मनुष्य का जीवन एक कुंठा से भर जाता है.
निराश व्यक्ति को अपना जीवन भी अंधकार-मय लगता है. ऐसे में व्यक्ति सही या गलत का फैसला नहीं ले पता. इसी बीच कई बार मनुष्य गलत रास्ते पर चलने को मजबूर हो जाता है.
आजकल की भागा दौड़ी वाली जिंदगी में लोगों में धैर्य की कमी हो गई है. हर कोई एक दूसरे से आगे निकलना चाहता है,जैसे इनके जीवन में कोई रेस लगी हो. धैर्य की कमी से मनुष्य स्वभाव क्षण-क्षण में बदल जाता है.
मनुष्य जल्दी से उग्र (क्रोधित ),हो जाता है. निराशा से व्यक्ति में सहनशीलता की कमी आती है, जिसकी वजह से कोई भी व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार काम नहीं कर पाता.
निराशा,कुंठा, उग्रता, यह सारी चीज़ें आपस में जुड़ी हुई है.इन क्षण विशेष में, व्यक्ति बड़े से बड़ा पाप भी,कर सकता है.
जीवन में जीत-हार,आशा-निराशा तो लगी रहती है, इन चीजों को हमें अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए. इस बार हारें हैं तो अगली बार जीत ही जाएंगे, ऐसी सोच के साथ हमें चलना चाहिए. एक बार गिरने से कोई चलना थोड़ी ही छोड़ देता है. किसी विद्यार्थी के अगर अच्छे नंबर नहीं आए हैं,या वह फेल हो गया है, तो निराश होने की कोई जरूरत नहीं है. एक नयी मेहनत, हिम्मत, ऊर्जा, पॉजिटिव एटीट्यूड के साथ, दोबारा उस चीज पर काम करना चाहिए. निराशा में कोई गलत कदम नहीं उठाना चाहिए.
आजकल इंसान अपने पास सब कुछ होने के बाद भी इसलिए दुखी है, क्योंकि उसके भाई, पड़ोसी, या रिश्तेदार सुखी हैं. दूसरे का सुख आज मनुष्य के दुख का कारण बन गया है. यह मानसिकता बिल्कुल ही गलत है. ऐसी निम्न स्तरीय सोच से बचते हुए, हमें अपनी सोच के स्तर को बढ़ाना चाहिए. अपने जीवन में हमें योग,ध्यान व व्यायाम को, उचित स्थान देना चाहिए. भोजन इत्यादि का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए.हर रात के बाद दिन जरूर होता है,पतझड़ के बाद बहार आती है.
निराशा, हताशा, या क्रोध आने पर,अपने मन को शांत रखते हुए,लंबे सांस लेकर पूरा समय देकर सोचना चाहिए. सारे मार्ग बंद होने के पश्चात एक मार्ग अवश्य खुला रहता है.
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