जवानी में गुरुर,ताकत,और अहंकार था,
जबकि बुढ़ापा शांत,निश्चल, और कमजोर था.
हंसने लगी जवानी,बुढ़ापे को देखकर !
फिर सुनाई बुढ़ापे ने अपनी कहानी, घुटने टेक कर.
कभी मैं भी था तुम्हारी तरह जवान,
दिल में मेरे भी थे ढेरों अरमान,
सोचता था मैं दिन-रात, छू लूं यह सारा आसमान.
जोश तो था पर होश नहीं, आजादी थी पर आगोश नहीं,
दौलत भी उस समय मैंने खूब कमाई,
रिश्तो में दूरियां भी मैंने बनाई,
अमीरी के घमंड में चूर-चूर,
सब रहने लगे मुझसे दूर-दूर.
दौलत,ताकत,घमंड,में औकात मैंने सभी को उनकी बतलाई,
ना जीवन साथी को बक्शा, बच्चों से भी दूरी मैंने बनाई.
प्यार से जो भी मिलने आया मुझ से, उसने अपने मुंह की खाई.
वक्त बदला,परिस्थितियां बदली,आया जीवन चक्र का वह मोड़,
जीवनसाथी का स्वर्गवास हुआ,
अपने बच्चे गये मुझे छोड़.
हालात अब बदल गए थे,
मेरी ताकत,जोश, गुरूर,और अहंकार,अब तो न जाने कहीं खो गए थे,
इक पैसा था साथ मेरे, बाकी सब मुझको छोड़ चले थे.
वक्त का पहिया और आगे घूमा........
धुंधली दृष्टि, जर्जर शरीर, और कैसी लाचारी थी,
तीष्ण वेदना दिल में, और भूख प्यास मेरी मर चुकी थी.
सोचता था,प्रेम और वात्सल्य की,दो बातें कोई कर लेता मेरे साथ,
दे देता उसको अपना सब कुछ, जितनी दौलत मेरे पास.
बोला बुढ़ापा आगे.......
रिश्तो की अपनी कद्र करो, अच्छे बुरे का फर्क करो,
दुखियों-बेसहाराओं की मदद करो,
सबके दिल में अपनी छाप छोड़ो.
दौलत का घमंड है झूठा,
अंत सभी का एक सा होता.
सुनकर बातें बुढ़ापे की,
नम हुई आँखें जवानी की,
छूकर बुढ़ापे के पैर, मांगने लगी जवानी माफी,
उफ़, यह बर्फ सी ठंडक,उस जर्जर जिस्म में कहां से आई,
निश्वास शरीर, पथराई आंखें,अरे तुम कुछ बोलो भाई,
कलेजे को चीर देने वाला रुदन,
फिर जवानी ने गाया था,
आखिर वो उसका ही तो,भविष्य था,
जो उसको दिखाने आईना, पल भर के लिए लौट आया था.
Nice post
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