मा में,विलय हो जाता है।शरीर नश्वर है, परंतु आत्मा अजर- अमर है। संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना उस परमेश्वर ने की है, आत्मा भी उन्हीं का हिस्सा है। जो एक निश्चित समयावधि के बाद, दोबारा परमेश्वर में,विलीन हो जाती है।बाकी सब कर्मों का खेल होता है. कर्मों के हिसाब से ही आत्मा को भिन्न-भिन्न प्रकार की योनियाँ मिलती है. अच्छे और सत्कर्मों से, अच्छी योनी, व बुरे कर्मों से ख़राब योनी.उस ईश्वर के लिए हमें,समय अवश्य निकालना चाहिये।प्रभु भक्ति और एकाग्र मन से, सत्य की खोज अवश्य करनी चाहिए।भक्ति,प्रार्थना,व योगों के माध्यम से,यह मार्ग सरल हो जाता है। सत्य की खोज करके,सत्य को जान लेना, किसी वरदान से कम नहीं है।

"अपने में - अपने आप की तलाश"

दिल में उठ रहे जज्बातों को,समेटने
के लिए,
  भीतर बहने वाले ज्वालामुखी को, शांत करने के लिए,
 एकांत में,एकांत को ढूंढने के लिए,
 बंजर जमीनों में,नई फसल उगाने के लिए,
 करी है क्या कभी खुद से बातें?               अपने में, अपने आप को तलाशने के लिए I
 अंधेरे को मिटाने वाले उजाले के लिए,
 अमावस की रात में, भोर के तारे के लिए,
 पतझड़ में उस,नवजीवित पौधे के लिए,
 सूखे हुए पुष्पों में,उस गुलाब की सुगंध के लिए,
 करी है क्या कभी खुद से बातें?
 अपने में, अपने आप को तलाशने के लिए I
 तनाव,अवसाद के पहाड़ को गलाने के लिए,
 जलती हुई गर्मी में, एक सुखद छांव के लिए,
 मरुभूमि में तप रहे पथिक को, पानी की हर एक बूंद के लिए,
 दुख रूपी धुंध की चादर को, हटाने के लिए,
 मनोबल के वेग को बढ़ाने के लिए,
 हार के भय को,जीत बनाने के लिए,
 करी है क्या कभी खुद से बातें?
 अपने में, अपने आप को तलाशने के लिए I
 आग में जलकर,खुद को कुंदन बनाने के लिए,
 अपनी नींद को छोड़,दूसरों को जगाने के लिए,
 स्वयं विषपान कर ,दूसरों को अमृत देने के लिए,
 गिरे आत्म बल को, लौह स्तंभ बनाने के लिए,
 आत्मा में उस" परमपिता परमात्मा "को मिलाने के लिए,
 करी है क्या कभी खुद से बातें?
 अपने में, अपने आप को तलाशने के लिए I

