We do many things in our everyday life. which our life-order remains busy. As children go to school, adults' job, or go for their business, and the receptors do their everyday tasks at home, etc. I have the ability to do every person's tasks, and his way is different. A capable person, can perform a task, in a "good" and "better" way, instead of a new and "disabled" person. What is the attitude, attitude or attitude of any person, for any act, is called his attitute In any task when efficiency comes, that person's perspective is fixed. That is, any person when able to, and efficient in his or her own situation or field, decides his attitude or "Attitude" only by the way he does that work. Man gives his 100% of that work to achieve efficiency. The result is good for him. Attitude makes any person perfect or efficient in his work. Attitude we can do any work well I Usually people, "Attitude" and, "Vanity", look together, they understand both these things the same, while this thing is absolutely wrong. Attitude, (eyes), and vanity (Ego), makes a difference. Where Attitude makes us proficient, or perfect in any task, pride creates overconfidence in a person. The belief of doing any task is good, but it does not have much confidence in doing the task. Any task "I can" it's the person's belief, but this task, "only I can", it's the person's overconfidence. Over-confidence work can also be spoiled. Attitude creates a positive attitude in person.In person that qualities are created that,He can see everything from a different perspective. A person with Attitude in a crowd of Saccharo, creates his own identity. Such individuals refrain from being behind someone, or walking behind someone, they make their own way, and decide their own destination. "There are hundred people behind me", instead those hundred people feel like that, "I am a lion with them", it is called Attitude. A greater work than a positive Attitude is also possible. Even in all of us, there must be a little too much Attitude. It should be positive and better approach. A person with positive Attitude, leave his influence on the world panel too. It is also reflected in the world's large, "mass-leaders", from their walking, rising and sitting, their actions, in their lifestyle it looks clear. For a good and healthy society, having a positive attitude, should have organized Attitude. This allows a person to achieve great success, easily.
Friday, January 31, 2025
Wednesday, January 29, 2025
एक शापित खानदान ------ भाग 5
एक शापित खानदान ------- भाग 5
सारी महिलाएंँ पगली को लेकर एक जगह पर आ गई थी। यह जगह नदी के किनारे वाली थी। पगली को यह देखकर हैरानी हुई कि पूरा गांँव यहांँ जमा हो रखा था। इसी वजह से पूरे गांँव में सन्नाटा पसरा हुआ था।
भीड़ को तितर-बितर करके वह महिलाएंँ पगली को सबसे आगे ले आई। आगे पहुंँचकर,वहांँ का मंजर देखकर,पगली के तो जैसे होश ही उड़ गए। वहांँ का नजारा देख पगली को चक्कर आ गए और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। गांँव वालों ने उसके मुख पर पानी की छीटें मारी,उसको झकझोरा,तब जाकर उसको होश आया। पगली के सामने उसके बच्चे का शव पड़ा हुआ था। पगली ने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। पगली की चीखों,और उसके रोने की आवाजों ने,गांँव वालो के कलेजे को चीर दिया था। सबकी आंँखें यह देखकर नम हो चली थी। अधिकतर लोग यह जानकर भी हैरान हो रहे थे कि,आज पगली पल भर में सब कुछ जान रही थी,और समझ रही थी। यह कैसे संभव था?
रोते-रोते पगली ने एक रहस्यो्घटान से पर्दा हटाया। हाय मेरे लाल तेरे लिए तो, तेरी मांँ पगली बन गई थी, इस जालिम समाज,और पत्थर दिल लोगों के बीच में, तुझे कहांँ लेकर जाती मैं। तेरे लिए आश्रय और छत के लिए तेरी मांँ पगली बन गई थी, पर अब मेरा क्या होगा? हे विधाता तो क्या उसने अपने जीवन के पिछले 6-7 वर्ष पगली होने का स्वांग किया था। कितना आश्चर्यजनक था यह!
पर अब उसके लिए सब कुछ खत्म सा हो गया था। उसके जीवन का एकमात्र सहारा उसका पुत्र ही अब इस दुनिया में नहीं था।
उसके पुत्र की मृत्यु भी बड़ी संदिग्ध परिस्थितियों में हो रखी थी। आखिर इतना छोटा बालक अकेले नदी किनारे क्या करने गया था?जहांँ नदी के जल का प्रवाह सबसे अधिक था,वह वहांँ तक कैसे पहुंँचा था?
