Wednesday, November 20, 2024

हमारा प्यारा उत्तराखंड

सुबह की भोर सा है, माँ की लोर सा है,
पवन के हिलोर सा है,रेगिस्तान में सुधा सा है,सुन्दरता में स्वर्ग सा है।
पवित्रता में माँ सीता सा है, गायो में कामधेनु सा है, माँ भारती के वीर सपूतों का है।
सबसे सुन्दर जिला चमोली यहाँ है, हिमालय के शीश पर बद्रीनाथ, केदारनाथ धाम यहाँ है,
सबकी रक्षा करने वाले गोयल, भूमियां बाबा, सैम देव यहां हैं।
तारकेश्वर, श्री कोटेश्वर, नीलकंठ महादेव, बिनसर यहाँ हैं,
माँ धारी देवी, माँ नंदा देवी, माँ ज्वालापा देवी यहाँ है।
नैनीताल, मसूरी, देहरादून, लेंस डाउन, कौसानी जैसे पर्यटन की जान यहाँ है,
फूलों की घाटी, ज़िम कॉर्बेट, राजा जी, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान यहाँ है।
काफ, गहौत, चेंशु, बाड़ी,मशपंड, मूली,भांग, कंडाली का साग यह है,
पवित्र राम गंगा का जल,
नौला, पहाड़ों का शुद्ध जल,
पोखरो, गधारो, का उत्तम जल, यहीं है।
बाघ,सियार,हिरण,खरगोश,
तो भोटिया जैसा वफ़ादार यहाँ है,
तोते,कोयल,घुघुत,हैं तो,
अति सुन्दर मोनाल यहा हैं
ऐसा है हमारा प्यारा उत्तराखंड,
ऐसा है हमारा प्यारा उत्तराखंड।
जय देवभूमि.

विश्व गुरु -भारतवर्ष

हमारे महान देश भारत को किसी समय विश्व गुरु की उपाधि प्राप्त थी. विश्वगुरु का अर्थ होता है,जो समस्त विश्व को अपने ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशमान करें. भारतवर्ष ने पूरे विश्व को सबसे पहले सभ्यता का ज्ञान दिया था. हमारा ज्ञान, विज्ञान,पुराण,अर्थशास्त्र, इतिहास,कला,संगीत,साहित्य,इत्यादि इतने प्रभावशाली थे, कि हमने समस्त विश्व को एक अलग और उच्च स्तरीय मार्ग दिखलाया. अलग-अलग कालखंडो में, हमने पूरे विश्व में अपना परचम लहराया है.
 हमारी सभ्यता और संस्कृति विश्व में सबसे प्राचीन है. प्राचीनता के साथ हमारी सभ्यता और संस्कृति सबसे समृद्ध थी. "सिंधु घाटी सभ्यता "हमारी सबसे प्राचीन सभ्यता थी.
 इस सभ्यता के मिले अवशेषों से,पता चलता है कि, हम विश्व के अन्य देशों से कितना आगे थे. जहां विश्व में अन्य सभ्यताओं के लोग बिना वस्त्रो के,तथा शिकार पर जीवित रहते थे, वही हमारे महान "सिंधु घाटी सभ्यता" के लोग खेती करके अलग-अलग,अनाज पैदा करते थे.इनके अनाजों में प्रमुख रूप से गेहूं, चावल, कपास,जौ,तिल इत्यादि थे. यह अपने घरों का निर्माण पत्थरों से किया करते थे. पीतल और तांबे के औजार,और बर्तन बनाते थे. गाय,भैंसे व अन्य मवेशी पालते थे. हमारी प्राचीन सभ्यता अन्य सभ्यताओं से काफी उन्नत थी.
 भारत में गुरुकुलों का प्राचीन व महानतम इतिहास रहा है. इन गुरुकुलों में 7-8 वर्ष के बच्चों को भेजा जाता था, जहां पर वे लोग गणित,वैदिक शास्त्र,ज्योतिष शास्त्र,खगोल शास्त्र,अर्थशास्त्र जैसे विषयों का ज्ञान प्राप्त करते थे.शिक्षा पूर्ण होने पर ही वह लोग वापिस आते थे.
 प्राचीन भारत में "नालंदा "जैसा महान विश्वविद्यालय भी था. "नालंदा विश्वविद्यालय" ज्ञान और समय के हिसाब से, पूरे विश्व से काफी आगे था. यहां पूरे विश्व से अलग-अलग देशों के लोग,ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे. यहां से ज्ञान प्राप्त करके वह अपने देशों में उस ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते थे.
 यहां पर विज्ञान,दर्शनशास्त्र,अर्थशास्त्र, गणित,कला,मनोविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान,जैसे उन्नत विषय पढ़ाये जाते थे.
 "नालंदा विश्वविद्यालय" की स्थापना, गुप्त वंश के राजा, "कुमार गुप्त प्रथम" ने की थी.
 प्राचीन भारत काफ़ी धनाध्य् था. भारतवर्ष में हीरे,मोती,सोने,चांदी,नगीनों, जवाहरातों,रत्नों का बड़ा भंडार था. हमारे राजा महाराजाओं के पास अपार धन संपदा थी, जिसका कोई हिसाब-किताब नहीं था. हमारी भूमि काफी उपजाऊ थी, इस पर विभिन्न प्रकार के अनाजों,फल-सब्जियों की,पैदावार बहुत अधिक मात्रा में होती थी. हमारे यहां दूध की नदियां बहती थी, भारतवर्ष को तब "सोने की चिड़िया "कहा जाता था. हम विश्व के अन्य देशों से व्यापार करते थे, यह व्यापार सभी रूपों में था,जिसे भारत को बहुत फायदा पहुंचता था.
 यही उन्नता और समृद्धिता भारत के लिए एक नई मुसीबत को लेकर आई. "सोने की चिड़िया "भारत विश्व के अनेक देशों की, आंखों में खटकने लगा था. इसी कारण विदेशी आक्रांताओं (मुगलों, तुर्कीओ )और बाद में अंग्रेजों ने भारतवर्ष को गुलाम बना कर इस,सोने की चिड़िया को कंगाल कर दिया. यहां से लूट-लूट कर धन, दौलत और अकूत संपत्तियों को यह अपने देश ले जाते रहे. पानी के जहाज़ो में भर भर कर यह लुटेरे, सारी संपत्तियों को अपने देश ले जाते थे.भारतवर्ष ने गुलामी की एक लंबी और कठोर अवधि को झेला है. गुलामी के लिए हमारे यहां के कुछ गद्दार,लालची,और विकृत मानसिकता के लोग भी थे. अपने लालच और स्वार्थसिद्धि के लिए ये लोग, किसी भी स्तर पर गिर सकते थे. ऐसे लोग की वजह से भारतवर्ष कितने सालों तक गुलाम रहा.
 परंतु बाद में अलग-अलग कालखंडो में हमारे महान, वीर देशवासियों, स्वतंत्रता सेनानियों ने भारतवर्ष को गुलामी से आजाद करवाया. आजादी के लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. अन्तःभारत गुलामी की बेड़ियों से आजाद हुआ.
 आज भारत एक अच्छी स्थिति में है. भारत में लोकतंत्र आज भी यथाशक्ति कायम है. आज भारत हर क्षेत्र( रक्षा,विज्ञान, प्रौद्योगिकी उद्योग, व्यापार इत्यादि ) मे आगे बढ़ रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था भी तीसरे नंबर पर है, और आगामी 5 सालों में इसमें और भी सुधार हो सकता है. यह सब तब हुआ है जब पूरे विश्व ने कोरोना जैसी महामारी का दंश झेला था. कोरोना काल के बाद से विश्व के बड़े-बड़े देशों की अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गई हैं. बाहर के देशों में विकास दर ठप्प पड़ा है. परंतु भारत की स्थिति इन देशों से बेहतर है. 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प तत्कालीन प्रधानमंत्री जी द्वारा लिया गया है. एक महान शासक ही महान राष्ट्र की नींव रखता है. आने वाला समय भारतवर्ष का है. दोबारा विश्व गुरु बनने की राह पर भारत आगे निकल चुका है.
"जय हिन्द, जय-भारत ".