Tuesday, December 10, 2024

इको फ्रेंडली फैब्रिक

फैशन जगत में आज का समय इको फ्रेंडली फैब्रिक का है. जो फैब्रिक हमारे पर्यावरण के अनुकूल हो,और जिससे पर्यावरण को हानि ना पहुंचे,वह इको फ्रेंडली फैब्रिक कहलाते हैं. फैब्रिक मुख्यतः दो तरह के होते हैं, नेचुरल और सिंथेटिक फैब्रिक.
 नेचुरल फैब्रिक------ जो फैब्रिक हमें कुदरती तौर पर पेड़-पौधों,वह जानवरों इत्यादि से, प्राप्त होते हैं,वो नेचुरल फैब्रिक कहलाते हैं.
 इको फ्रेंडली फैब्रिक-------- नेचुरल फैब्रिक में से भी वह फैब्रिक, जो हमारे पर्यावरण के अनुकूल होते हैं,तथा वह उसे(पर्यावरण को), ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते,उन्हें इको फ्रेंडली फैब्रिक कहते हैं.
 सिंथेटिक फैब्रिक---------- जो फैब्रिक इंसानों द्वारा तैयार किया जाता है उसे सिंथेटिक फैब्रिक कहते हैं. यह फैब्रिक पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाता है.
 फैशन जगत में अब तक, "फास्ट फैशन" का दौर था.फास्ट फैशन के लिए फैब्रिक में, बायोकेमिकल,डाई,इत्यादि हानिकारक चीजों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में होता था, जिससे पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता था. परंतु अब अधिकतर फैशन डिजाइनर,इस बात को समझ चुके हैं, अब वो अपने फैशन में,अधिक से अधिक इको फ्रेंडली फैब्रिक का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह फैब्रिक पर्यावरण के अनुकूल होता है. निम्नलिखित में हम कुछ इको फ्रेंडली फैब्रिक की बात करते हैं.
 सिल्क फैब्रिक------ सिल्क का कपड़ा कीड़ों से ही तैयार किया जाता है. सिल्क फैब्रिक के लिए कीड़ों का पालन किया जाता है. सिल्क प्राप्त करने के दौरान अधिकतर कीड़े
 मर भी जाते हैं. परंतु इसकी तुलना में अब बनाना फैब्रिक है.
 बनाना(केला) फैब्रिक------ केले के पेड़ से जो कपड़ा तैयार होता है उसे, बनाना फैब्रिक कहते हैं. यह फैब्रिक केले के पेड़ के,"तने" से तैयार किया जाता है. यह कपड़ा सिल्क के कपड़े के समान ही नर्म और मुलायम होता है.
 केले के तने में फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है, जो कि इसे और इको फ्रेंडली बनाने में मदद करता है. तने की बाहरी हिस्से से,जो फैब्रिक तैयार होता है,वह थोड़ा सस्ता होता है. परंतु आंतरिक हिस्से से,जो फैब्रिक तैयार किया जाता है,वह ज्यादा कीमती होता है क्योंकि अंदर वाला हिस्सा,और ज्यादा मुलायम होता है.
 बेम्बू (बांस )फैब्रिक --------- बांस से बने फैब्रिक भी फैशन जगत में तेजी से, फैल गये हैं. बांस की खास बात यह होती है,कि यह आसानी से,व कम पानी वाली जगह पर, लगाया जा सकता है. यह बड़ी जल्दी-जल्दी बढ़ता है, और कम समय में चारों तरफ फैल भी जाता है.बांस पूर्णत, "बायोडिग्रेडेबल" होता है, अर्थात यह मिट्टी में पूरी तरह गलनशील होता है,और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचाता. बांस में भी भरपूर मात्रा में, फाइबर होता है. कॉटन के मुकाबले,बांस से बने कपड़े, सोखने की क्षमता ज्यादा रखते हैं. इससे बने कपड़े नर्म और मुलायम होते हैं.बांस में," एंटी बैक्टीरियल "गुण होने के कारण,इन कपड़ो से दुर्गंध भी नहीं आती है.
 ऑर्गेनिक कॉटन फैब्रिक(जैविक सूती )------- इसी प्रकार सूती फैब्रिक भी अब, जैविक तरीके से तैयार हो रहे हैं. जैविक खेती से पानी की बचत भी होती है. पहले अधिक मात्रा में कपास के लिए, इसकी खेती जल्दी-जल्दी करी जाती थी, और जल्दी फसल प्राप्ति के लिए,इसमें,"केमिकल्स व फर्टिलाइजर्स ",का इस्तेमाल होता था.
 यह,केमिकल और फर्टिलाइजर्स,हमारे पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदायक होते हैं.ज्यादा फसल के लिए,पानी का इस्तेमाल भी ज्यादा होता था. परंतु जैविक खेती में इन चीजों के इस्तेमाल नहीं किया जाता, और यह हमारे पर्यावरण के अनुकूल भी है.
 इसी प्रकार और फैब्रिक भी हैं,जो इको फ्रेंडली होते हैं, जैसे कि भांग,अनानास, इकोनिल,खादी, इत्यादि.इनसे बने हुए, कपड़े,बैग,जूते,पर्स, और सामान भी,आसानी से बाजार में उपलब्ध है.हमें भी अपने पर्यावरण के अनुकूल, इको फ्रेंडली फैब्रिक को बढ़ावा देना चाहिए. एक," स्वच्छ पर्यावरण "में ही,"स्वस्थ समाज "का निर्माण हो सकता है.


