Sunday, January 19, 2025

एक शापित खानदान ----- भाग 3

वक्त के साथ-साथ उस औरत के ऊपर जुल्म और ज्यादा बढ़ गए थे। उस औरत की सहनशक्ति भी अब जवाब देने लगी थी। कभी-कभी वह ईश्वर से प्रार्थना करती कि, उसे मौत आ जाये तो इस संसारिक बंधन से मुक्ति मिल जाये, पर ऐसे मौत आती भी कहांँ है।और एक दिन अचानक,उसके घरवालों ने उसे और उसके मासूम बच्चे को हमेशा-हमेशा के लिए घर से बाहर निकाल दिया। वह रोती बिलखती रही,पर घर वाले तो जैसे पत्थर की मूरत बन गए थे,वह आज नहीं पिघले। औरत ने रोते हुए सभी भाइयों से गुहार लगाई,परंतु कोई फायदा ना हुआ। हालांकि उसके दो छोटे देवरों को उससे थोड़ा बहुत सहानुभूति थी, परंतु एक तो वह उम्र में छोटे थे,और दूसरा घर में बड़ों के फैसलों के खिलाफ वों नहीं जा सकते थे। औरत ने रोते हुए अपनी सास और जेठानी के पैर भी पकड़े,परंतु जैसे उनकी बुद्धि ही पलट गई थी। उसने यहांँ तक कहा कि मैं घर से चली जाती हूंँ,परंतु मेरे बच्चे को रख लीजिए,पर वो लोग नहीं माने। उफ़! औरत होकर भी उन दोनों को,एक औरत का दुख दर्द समझ में ना आया। और आखिरकार रोते-बिलखते हुए वह औरत,अपने मासूम बच्चे को गोद में लेकर घर से बाहर चली गई।
 इस वक्त उसके मन में इतनी वेदना और पीड़ा थी कि,किसी का भी कलेजा फट जाए। उसके मन में घर वालों के लिए भयंकर रोष पैदा हो गया था। वह घर से तो निकल आई थी पर उसे अपनी मंजिल का पता नहीं था। गांँव वाले भी उसको शरण देने के लिए तैयार ना थे। आज उसका इस दुनिया में कोई भी ना था, ना परिवार,ना घर,ना समाज,ना कोई रिश्तेदार। हे परमात्मा कैसा कौर अनर्थ था ये।
 रोते हुये वह अपने गांँव की सरहद से बाहर आ गई। सबसे पहला ख्याल उसके मन में आया कि,नदी में कूद कर आत्महत्या कर लेती हूंँ। पंरतु नदी किनारे पहुंँचने पर उसने अपने मासूम बच्चे का मुख देखा तो, उसकी आंँखों से अविरल आंँसुओ की धारा बह निकली। फिर उसने सोचा कि मैं तो मर जाऊंँगी,पर मेरे मरने के बाद इस मासूम का क्या होगा? यही सोचकर वह वापस अपने गांँव की सीमा में लौट आई। वहांँ एक बहुत बड़ा पेड़ था,वह उसी की जड़ में,अपने बच्चे को लेकर बैठ गई। उसके मन में रह रहकर यह ख्याल आता कि,शायद थोड़ी देर बाद उसके घर वाले आकर उसको ले जाएंँगे,पर ऐसा ना हुआ। धीरे-धीरे शाम भी गहराने लगी थी,जंगली जानवरों का खतरा भी बढ़ गया था। वह नीचे नदी से थोड़ा सा पानी ले आई थी। यही पानी दोनों मांँ-बेटे ने अपनी भूख शांत करने के लिए पिया था। और धीरे-धीरे रात गहरा गई थी। डर,भूख,और घबराहट के मारे उन दोनों का बहुत बुरा हाल था।
 उस रात तो उसके दिल में अपने सभी घर वालों की प्रति कड़वाहट ही निकलती रही। वह बार-बार भगवान को याद करके यही दुआ मांँग रही थी कि,इन लोगों की आगे सात पीढ़ियाँ ऐसा ही दुख भोगती रहें,जैसा आज मैं भुगत रही हूंँ। आज की रात अगर मुझे या मेरे बच्चे को कुछ हुआ,तो यह लोग पीढ़ियों तक मेरा रोष झेलते रहेंगे। इन लोगों का कभी भला नहीं होगा। ये सब असमय मौत मरेंगे। यह सदियों तक मेरा श्राप झेलते रहेंगे। डर और घबराहट के मारे उस औरत के दिल और जुबान पर,बार-बार यही सब कुछ आ रहा था। उस डरावनी रात में इंसान तो छोड़ो, भगवान का दिल भी नहीं पसीजा था। उस औरत ने जैसे एक पूरे खानदान को शापित कर दिया था। और आखिरकार सवेरा हो गया। परंतु यह है क्या...... गांँव में यह कैसा शोर था।सुबह के वक्त पूरा गांँव दो आवाजों से गूंज रहा था।एक भयंकर अट्टाहस की आवाज़, तो दूसरी करुण रुदन का स्वर।
 आखिर क्या हुआ उस डरावनी रात को?
 आखिर कौन था वो,जो बस रोये जा रहा था?
 इतनी जोर-जोर से दिल दहलाने वाली हंँसी आखिरकार किसकी थी?
 क्या हुआ था मांँ-बेटे के साथ उस डरावनी रात में?
 यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेंगे...... 

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