इन प्रश्नों के उत्तर आने अभी बाकी थे।
अपने बच्चे के शव पर विलाप करते-करते पगली के दिल का रोष बार-बार बाहर निकलता रहा। वह बार-बार अपने परिवार को ऐसी बद्दुआयें दे रही थी कि सुनने वालों के कानों में शीशा पिघल गया था। थोड़ी देर बाद विचित्र रूप से पगली का अट्टहास शुरू हो गया था। पहले तो गांँव वालों को कुछ समझ में नहीं आया। फिर उन्होंने देखा पगली अब अपने बेटे के शव के चारों तरफ नाचने लगी थी। वो अब सच में पगला चुकी थी।
हे परमात्मा!यह कैसा खेल रचा था तुमने।
वहांँ का मंजर बहुत ही भयानक हो चला था। पगली के परिवार वाले भी,वहांँ पर आ चुके थे। इतने बड़े प्रकरण का भी,उन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था।आनन-फानन में उन लोगों ने बच्चे को उठाया और उसको उचित स्थान पर दफन कर दिया।पगली अब सच में पागल हो चुकी थी। उसकी जीने की इच्छा अब मर चुकी थी। दिन भर वह नदियों पहाड़ों,वीरानों में घूमती रहती थी। कभी कभार रह-रह कर उसे कुछ याद आता,फिर वह कलेजा चीर कर रोती,और सब कुछ धूमिल हो जाता था।
उसे अब किसी भी चीज से भय नहीं लगता था। वह रात में भी,तूफानों और बारिशों में, जंगलों में भटकती रहती थी। ना उसे जंगली जानवरों का भय था,ना किसी और चीज का। और एक दिन आखिरकार वही हुआ, जिस चीज का डर था।
और फिर एक दिन अचानक क्या हुआ था?
क्या हुआ पगली की जिंदगी के साथ?
क्या कभी पगली के साथ न्याय हुआ?
क्या हुआ पगली के गुनहगारों के साथ?
यह हम कहानी के अंतिम भाग में पढ़ेंगे....
Saturday, January 25, 2025
एक शापित खानदान ---- भाग 4
एक शापित खानदान ------ भाग 4
उन चीखों और आवाजों से सारा गाँव तो मानो जैसे नींद से जाग गया था। एक तरफ पागलों जैसी हंँसी थी, तो दूसरी तरफ कलेजा चीर रुदन। सारे गांँव वाले दौड़कर उस पेड़ की तरफ दौड़े, जहांँ रात को वह औरत और उसका बच्चा रुके थे। वहांँ पहुंँचकर उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी। वह औरत पागलों की तरह ठहाके लगाकर हंँसे जा रही थी। उसके बाल खुले और बिखरे हुए थे। ना जाने कितनी देर रोने वाली उसकी आंँखें, और अब इस तरह पागलों की तरह हंँसना, सब कुछ विरोधाभासी था। रुदन का स्वर उसके बालक का था। जिसे उसने नीचे जमीन पर रखा हुआ था। वह बेचारा भूख, प्यास,और मौसम की मार से व्याकुल होकर रोए जा रहा था। गांँव वालों ने घबराते हुए उस औरत का हाल पूछा, पर यह क्या! वह तो बस अपनी धुन में ही मगन थी। किसी भी बात का वो जवाब नहीं दे रही थी,बस मुंँह में कुछ बड़बड़ा रही थी। अपने साथ घटी घटना से उसको मानसिक सदमा लग गया था। इस सदमे का असर यह हुआ कि वह मानसिक रूप से कमजोर हो गई थी। उसे कुछ भी याद नहीं था। बस हंँसना,बड़बड़ाना,ताली पीटना, और चीखना,वह यही सब कर रही थी। तरस खाकर गांँव वाले,उसको और उसके बच्चे को लेकर उसके घर आ गये। काश यह हिम्मत उन गांँव वालों ने पहले दिखाई होती।