टेक्नोलॉजी

टेक्नोलॉजी का अर्थ होता है, कि विज्ञान, आधुनिक तकनीक, उपलब्ध संसाधनों द्वारा उत्पादों का निर्माण व विकास करना. टेक्नोलॉजी हर समय विशेष पर,बदलती रहती है, क्योंकि विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए आविष्कार हो रहे हैं. आधुनिक से आधुनिकतम तकनीकों के द्वारा, टेक्नोलॉजी में परिवर्तन होता रहता है. जिस देश की टेक्नोलॉजी जितनी आधुनिक होगी,वह देश उतना ही प्रगतिशील होगा.
 टेक्नोलॉजी में कला,साहित्य,विज्ञान,गणित, इत्यादि,सभी कुछ समाहित होता है. टेक्नोलॉजी हर क्षेत्र विशेष के साथ जुड़ी होती है, जैसे कि ऑटोमोबाइल,कंप्यूटर,नैनो- चिप,अंतरिक्ष,डिफेंस,बायोटेक्नोलॉजी, इत्यादि.वह क्षेत्र उतना ही आगे बढ़ता चला जाता है जिसकी तकनीक(टेक्नोलॉजी), समय के साथ,बदलती और सुधरती जाती है.
 आधुनिक टेक्नोलॉजी के द्वारा मानव का जीवन,काफी सरल,व आसान,हो गया है.
 उदाहरण के लिए इंटरनेट सेवा की आधुनिक टेक्नोलॉजी आने के बाद,पूरा विश्व जैसे एक मुट्ठी में आ गया हो. विश्व के विकसित देश, 6g,7g टेक्नोलॉजी, पर कार्य कर रहे हैं. संचार माध्यम के द्वारा पूरा विश्व,एक दूसरे के नजदीक आ गया है. विश्व के किसी कोने में, अगर कोई घटना घटित होती है, तो सेंकड़ो में वह वायरल होकर,घर-घर तक पहुंच जाती है.
 टेक्नोलॉजी ने मानव विकास को काफी आसान बना दिया है.
 परंतु जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी के,अनेकों फायदे हैं,तो उसके नकारात्मक प्रभाव भी काफी है. अक्सर हम टेक्नोलॉजी को,और आधुनिकतम बनाने के चक्कर में,प्रकृति से बेवजह छेड़छाड़ कर बैठते हैं, यह कदम बड़ा नुकसानदायक होता है. इसकी वजह से प्रदूषण बढ़ना,क्लाइमेट चेंज होना,गंभीर बीमारियों का पैदा होना, तथा फैलना, ओजोन परत का पतला,व उसमें छेद होना, जैसे गंभीर प्रभाव पड़ते हैं. यह समस्त जीवों, (मानव सहित),के लिए, काफ़ी घातक,व हानिकारक होता है. इनसे भूगर्भीय हलचलें तेज होने के साथ-साथ,अनेकों तूफान,व भूकंप इत्यादि भी आते हैं.
 अंतत हमें, प्रकृति के साथ मिलकर चलना पड़ेगा, हमें अपनी तकनीकों को, विकसित करने के साथ-साथ प्रकृति का ध्यान भी रखना पड़ेगा. उन्नत टेक्नोलॉजी के साथ, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ ना हो, पर क्या ऐसा संभव है? इस सवाल का जवाब समस्त मानव जाति को, मिलकर खोजना पड़ेगा,और इसका समाधान करना पड़ेगा.


