Saturday, February 15, 2025

ऊँची उड़ान के सपने

एक ऊँची उड़ान 
आसमान में चमकते सूरज की तरह, 
 तूफानों में पवन के वेग की तरह,
 महासागर में मिलते जल धाराओं की तरह,
 ज्वालामुखी से निकलते गरम लावे की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।
 शाख से टूटे पत्तों की तरह,
 बहते जलप्रपात के धाराओं की तरह,
 मिट्टी में पैदा हुए,नव अंकुर की तरह,
 कांटों में खिलते हुए गुलाब की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।
 खेतों में लहराती फसल की तरह,
 कड़े धूप में बहते मेहनती पसीने की तरह,
 पशुओं में उत्तम कामधेनु गाय की तरह,
 बंजर जमीन पर चलते,हल के धार की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।
 रत्नों के बीच में सुशोभित,माणिक्य की तरह, 
 रात्रि में चमकते पूर्णिमा के चांँद की तरह,
 भोर में चमकते ध्रुव तारे की तरह,
 इंद्रधनुष के सुंदर रंगों की तरह,
 बंद है इन आंँखों में, ऊंँची उड़ान के सपने।
 जीवनदायिनी इस प्रकृति मांँ की तरह,
 पापनाशिनी, पावन गंगा की तरह,
 आत्मा को झझकोरते,शंखनाद की तरह,
 भक्ति में डूबे भक्त की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।