गांँव वालों के गुस्से,और उस औरत की बिगड़ी मानसिक हालात को देखकर उसके घर वाले भी घबरा गए थे। मजबूरी में उन्हें उन दोनों को घर में रखना पड़ा। पर अब हालात पहले से बदल गए थे। कभी पूरे घर-परिवार को अकेले संभालने वाली वह धार्मिक औरत, आज मजबूर और लाचार हो गई थी। वह पूरे घर में पागलों की तरह घूमती थी। कभी बिना बात के हँसती,तो कभी रोती रहती थी। बच्चे का भी उसको कुछ होश नहीं था। मानसिक तौर पर उसकी स्थिति काफी खराब हो गई थी। उसे अपनी सुध-बुध तक नहीं थी।
धीरे-धीरे वह पूरे गांँव में पगली के नाम से पहचाने जाने लगी। उसका एक नया नामकरण हो चुका था। उसका नाम अब पगली पड़ चुका था। धूल,मिट्टी,गंदगी, में लिपटी रहने वाली पगली। भूख लगने पर खाना मिल गया तो ठीक, वरना वह कुछ भी खा जाती थी। उसकी स्थिति बड़ी ही दयनीय हो गई थी। धीरे-धीरे वक्त आगे गुजरता चला गया।अब वह बालक भी 6-7 वर्ष का हो गया था। वह जब पगली को मांँ कह कर बुलाता, तो बस वह उसको निहारती रहती, जैसे वह कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो। घर वालों के लिए अब वह पगली,एक आवारा पशु के समान थी। जब मन करता उसे जी भर के पीटते,जमीन पर खाना परोस कर देते।
कभी-कभी उसे कितने दिनों तक, बंद कमरे में रस्सियों से बाँधकर रख देते थे। उस औरत का बहुत ही बुरा वक्त चल रहा था। उसकी जिंदगी मौत से भी भयानक हो गई थी। ना जाने उसे,किस जन्म का कष्ट भोगना पड़ रहा था। ऐसी नरकीय जिंदगी से तो मौत ही अच्छी थी।
सामान्य दिनों की तरह एक दिन सवेरे-सवेरे वह औरत सो कर उठी। उसे पूरे घर में कोई भी नजर ना आया। घर में बड़ी अजीब सी शांति फैली हुई थी। उसका बेटा भी घर पर नहीं था। ना जाने पूरे घरवाले कहांँ चले गए थे। तभी वहांँ पर गांँव की कुछ महिलाएं आई। वह उसका हाथ पकड़ कर कहीं चलने के लिए बोलने लगी। पगली भी उनके साथ-साथ चलने लगी। जाते-जाते उसने देखा पूरा गांँव भी खाली पड़ा हुआ था। एक अजीब सी खामोशी और सन्नाटा चारों तरफ फैला हुआ था। थोड़ी देर बाद वह लोग उसको लेकर एक जगह पर पहुंँचे। वहां पहुंँचने के बाद मानो पगली की,पूरी दुनिया ही खत्म हो गई थी।
आखिर ऐसा क्या हुआ था?
कहांँ लेकर आए वह लोग पगली को?
क्यों पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था?
उसके बाद फिर पगली के साथ क्या हुआ?
यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेंगे......
Tuesday, January 21, 2025
अनदेखा ------ ऊपरी साया भाग 1
हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे की नदी-नालों, चौराहों,गधेरों पर अच्छी तरह देखकर चलना चाहिए।क्या यह केवल मात्र एक मिथक होता था। इन बातों में कितनी सच्चाई होती है, इसका जवाब सबके लिए अलग-अलग हो सकता है। हमारी इस दुनिया में बहुत सी चीज होती हैं जो हमें आंँखों से दिखाई नहीं देती, परंतु फिर भी वह होती हैं। जिस प्रकार अच्छाई के साथ बुराई,दिन के साथ रात, सुगंध के साथ दुर्गंध,और देव के साथ दानव होते हैं,उसी प्रकार तमस और बुराई के प्रतीक भी हमारी इस दुनिया में होते हैं। रात्रि में निशाचारों के साथ-साथ भूत-प्रेतो का राज भी होता है।अपने जीवन में अधिकतर लोगों को इनकी अनुभूति का एहसास हो जाता है।