Monday, December 9, 2024

हँंसने की कला

हमें अपने जीवन में हंँसने की कला सीखना, बहुत जरूरी है. आजकल की इस भागम-भाग,व मारामारी वाली जिंदगी में, व्यक्ति के पास वक्त का बहुत अभाव है. व्यक्ति के पास सुख,साधन,संपन्नता की सभी वस्तुएं होने के बावजूद,उसके जीवन में एक तनाव सा बना रहता है. सब कुछ होते हुए भी वह खुश नहीं है, इसकी सबसे बड़ी मुख्य वजह है कि आज इंसान,हंँसना भूल चुका है. हंँसने के लिए आज व्यक्ति के पास, वक्त ही नहीं है. ऐसे में अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए,हंँसने की कला सिखना,बहुत जरूरी है.
 यह हमारे स्वस्थ,व अच्छी जीवन शैली से भी, जुड़ा हुआ है.
 हंँसने की कला के अनेकों फायदे हैं. हंँसने की कला,स्वयं से, समाज से, तथा विज्ञान से भी जुड़ी हुई है. इसका सभी पर सकारात्मक असर ही पड़ता है.
 हमारी हंँसी को, " सौ मर्जों की एक दवा", बताया गया है, हंँसने से हमारे,दिल व फेफड़े  मजबूत बनते हैं, उनकी अच्छी खासी कसरत हो जाती है. हंँसने से हमारे शरीर में, अतिरिक्त कैलोरी बर्न होती है. मतलब दिल खोल के हंँसने से हमारा फैट भी कंट्रोल रहता है.
 हंँसने से हमारे शरीर में,अच्छे हार्मोन बढ़ते हैं, रक्त संचार,सुचारू रूप से होता है. हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. मतलब दिल खोलकर हंँसने से, हम कई बीमारियों से भी बचे रह सकते हैं.
 इसलिए हमें खुश रहने,व हंँसने के लिए,नये-नये बहाने ढूंढते रहना चाहिए. अब तो अपने जीवन में तनाव कम करने के लिए, जगह-जगह पर, "लाफिंग क्लास "भी होती है. जिससे हमारे जीवन में तनाव कम हो,व हमारा जीवन आरामदायक, वह सरल बने.
 सबसे बढ़िया तब होता है,जब कोई इंसान अपने आप पर हंँसना सीख जाता है. वास्तव में यह कठिन कार्य भी है, परंतु इसके बाद व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत बन जाता है, तथा अपने जीवन की कितनी परेशानियों से बाहर निकल सकता है.
 इसलिए हमें अपने जीवन में एक अच्छी आदत खुश रहना, तथा दूसरों को हंँसने -हंँसाने की डालनी चाहिए. खुद भी हंँसो और दूसरों को भी हंँसाओ, जीवन इसी का नाम है.

Sunday, December 8, 2024

"यम"और "मनुष्य"

