पर आखिर स्वयं भूत मैं कौन हूं?
स्वयं से ऐसा प्रश्न करने से पहले हमें अपने चेतन और अवचेतन मन को जागृत करना होगा. यह प्रश्न बहुत गहरा है, भगवत गीता में भी इस बात का उल्लेख है. हमारे जीवन का अंतिम सत्य है मृत्यु. हमारा शरीर नश्वर होता है परंतु हमारी आत्मा नहीं. मृत्यु के पश्चात हमारे आत्मा का परमात्मा में ब्रह्मा मिलन हो जाता है. आत्मा तो अजर-अमर होती है, आत्मा सनातन है, आत्मा शाश्वत है.
हमारा शरीर तो वस्त्र के समान है, जिस प्रकार हम कोई वस्त्र मैला हो जाने के पश्चात दूसरा वस्त्र पहनते हैं,उसी प्रकार आत्मा भी एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है. हम तो कुछ होते ही नहीं , 🙏🙏जो कुछ है यही आत्मा है.सब कुछ ज्ञान होते हुए भी हम जिंदगी भर अज्ञानी बने रहते हैं. वास्तव में यही सारे दुखों की वजह है.
जिस दिन हमें इस बात का आत्मबोध हो जाऐगा,जीवन से सारे दुख स्वतः ही खत्म हो जाएंगे. ध्यान और योग में खुद को डुबोकर, ईश्वर का ध्यान करते हुए,"मैं "का बोध हो सकता है.अपने अवचेतन मन को जागृत करते हुए, अपनी अस्तित्व की पहचान करी जा सकती है. धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही इस सवाल का जवाब ढूंढा जा सकता है. "मैं "तो हमारे अंदर ही निहित है,ईश्वरीय मार्ग पर चलकर,योग और साधना के माध्यम से अपने अंदर निहित "मैं "की पहचान करी जा सकती है.
हमारे महान भारतवर्ष में अनगिनत ऋषि, मुनि,संत,महात्मा इत्यादि हुए हैं,जो इस परमानंद की प्राप्ति कर चुके हैं.उन्होंने योग, ध्यान,तपस्या के बल पर ईश्वरीय मार्ग पर चलकर इसकी प्राप्ति करी है.
इस सवाल का जवाब हम सभी को अपने आप से भी करना चाहिए कि आखिर मैं कौन हूं. हमें भी योग,साधना और सत्य मार्ग पर चलकर ईश्वर कि आराधना करते हुए स्वयं की पहचान करनी चाहिए. अगर हम ऐसा करते हैं तो हमें अपना जवाब मिल जाएगा.
Very Nice lines 👍🏻
ReplyDeleteThx
ReplyDeleteVery true
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