हमारी दुनिया के समानांतर इनकी भी अपनी दुनिया होती है।इनकी नकारात्मक शक्तियांँ इतनी प्रभावशाली होती हैं, कि वह किसी भी जीते-जागते इंसान का जीवन,नर्क बना देती है।
जो इंसान अपने दिल में नकारात्मकता लेकर मरता है,या किसी इंसान के जीवन में उसके साथ कुछ गलत या अन्याय हुआ हो,तो ऐसे मनुष्य मृत्यु के वक्त अपना चित्त शांत नहीं रख पाते। एक कांटा या रोष उनके दिल में रह जाता है। परिणाम स्वरुप मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष नहीं मिल पाता और उनकी आत्मा भटकती रहती है। यह भटकाव सदियों का रूप ले लेता है। इस दौरान कितनी पीढ़ियांँ निकल जाती हैं। सब कुछ बदल जाता है, पर नहीं बदलता तो इन आत्माओं का प्रतिशोध।
ये आत्मायें गाड़ (नदियों ),गढ़ेरों,तालाबों, पोखरो,जंगलों और वीरानों में भटकती रहती हैं। जहांँ इन्हें किसी इंसान से बदला लेना होता है,तो यह इन जगहों से,"छल "का रूप लेकर, किसी इंसान के घर में,उसके अंदर जगह बना लेते हैं। उसके बाद फिर वो उस इंसान को कष्ट देना शुरू कर देते हैं।
आज की यह कहानी भी कुछ इसी तरह की है। इस कहानी का मकसद भूत-प्रेत, अंधविश्वास या नकारात्मकता को बढ़ावा देना नहीं है। परंतु इंसान यदि सतर्क रहे तो इन चीजों को समझ सकता है,और इनसे बच सकता है। इस कहानी में भी एक खुशहाल परिवार था। इसमें पति-पत्नी वह उनके दो बच्चों के अलावा उनका पूरा संयुक्त परिवार था। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। पर कुछ महीनों से आखिर उस आदमी की औरत(पत्नी ),रात को नींद में रोने लगती थी।
उसका यह रोना बढ़ता ही जा रहा था।
आखिर क्या हुआ था उसके साथ,जो रात को वह जोर-जोर से रोने लग जाती थी!
क्या उसका रोना केवल रात में होता था?
और बाद में उसे कुछ याद क्यों नहीं रहता था?
और एक दिन कुछ ऐसा हुआ था कि पूरा परिवार डर के मारे घबरा गया, आखिर क्या हुआ था उस रात?
यह हम कहानी की दूसरे भाग में पढ़ेंगे.....
Sunday, January 19, 2025
एक शापित खानदान ----- भाग 3
वक्त के साथ-साथ उस औरत के ऊपर जुल्म और ज्यादा बढ़ गए थे। उस औरत की सहनशक्ति भी अब जवाब देने लगी थी। कभी-कभी वह ईश्वर से प्रार्थना करती कि, उसे मौत आ जाये तो इस संसारिक बंधन से मुक्ति मिल जाये, पर ऐसे मौत आती भी कहांँ है।और एक दिन अचानक,उसके घरवालों ने उसे और उसके मासूम बच्चे को हमेशा-हमेशा के लिए घर से बाहर निकाल दिया। वह रोती बिलखती रही,पर घर वाले तो जैसे पत्थर की मूरत बन गए थे,वह आज नहीं पिघले। औरत ने रोते हुए सभी भाइयों से गुहार लगाई,परंतु कोई फायदा ना हुआ। हालांकि उसके दो छोटे देवरों को उससे थोड़ा बहुत सहानुभूति थी, परंतु एक तो वह उम्र में छोटे थे,और दूसरा घर में बड़ों के फैसलों के खिलाफ वों नहीं जा सकते थे। औरत ने रोते हुए अपनी सास और जेठानी के पैर भी पकड़े,परंतु जैसे उनकी बुद्धि ही पलट गई थी। उसने यहांँ तक कहा कि मैं घर से चली जाती हूंँ,परंतु मेरे बच्चे को रख लीजिए,पर वो लोग नहीं माने। उफ़! औरत होकर भी उन दोनों को,एक औरत का दुख दर्द समझ में ना आया। और आखिरकार रोते-बिलखते हुए वह औरत,अपने मासूम बच्चे को गोद में लेकर घर से बाहर चली गई।