मृत्यु शैय्या पर लेटा था एक मानव,
 निकट आ गया ये कैसा दानव,
 जिंदगी अब हार गई थी,
 मौत,विजय पताका लहरा रही थी,
 प्राण पखेरू उड़ गए अभी तो,
 डोर सांसों की थम गई तभी तो,
 सामने खड़े थे अब,यम महाराज,
 बोले याद अब तू कर, अपने पल-पल के काम काज,
 पल भर में याद करने लगा वो,बचपन से मृत्यु तक का सफर,
 परंतु याद उसे ना आया, कभी करी हो,उसने किसी की कदर,
 संगी-साथी, यारी-दोस्ती,या फिर रिश्तेदार,
 बार-बार छल किया था सबसे,जिसका वो था जिम्मेदार,
 बोले यम,चल फिर मानव,यमलोक तुझे ले चलता हूं,
 तेरे अच्छे बुरे कर्मों का फल, तुझे वही देता हूँ,
 तेरे एक-एक कर्म,दर्ज है मेरे बही खाते में,
 उनसे ही तेरी जगह निश्चित होगी,स्वर्ग या नरक में,
 सुनकर आत्मा, अब तो थर्र-थर्र कांपने लगी थी,
 करके वो भैंसे की सवारी, अब तो डरने लगी थी,
 मन ही मन वो करती विचार,
 क्या है मेरी किस्मत का द्वार,
 कैसा होगा स्वर्ग? क्या नरक का हाल?
 हाय! क्यों आया मेरा यह काल,
 हिम्मत करके बोली (आत्मा) यम से,मैं हूं अबोध!क्या इतना बता सकते हो,
 अंतर क्या दोनों में है,मुझे इतना समझा सकते हो ?
 हंसते हुए बोले यम,चल पहले तुझको,भेद इनके बीच का,समझाता हूं मैं,
 आगे तेरे कर्मों का भाग्य, तुझे बतलाता हूं मैं,
 तुझको पहले, नरक की सैर करवाता हूं,
 होता है क्या, दुष्ट आत्माओं के साथ, तुझे यह दिखलाता हूं,
 लेकर यम आत्मा को,आ गये थे पाताल लोक,
 धरती के नीचे,गहराई में, डरावना सा, कैसा यह विचित्र संजोग,
 नरक लोक का द्वार खोलते ही देखा, दुष्ट आत्मायें,तड़प रही थी,
 गर्म तेलों की कड़ाहें थी, भीषण अग्नि चारों तरफ धधक रही थी,
 उस खौलते तेल में,उन्हें डुबाया जा रहा था,
 प्रचंड अग्नि में फिर, उनको जलाया जा रहा था,
 चारों तरफ भीषण दुर्गंध फैली थी,
 रक्त,पीप,गंदगी,व मांस की,वहां थैली थी,
 वहां फैली थी मारा-मार,
 दुष्ट आत्माएं करती थी चीत्कार,
 सब एक दूसरे के लहू के प्यासे,
 हाथों में उनके, रक्तरंजित गंडासे,
 एक क्षण भी वहां रुकना अब मुश्किल था,
 चलो प्रभु अब स्वर्ग लोक,उसका बार-बार यही कहना था,
 लेकर यम फिर उस आत्मा को,पहुंचे फिर स्वर्ग लोक,
 धरती के ऊपर विराजमान था यह अद्भुत दिव्य लोक,
 द्वार खोलते ही सैकड़ो सेवक, वहां उपस्थित थे,
 गुलाब जल,व सुगंधित माला,उनके हाथों में सुशोभित थे,
 गजब के आसन,मधुर गायन, नृत्य करती सुंदर अप्सरायें थी,
 पवित्र वातावरण,स्वादिष्ट व्यंजन, सारी सुख सुविधायें थी,
 चारों ओर अद्भुत प्रेम का वातावरण,
 चारों तरफ सुख ही सुख, दुख का ना कोई आवरण,
 जाने को वहां से दिल ना करता,
 उफ़!कैसा विचित्र सम्मोहन,
 झंझोड़ कर उस आत्मा को बोले यम,चलते हैं अब यम लोक,
 देख के तुम्हारे कर्मों के,बही खाते,तय करते तुम्हें जाना किस लोक,
 तब थर्र-थर्र करके काँपने लगी आत्मा,
 याद आए तब उसको परम परमात्मा्,
 जाना उसे किस लोक,उसे अब यह ज्ञान था,
 फिर भी,सारी उम्र ना जानें,वह क्यों अनजान था,
 हम सब का हाल भी है वैसा,
 मिलता फल वहां जैसे को तैसा,
 दान-पुण्य,संतोष,प्रभु भक्ति,
 आसान होती है इनसे, प्राणों की मुक्ति,
 दूसरों की सेवा,मदद व अहंकार से दूरी,
 जो करें ईश्वरभक्ति,उनकी हर इच्छा होती है पूरी,
 मन में अगर, "परम आनंद और संतोष "है,
 सबसे सुखी, और स्वर्ग लोक,उसके लिए फिर यही है.










लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...