Wednesday, March 12, 2025

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक


 निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कविता,कहानी या उपन्यास में ढ़ालना,एक कुशल लेखक की पहचान होती है। एक कुशल लेखक शब्दों का ऐसा मायाजाल बुनता है,कि हर कोई बंध कर रह जाता है। शब्दों की छाप पाठक के मन मस्तिष्क पर छप जाती है। एक लेखक को सफल उसके पाठक ही बनाते हैं। पाठकों का प्यार और विश्वास ही लेखक की इच्छा शक्ति को मजबूत करता है। पाठक ही लेखक को वो फौलादी दीवार सा हौसला देते हैं,जिसे भेद पाना मुश्किल होता है। लेखनी की भट्टी में तपकर ही कुंदन रूपी लेखक निकलता है।
 पाठक और लेखक के ऊपर एक छोटी सी कविता निम्नलिखित है।

 मैं एक लेखक हूंँ,
 आप (पाठकों)का सेवक हूँ, 
 मेरी पहचान आपसे ही है,
 मेरे शब्द संसार में आप ही हैं।
 उम्मीद करता हूंँ आपकी आवाज बनू मैं, आपका साथी और हमराज बनू मैं,
 मैं सबसे बेहतर हूंँ,यह नहीं कहता मैं,
 आपकी पसंद सर्वोत्तम है, उस पसंद की दाद बनू मैं।
 मैं एक लेखक हूंँ,
 आप (पाठकों) का सेवक हूँ।  
 कलम की धार और पैनी करनी है मुझे,
 अनकहे कई सवाल करने है मुझे,
 अपना प्यार देते रहना हर कदम पर मुझे,
 अंतिम सांस तक चलेगी मेरी कलम, फिर यह विश्वास है मुझे।
 मैं एक लेखक हूंँ,
 आप (पाठकों) का सेवक हूँ। 
 मेरी गलतियांँ हो तो उसे सुधार देना,
 मेरी कमियांँ हो तो मुझे बतला देना,
 लड़खड़ा जाऊंँ कभी जो मैं, तो सहारा देकर मुझे संभाल लेना,
 बीच मझंँधार फंसी जो मेरी कश्ती,तो तुम उसे पार लगा देना।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप(पाठकों )का सेवक हूँ।
 आपसे शुरू होकर आप पर खत्म है,
 आप अगर ना हो तो,फिर मेरा क्या वजूद है?
 लेखनी से लेखक और लेखक पाठकों का है,
 पाठकों से ही तो फिर सारा संसार अपना है।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप (पाठकों) का सेवक हूँ।
 सुधार अभी बहुत करना है,
 अधूरा है जो,पूरा वह काम करना है,
 छाई है बर्फ की दीवारों पर,धुंध की चादर,
 हवाओं से मिलकर,उसे साफ करना है।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप (पाठकों )का सेवक हूँ।
 समाज में कुरुतियाँ और बुराइयांँ,बहुत है अभी,
 मजबूत इरादों से बहुत सुधार,बाकी है अभी,
 तपना है आग में,कुंदन बनने से पहले,
 मंजिल से पहले अब रुकना नहीं है मुझे।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप (पाठकों )का सेवक हूँ।



लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...