इस वक्त उसके मन में इतनी वेदना और पीड़ा थी कि,किसी का भी कलेजा फट जाए। उसके मन में घर वालों के लिए भयंकर रोष पैदा हो गया था। वह घर से तो निकल आई थी पर उसे अपनी मंजिल का पता नहीं था। गांँव वाले भी उसको शरण देने के लिए तैयार ना थे। आज उसका इस दुनिया में कोई भी ना था, ना परिवार,ना घर,ना समाज,ना कोई रिश्तेदार। हे परमात्मा कैसा कौर अनर्थ था ये।
रोते हुये वह अपने गांँव की सरहद से बाहर आ गई। सबसे पहला ख्याल उसके मन में आया कि,नदी में कूद कर आत्महत्या कर लेती हूंँ। पंरतु नदी किनारे पहुंँचने पर उसने अपने मासूम बच्चे का मुख देखा तो, उसकी आंँखों से अविरल आंँसुओ की धारा बह निकली। फिर उसने सोचा कि मैं तो मर जाऊंँगी,पर मेरे मरने के बाद इस मासूम का क्या होगा? यही सोचकर वह वापस अपने गांँव की सीमा में लौट आई। वहांँ एक बहुत बड़ा पेड़ था,वह उसी की जड़ में,अपने बच्चे को लेकर बैठ गई। उसके मन में रह रहकर यह ख्याल आता कि,शायद थोड़ी देर बाद उसके घर वाले आकर उसको ले जाएंँगे,पर ऐसा ना हुआ। धीरे-धीरे शाम भी गहराने लगी थी,जंगली जानवरों का खतरा भी बढ़ गया था। वह नीचे नदी से थोड़ा सा पानी ले आई थी। यही पानी दोनों मांँ-बेटे ने अपनी भूख शांत करने के लिए पिया था। और धीरे-धीरे रात गहरा गई थी। डर,भूख,और घबराहट के मारे उन दोनों का बहुत बुरा हाल था।
उस रात तो उसके दिल में अपने सभी घर वालों की प्रति कड़वाहट ही निकलती रही। वह बार-बार भगवान को याद करके यही दुआ मांँग रही थी कि,इन लोगों की आगे सात पीढ़ियाँ ऐसा ही दुख भोगती रहें,जैसा आज मैं भुगत रही हूंँ। आज की रात अगर मुझे या मेरे बच्चे को कुछ हुआ,तो यह लोग पीढ़ियों तक मेरा रोष झेलते रहेंगे। इन लोगों का कभी भला नहीं होगा। ये सब असमय मौत मरेंगे। यह सदियों तक मेरा श्राप झेलते रहेंगे। डर और घबराहट के मारे उस औरत के दिल और जुबान पर,बार-बार यही सब कुछ आ रहा था। उस डरावनी रात में इंसान तो छोड़ो, भगवान का दिल भी नहीं पसीजा था। उस औरत ने जैसे एक पूरे खानदान को शापित कर दिया था। और आखिरकार सवेरा हो गया। परंतु यह है क्या...... गांँव में यह कैसा शोर था।सुबह के वक्त पूरा गांँव दो आवाजों से गूंज रहा था।एक भयंकर अट्टाहस की आवाज़, तो दूसरी करुण रुदन का स्वर।
आखिर क्या हुआ उस डरावनी रात को?
आखिर कौन था वो,जो बस रोये जा रहा था?
इतनी जोर-जोर से दिल दहलाने वाली हंँसी आखिरकार किसकी थी?
क्या हुआ था मांँ-बेटे के साथ उस डरावनी रात में?
यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेंगे......
