अगर इंसान के मन में कोई रोष हो, और वह उसके जीवन काल में उसके मन से बाहर ना निकल पाए तो क्या होता है? ऐसी स्थिति बड़ी ही विकट होती है। इंसान के मन में रोष किसी भी प्रकार से हो सकता है,उदाहरण के लिए धन-दौलत, जमीन,जायदाद, धोखा,फरेब या उसके साथ हुआ छल, इसकी पैदाइश के लिए जिम्मेदार है। अगर इंसान के दिल में ऐसा कुछ है,तो उसकी जीते जी उसका दिल साफ होना भी जरूरी होता है। रोष से भरा हुआ मनुष्य बार-बार अपने भगवान या ईष्ट को याद करता है, और उन लोगों के लिए (जिन्होंने उसे दुख दर्द या तकलीफ दी है), एक दुर्भावना या ऐसी बातें उसके मन से हमेशा निकलती है जिससे उन लोगों का जीवन हमेशा-हमेशा के लिए दुखमय हो जाता है। पहले के जमाने में लोगों के मन में ऐसी भावनाएं ज्यादा होती थी।
इस कहानी की शुरुआत भी रोष से भरी हुई, अपनों द्वारा छली गई,बेघर,बेबस और एक लाचार औरत की है। यह कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी पुरानी है। अपनों के लिए उस औरत के दिल में,इतनी नफरत और घृणा भर चुकी थी, कि वह केवल उनकी बर्बादी देखना चाहती थी। वह उन लोगों को तड़प-तड़प कर मरता हुआ देखना चाहती थी। इतनी नफरत तो कोई अपने दुश्मनों से नहीं करता जितनी उस औरत को अपनों से हो चुकी थी, आखिर ऐसा क्या हुआ था?
इतनी नफरत और रोष को लेकर जब वह औरत,अपनी जिंदगी की जंग हार गई तो फिर क्या हुआ? क्या उसके मरने के बाद उसका प्रतिशोध पूरा हुआ? वैसे भी क्या किसी के मरने के बाद उसके दिल का रोष भी खत्म हो जाता है, जवाब है नहीं! यही मौत तो उसके लिए एक नई लड़ाई की शुरुआत थी। अब अब वह औरत एक जीवित इंसान से एक आत्मा में बदल चुकी थी। कैसे एक आत्मा ने अपने हक,न्याय और अपने ऊपर हुए जुल्मों में बहे एक-एक आंँसू की कीमत,अगली सात पीढ़ियों से वसूल करी। मरने के बाद जिसकी देह का अंतिम संस्कार तक नहीं हुआ था, कैसे उस आत्मा ने अपना अंतिम संस्कार करवाया? इन सब बातों को हम कहानी के अगले अध्याय में पढ़ेंगे… कैसे एक हँसता खेलता खानदान शापित बन गया ?
और उस शापित खानदान में कितनी पीढ़ियो ने इसकी कीमत चुकाई?
यह सब कहानी की अगली भाग में......
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