Friday, November 22, 2024

दारु


दारू पी-पी कर ना कर मुझे बदनाम,
सब कुछ जानकार मैं क्यों हूं अनजान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचानI
 जहां भी जाएं, ददा,भुली आओ बैठो,
 दी (दो )पैग में लैंणू (लेता ), दी (दो ) तुम लो,
 कुछ तुम आपन सुनाओ, कुछ मेरी सुन लो,
 जब तक बोतल ना हो खत्म,तब तक मेरा क्या काम,
 मैं हूँ उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचान I
 भल (भला) काम हो,या हो दुख की घड़ी,
 बोतल खोलो, हमें दूसरों की क्या पड़ी,
 पी-पीकर कर सैणी(औरत )हो गई है परेशान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचान I
 समय-समय का फेर है, पी सबने,"बूबू "," बाबू" हो या हो मेरे "चाचू",
 आज बात अपने पर आ गई तो खराब हो गया मेरा नाम,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या यही है मेरी पहचान I
 शादियों में चार दिन पहले से चार दिन बाद तक,
 मातम में घाट से तेरहवी तक,
 ढूंग (पत्थर ),टीपने तक रुकी है, किसी तरह मेरी जान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या यही है मेरी पहचान I
 नौ रातो (नवरात्रि )में भक्त मैं ही हूं,
 घर में जागर लगी तो ईष्ट मैं ही हूँ,
 और तुम्हें क्या बतलाऊं अपनी पहचान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या,यही है मेरी पहचान I
फसल कहीं पके,सड़क कहीं बनें,या खुले कहीं पर काम,
 आंधी आए, बरसात आये, या आये बर्फीला तूफान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या मेरी है यही पहचान I
 गृह प्रवेश किसी का हो, नामकरण किसी का हो,
 मुंडन हो किसी का,या नया काम किसी का हो,
 क्यों नहीं लेते हैं हम किसी से ज्ञान,
 मैं हूं उत्तराखंडी क्या यही है मेरी पहचान I
 देवभूमि है यह हमारी पहचानो इसको,
 विश्व में फैली हुई है संस्कृति हमारी,संभालो इसको,
 आज भी होता है आदर हर  एक रिश्तो का,
 पूजे जाते हैं,जहां आज भी छल-कपट और मशाण,
 मैं हूं उत्तराखंडी यही है मेरी पहचान I
 इतनी महान विरासत हमारी है,
 फिर यह बोतल कहां से तुम्हारी है?
 मैं हूं उत्तराखंड से, जो है मेरी जान 
 मैं हूं उत्तराखंडी बस यही है मेरी पहचान.
 मैं हूं उत्तराखंडी बस यही है मेरी असली पहचानI

1 comment:

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...