Tuesday, November 19, 2024

अध्यात्म

अध्यात्म क्या होता है? क्या इससे मनुष्य जीवन प्रभावित होता है?
 क्या अध्यात्म ईश्वर से जुड़ा हुआ है?
 स्वयं अपने आप को जानना ही अध्यात्म कहलाता हैI अध्यात्म दो शब्दों "अध्य"और "आत्म"से मिलकर बना हैI अध्य मतलब "चारों ओर " और आत्म मतलब "स्वयं " होता हैI मतलब जब इंसान अपने चारों तरफ से स्वयं को( आत्मबोध ), जाननें लगता है, उसे आध्यात्म कहते हैं I
 अध्यात्म का सीधा संबंध हमारी आत्मा से होता है I हर आत्मा का परमात्मा में विलय होता ही है,क्योंकि हर जीव,हर आत्मा, उस  परमात्मा से ही निकलती हैI हर जीव को जीवन ईश्वर की देन हैI परमात्मा में आत्मा का मिलन ही अध्यात्म कहलाता है I अध्यात्म ईश्वरीय चिंतन है, ईश्वरीय मनन है, भौगोलिक सुखों को छोड़ पारलौकिक भक्ति में रम जाना ही अध्यात्म है I
 अवचेतन मन को जगा कर निराकार ईश्वरीय भक्ति,व शक्ति से,जुड़ने का नाम ही अध्यात्म है I अध्यात्म हमारे सनातन धर्म में एक विद्या है, चिंतन-मनन है, हमारे ऋषि,मुनियों, सन्यासियों की तपस्या का सार है.
 जन्म-मृत्यु,पुनर्जन्म,आत्मा -परमात्मा,जैसी ना जाने कितनी गुत्थियों को सुलझाने का नाम है अध्यात्म I हम मनुष्य अपने जीवन काल में हर क्षणिक व भौगोलिक सुख के लिए भागते रहते हैं, एक चीज की पूर्ति होने पर दूसरी चीज के लिए इच्छा पैदा हो जाती है. यह इच्छा और पूर्ति जीवन भर चलती रहती है. और जब तक हमें अपने असली सुख और खुशी का अनुभव होता है,तब तक काफी देर हो चुकी होती है Iतब तक हमारा अंत समय नजदीक आ चुका होता है. उस  वक्त हम इन भौगोलिक चीजों को छोड़कर उस परमपिता परमेश्वर को ढूंढते हैं, उस वक्त मनुष्य कुछ नहीं कर सकता है.
 अतः समय रहते यदि हम उसे परमपिता परमेश्वर को समझ जाए,उनको पहचान जाए, उनकी ईश्वरीय वंदना में लील होकर, आत्मा और परमात्मा को जान ले तो सबको परम आनंद की प्राप्ति होगी.
 अध्यात्म इस मार्ग में हमारी काफी सहायता करेगा I योग,ध्यान, भक्ति और अध्यात्म से ही परमात्मा और आत्मा की अनुभूति की जा सकती है I सत्य और सनातन ही अध्यात्म है.

