Thursday, November 28, 2024

" सोये हुए मनुष्य को..........

कलम जब थक जाए, हाथ जब रुक जाये,
 जड़ हो जाए जब, नव चिंतन विचार,
 अपनी जिज्ञासा पर करके प्रहार,
 सोये हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश में बार-बार  I
 इरादे कभी टूट जाते हैं, हौसले पीछे छूट जाते हैं,
 आशा की जब ना दिखे कोई किरण,
 हाय ! हम अब कैसे जीतेंगे यह रण ?
 करना होगा इन दुष्ट विचारों पर वार,
 सोये हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश में बार-बार I
 झूठ, छल,कपट,प्रपंच,हावी होते दिख रहे हैं,
 साथी जो अपने साथ थे,वो धूमिल होते दिख रहे हैं,
 रात में भोर तारे को, ढूंढने की कोशिश है, इस बार,
 काली घटाओं सा,छाया है मन पर यह कैसा अंधकार ?
 सोये हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश में बार-बार I
 पल-प्रतिपल दम तोड़ते हुए,रेत के सपने,
 आंधियों पर बैठी हैं, सुनहरी धूप की किरणें,
जुगनू टिमटिमा रहे हैं,करने को अंधेरे पर प्रहार ,
 करते हैं कोशिशें,पर नाकाम हो रहे हैं हर बार,
 सोये हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश में बार-बार  I
 कर्तव्य पथ से हटा रहे हैं, विश्वास सारा गिरा रहे हैं,
 हम मंजिल को तलाशे,या मंजिल ले हमें तलाश,
 टुकड़े-टुकड़े कर दिया भावनाओं को, जो उड़ रही थी पंख पसार,
 सोये हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश में बार-बार  I
 बस अब बहुत हुआ,अंतर्मन में अपने झांकना होगा,
 बार-बार टूटे हैं, अब नहीं बँटना होगा,        नव विचारों को गति दो,कुंठा सारी छोड़ दो,
 मन के वेग से करके प्रहार,
 सोये हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश में बार-बार I
 भीतर अपने प्रज्वलित करनी होगी, विचारों की अग्नि,
 मुसीबत के पहाड़ को करो, चीर के छलनी,
 इरादों को गगनचुंबी इमारतो पर, बैठाना होगा,
 कठिन परिस्थितियों, मुश्किल चुनौतियों, को अपने अनुकूल ढालना होगा,
 तपना होगा रेगिस्तान की रेत सा,
 बहना होगा महासागर के प्रबल वेग सा,
 बस अब बढ़ो, मिलकर चलो,
 वज्र सा बनके, करो इन चट्टानों पर प्रहार,
 सोये हुए मनुष्य को जगाने की कोशिश में बार-बार I



 






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