Friday, January 17, 2025
एक शापित खानदान ------- भाग 2
एक शापित खानदान भाग 2
यह कहानी सदियों पुरानी है। किसी गांँव में चार भाई रहते थे, चारों भाई मिल जुलकर खेती-बाड़ी करते थे और अपना जीवन यापन करते थे। उस वक्त संयुक्त परिवार होते थे, चारों भाई भी मिलकर एक छत के नीचे रहते थे। दो बड़े भाइयों की शादियांँ हो चुकी थी, और दो छोटे भाई अभी छोटे थे। यह कथा शुरू होती है दूसरे नंबर के भाई की बीवी से, जो की एक बहुत गरीब घर की बेटी थी। वह घर के हर काम में दक्ष थी, और ईश्वर की परम भक्त थी। शादी के बाद वह ससुराल में अपनी गरीबी की वजह से प्रताड़ित की जाती थी। उसका अत्यंत गरीब परिवार से होना उसके ससुराल वालों को नहीं भाता था। अपनी सास के अलावा वह अपनी जेठानी के ताने भी सुनती रहती थी। उसके हर काम में मीन मेख निकलना,उनकी तो जैसे आदत ही बन गई थी। घर के अलावा खेती-बाड़ी के सारे काम भी वह उसी से करवाते थे। उस वक्त की दिनचर्या भी काफी कठिन होती थी। सुबह भोर के तारे को देखकर उठना,और अपने काम में लग जाना, और अपने ईश्वर की पूजा आराधना करना उसके जीवन का हिस्सा बन गया था। दैनिक कामों में उसे किसी की कोई मदद भी नहीं मिलती थी। बार-बार उन लोगों की जली-खोटी व ताने सुनने के अलावा, उसके पास और कोई रास्ता भी ना था। वह भी हंँसते-हंँसते सारी बातें सुनती और अपने काम में मग्न रहती थी। ज्यादा कष्ट होने पर वह भगवान को याद करके अपने मन को थोड़ा हल्का करती थी।
वक्त के साथ-साथ उसके ऊपर होने वाले अत्याचार और ज्यादा बढ़ गये थे। अब उसे सास व जेठानी के अलावा,पति और जेठ की भी खरी-खोटी सुननी पड़ती थी। उसकी चुप्पी को सभी लोगों ने उसकी कमजोरी समझ लिया था। इस दौरान उसने एक प्यारे से लड़के को जन्म दिया। वह सोचती थी कि शायद अब उन लोगों के जुल्म व अत्याचार कम होंगे,पर उसकी सोच गलत साबित हुई।
अब तानों और गालियों के साथ,उसके साथ मारपीट भी होने लगी थी। छोटी-छोटी बातों में भी वह लोग उसको बुरी तरह से मारते थे।
घर के अधिकतर लोग उससे घृणा और नफरत करने लगे थे। यह लोग उसे कोल्हू के बैल की तरह काम करवाते थे,और खाने के लिए आधा पेट भी भोजन ना देते थे। वो बेचारी दूसरों के लिए तीनों वक्त का भरपेट भोजन बनाकर भी,खुद भूखी रह जाती थी।
अपना दुखड़ा वो भगवान के आगे कहती थी, जिससे उसका मन थोड़ा हल्का हो जाया करता था।
पति का नजरिया भी उसके प्रति ठीक ना था। अगर वह उन लोगों के खिलाफ जाकर, अपनी पत्नी का साथ देता तो शायद ऐसी बातें ना होती। परंतु ऐसा ना था। उसके अत्याचार भी दिनों दिन बढ़ गए थे। अपनी पत्नी के साथ मारपीट और गाली-गलौच करना तो,उसके दिए आम बात हो गई थी। उसे अपने बेटे से भी कोई लगाव ना था। शायद वह अपने बेटे में,उसकी मांँ का अक्स देखता था। अपनी बेटे को भी वह,हर चीज से मोहताज रखने लगा था। उफ़!कैसा पिता था वो।अपनी जेठानी के बच्चों और अपने लड़के में हर जगह भेदभाव होता देखकर भी वह औरत चुप रहती थी। आखिर वह कर भी क्या सकती थी, आवाज उठाने पर तो उसके साथ बुरे तरीके से मारपीट की जाती थी। वह तो बस खून के आंँसू,और अपमान का घूँट पीकर,अपनी जिंदगी बिता रही थी। उसके साथ अत्याचार वक्त के साथ बढ़ता ही चला गया था।
और आखिर एक दिन उसके परिवार वालों ने उसके साथ वह किया,जो उसने सपने में भी नहीं सोचा था। आखिर उन लोगों ने ऐसा क्या किया जिससे एक सीधी-सादी और निर्दोष औरत की जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई? क्या हुआ था उस औरत और उसके बच्चे के साथ?
क्या भगवान ने भी उस औरत की एक न सुनी जिनकी वह परम भक्त थी?
और आखिरकार कैसे एक खानदान शापित बन गया था?
यह हम कहानी की तीसरी भाग में पढ़ेंगे......
Thursday, January 16, 2025
Un Nouvel Espoir
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लेखक और पाठक
लेखक और पाठक निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...
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एक शापित खानदान ----- अंतिम भाग और फिर एक दिन पगली को वह चीज मिल ही गई,जो वह जिंदगी भर अपने लिए मांँगती थी, वह थी अपनी मौत। यह ...
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एक शापित खानदान ------ भाग 4 उन चीखों और आवाजों से सारा गाँव तो मानो जैसे नींद से जाग गया था। एक तरफ पागलों जैसी हंँसी थी, तो द...