Tuesday, December 17, 2024

सफर



क्या कभी आपने सोचा है कि जिंदगी एक सफर ही तो है, हमें तो बस चलते जाना है। इस सफर का अंत कहां है?, किसी को भी नहीं मालूम। बस चले जा रहे हैं, अपनी मंजिलों की तलाश में हम।
 उम्र के हर पड़ाव में सफर की परिभाषा, और तय मंजिलों का लक्ष्य,बदलता रहता है। उदाहरण के लिए एक छोटे बालक का सफर, विद्यालय तक का होता है, तथा मंजिल अच्छी शिक्षा पाना होता है। समय-समय पर मंजिले बदल जाती हैं,तो सफर भी बदलता रहता है। सफर तो जिंदगी भर चलता रहता है, शायद उससे आगे भी। सफर में भटकना और बिछड़ना भी बहुत मायने रखता है।
 अपनी-अपनी मंजिले भी,हर किसी को आसानी से नहीं मिलती, कुछ लोग तो राह में इतनी ठोकरें खा चुके होते हैं कि, दोबारा उठने की हिम्मत तक नहीं कर पाते।यही ठोकरें तो इंसान को मजबूत बनाती है, उसके आत्मबल को,नव संचार व,नव ऊर्जा प्रदान करती है। यह एक ऐसी अग्नि पैदा करती है, जिसमें तपकर इंसान या तो जलकर हार मान ले,या तपकर कुंदन बन जाये। किसी भी नए सफर में अनेकों साथी मिलते हैं, और फिर बारी आती है बिछड़ाव की। उदाहरण के लिए, किसी गाड़ी की अनजान सवारियांँ, सब बारी-बारी अपनी मंजिल पर उतरती रहती हैं, और एक दूसरे से बिछड़ती रहती हैं। शायद मिलते ही है लोग सफर में,बिछड़ने के लिये। कोई सफर किसी को क्षणिक खुशी,तो किसी को गहरा दर्द भी दे जाता है।
 सफर में चलते जाने की जो चुनौतियां होती हैं, वह व्यक्ति के आत्मबल को भी बढ़ाती हैं। सबसे बढ़िया सफर वह है,जो अकेले तय किया जाता है। अकेला चलना फायदेमंद रहता है, इससे व्यक्ति में आत्मविकास, आत्मविश्वास,व आत्मबल, में बढ़ोतरी होती है। भीड़ तंत्र का हिस्सा बनने की बजाय, अकेले अपनी मंजिल तक का सफर तय करना,अच्छा है। नये-नये सफर में व्यक्ति को, नई-नई जानकारियांँ मिलती रहती हैं। इससे व्यक्ति के ज्ञान,और अनुभव में, इजाफा होता है। अलग-अलग जगहों पर व्यक्ति को, अलग-अलग,रहन-सहन, खान-पीन, और नई चीजों का अनुभव होता है। वैसे भी,
 चार कोष में बदले पानी,
 चार कोष में वाणी।
 कभी-कभी सफर इंसान में एक, सकारात्मक बदलाव लाता है। कोई नया सफर, व्यक्ति की सोच, उसकी दिशा,और उसके व्यक्तित्व तक को बदल देता है। यह प्रभाव विभिन्न व्यक्तियों पर अलग-अलग हो सकता है।
 और अंत में, जिंदगी के सफर में अकेले ही आए थे,और अंत में अकेले ही जाएंँगे।
 सफर से यहां उद्देश्य केवल नई-नई जगहों पर,घूमना फिरना ही नहीं है, सफर तो रोज का है, हर किसी का है,पल-पल का है, आज और कल का भी है। मंजिलों से रोज मिलने का नाम सफर है, तो मंजिले ना मिले, तो हिम्मत ना हारना भी सफर है। सफर कामयाबी का भी है, और नाकामयाबी का भी है। सफर हिम्मत करने का नाम है, दोबारा खड़े होकर,गतिशील होने का नाम भी है। हर जीवन का संघर्ष,एक सफर ही तो है। निरंतर प्रयास करना, और किसी का हाथ थाम कर, उसको उसकी मंजिल तक छोड़ सको, तो छोड़ देना,यही सफर है। जो दूसरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाते हैं, ईश्वर खुद ही उनके लिए मार्ग बनाते हैं। इंसानियत और जिंदादिली ही एक नया सफर है।

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