Monday, November 18, 2024

"मैं " कौन हूँ

क्या कभी आपने ऐसा विचार किया है कि मैं कौन हूं?, मेरी पहचान क्या है?, मेरा अस्तित्व क्या है? क्या मेरा जो नाम है वह मेरी पहचान है? क्या मेरा जो परिवार है वह मेरी पहचान है? क्या मेरा पद या मेरा व्यवसाय मेरी पहचान है? इन सभी सवालों का जवाब है नहीं, इनमें से कोई भी मेरी पहचान नहीं है!
 पर आखिर स्वयं भूत मैं कौन हूं?
 स्वयं से ऐसा प्रश्न करने से पहले हमें अपने चेतन और अवचेतन मन को जागृत करना होगा. यह प्रश्न बहुत गहरा है, भगवत गीता में भी इस बात का उल्लेख है. हमारे जीवन का अंतिम सत्य है मृत्यु. हमारा शरीर नश्वर होता है परंतु हमारी आत्मा नहीं. मृत्यु के पश्चात हमारे आत्मा का परमात्मा में ब्रह्मा मिलन हो जाता है. आत्मा तो अजर-अमर होती है, आत्मा सनातन है, आत्मा शाश्वत है.
 हमारा शरीर तो वस्त्र के समान है, जिस प्रकार हम कोई वस्त्र मैला हो जाने के पश्चात दूसरा वस्त्र पहनते हैं,उसी प्रकार आत्मा भी एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती है. हम तो कुछ होते ही नहीं , 🙏🙏जो कुछ है यही आत्मा है.सब कुछ ज्ञान होते हुए भी हम जिंदगी भर अज्ञानी बने रहते हैं. वास्तव में यही सारे दुखों की वजह है.
 जिस दिन हमें इस बात का आत्मबोध हो जाऐगा,जीवन से सारे दुख स्वतः ही खत्म हो जाएंगे. ध्यान और योग में खुद को डुबोकर, ईश्वर का ध्यान करते हुए,"मैं "का बोध हो सकता है.अपने अवचेतन मन को जागृत करते हुए, अपनी अस्तित्व की पहचान करी जा सकती है. धर्म और अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही इस सवाल का जवाब ढूंढा जा सकता है. "मैं "तो हमारे अंदर ही निहित है,ईश्वरीय मार्ग पर चलकर,योग और साधना के माध्यम से अपने अंदर निहित "मैं "की पहचान करी जा सकती है.
 हमारे महान भारतवर्ष में अनगिनत ऋषि, मुनि,संत,महात्मा इत्यादि हुए हैं,जो इस परमानंद की प्राप्ति कर चुके हैं.उन्होंने योग, ध्यान,तपस्या के बल पर ईश्वरीय मार्ग पर चलकर इसकी प्राप्ति करी है.
 इस सवाल का जवाब हम सभी को अपने आप से भी करना चाहिए कि आखिर मैं कौन हूं. हमें भी योग,साधना और सत्य मार्ग पर चलकर ईश्वर कि आराधना करते हुए स्वयं की पहचान करनी चाहिए. अगर हम ऐसा करते हैं तो हमें अपना जवाब मिल जाएगा.


Monday, November 11, 2024

एक नई शुरुआत

Ek nayi shuruwaat Khafi lambe samay k baad aaj phir se likne k liye waqt nikala hai.school aur college k samay khafi kuch likha.lekhan , slogan,bhasan etc mai khafi puraskar bhi mile.News paper Navbharat Times mai bhi kuch article likhe.par waqt ki bhaga daudi mai sab phir kahi peeche chute gaya.
Ab ek lambe antraal k baad mai aapka Bhai Kamal Mehta ek koshish kar raha hu.alag alag visyo, apne samaaj,apne sanskaro,aur apne pahad(uttrakhand) k bare Mai nayi nayi jaankariyan aap tak apne lekhan k madhyam se pauchta rahu.Aap apna Prem banaye rakhana.kisi bhi parkaar ki galtiyon k liye shama parthi hu.

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...