Tuesday, February 4, 2025

एक शापित खानदान ----- भाग 6 अंतिम भाग

एक शापित खानदान ----- अंतिम भाग


 और फिर एक दिन पगली को वह चीज मिल ही गई,जो वह जिंदगी भर अपने लिए मांँगती थी, वह थी अपनी मौत। यह उसे पहले मिल जाती तो शायद उसे पहले ही मुक्ति मिल जाती। पर होनी को कौन टाल सकता था। पगली अब इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर खामोश हो गई थी। मौत ने भी पगली के जीवन में आने में काफी वक्त ले लिया था। उसका जीवन भी क्या जीवन था,दर्द,आंँसुओं और पागलपन से भरा हुआ। मृत्यु से पूर्व पगली ने अपने दिल के रोष को जी भर कर बाहर निकाला था। उसने अपने पूरे परिवार को कहा था कि मैं तुम्हें मृत्यु के बाद भी नहीं छोडूंगी। तुम सबके आने वाली कितनी पीढ़ियांँ मेरे रोष का प्रकोप झेलती रहेंगी। मैं तुम्हें शांति से जीना तो दूर,शांति के साथ मरने भी नहीं दूंगी। पगली ने यह श्राप देकर उस खानदान को शापित कर दिया था।
 पगली यह देह तो छोड़ चुकी थी,परंतु उसकी आत्मा तो अशांत थी। क्या पगली के मरने के बाद उसका श्राप फलीभूत होने वाला था?
 क्या उसकी अशांत आत्मा,उसका प्रतिशोध लेने वाली थी?
 उसकी मौत के बाद उसके घर वालों ने तो जैसे चैन की सांँस ली थी। परंतु पगली के मरने के बाद उसके घर वाले एक और महापाप कर बैठे थे। पगली के मरने के बाद उसके घर वालों ने उसका अंतिम संस्कार भी नहीं किया था। वे लोग उसकी मृत देह को उठाकर उसी नदी किनारे वाले पेड़ के नीचे आ गए थे। वहांँ पर उन्होंने एक बड़ा सा गड्ढा खोदा,और पगली के मृत शरीर को उसमें दफन कर दिया। गड्ढे के ऊपर उन्होंने बड़े-बड़े पत्थर और कांटों की बाड़ डाल दी थी। यह उन लोगों द्वारा किया गया एक और घोर पाप था,जिसका खामियाजा उनकी आने वाली नस्लों को झेलना था। हिंदू रीति रिवाज के अनुसार पगली के मृत शरीर को पूरे विधि- विधान के साथ मुखाग्नि देनी चाहिए थी। उसका श्राद्ध,तर्पण इत्यादि होना चाहिए था,
 परंतु ऐसा नहीं किया गया।
 पगली की मौत के बाद गांँव वाले भी उन मांँ- बेटे की किस्मत,और उन दोनों की मौतों पर रोते थे। कई गांँव वालों के अनुसार,पगली के बेटे की मौत में उसके घरवालों का ही हाथ था। वे लोग उसके बच्चे को नदी किनारे ले गए थे। उन्होंने ही बच्चे को नदी के गहराई वाले हिस्से में जाने के लिए कहा था,और जब वह डूबने लगा तो उसकी कोई मदद नहीं करी थी। यह सब बातें सच थी। उफ़!कैसे पत्थर दिल लोग थे वो।
 पगली की मौत के थोड़े समय बाद ही उसकी सास भी खत्म हो गई। अब उस परिवार के बुरे दिन शुरू हो गए थे। थोड़े समय के पश्चात पगली की जेठानी भी मानसिक तौर पर पगला गई थी। उसके हालात तो पगली से भी बदतर हो गए थे। वह पूरे गांँव में पागलों की तरह घूमती रहती थी,अपने कपड़े खुद ही फाड़ लेती थी। वह लोगों को देखते ही उनके ऊपर बड़े-बड़े पत्थर उठाकर मारने लग जाती थी। पूरे गांँव वाले उस से परेशान हो चुके थे। उसके यह हालात उसके बुरे कर्मों का फल थे।
 भूख लगने पर वह गंदी चीजें तक खा जाती थी। कई लोगों का दावा था कि वह मल-मूत्र तक खा जाती थी। उफ़ कितना घिनौना और गंदा था यह सब कुछ। बाद में वह भी तड़प तड़प कर मर गई थी। पगली का पति जिसने पगली के ऊपर जीवन भर अत्याचार किए थे, वह भी अब बिस्तर पर लकवा ग्रस्त पड़ा था। उसके शरीर का एक हिस्सा अपंग हो गया था। वह लाचार और बीमार,अपने मल-मूत्र में लिपटा हुआ,बिस्तर पर पड़ा रहता था। अब उसको कोई एक घूंट पानी पिलाने वाला भी नहीं था। यह सब उसके बुरे कर्मों का परिणाम था। ऐसी ही दयनीय स्थिति में उसने दम तोड़ दिया था। गांँव वाले बताते थे कि उसके अंतिम संस्कार में लकडियांँ भी कम पड़ गई थी। उसका अंतिम संस्कार भी ठीक से नहीं हो पाया था। पगली का जेठ भी बाद में घर से लापता हो गया था। वह भी बदहवास सा कहांँ-कहांँ भटकता रहता था। बाद में खबर आई कि वह कहीं दूर दुर्घटना में मारा गया था। उसको भी उसके किए की सजा मिल चुकी थी।
 पगली के दो छोटे देवर भी,वक्त के साथ अब बड़े हो गए थे। दोनों की घर गृहस्तियांँ बस चुकी थी,और वह बाल बच्चेदार हो गए थे।
 उन दोनों के दिल में पगली के लिए सहानुभूति थी,इसलिए उनके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ था। परंतु पगली के दिल का रोष, और उसका श्राप,तो पूरे परिवार को था। आगे इन दोनों भाइयों के गुजर जाने के पश्चात उनके आने वाली पीढ़ियों ने भी,इस दंड को भुगता था। उनके परिवार के ऊपर कोई ना कोई परेशानी पड़ती रहती थी। कुछ शारीरिक तौर पर तो कुछ मानसिक तौर पर हमेशा परेशान रहते थे। उन लोगों के बने-बनाये काम भी,अपने आप बिगड़ जाते थे। घरवाले आपस में ही लड़ते रहते थे। आखिर पगली का प्रतिशोध कब शांत होने वाला था? अपना डर और असर दिखाने के लिए पगली की आत्मा ने,उस परिवार के छोटे बच्चों को भी नहीं बक्शा था। एक दिन रात्रि में जब पूरा परिवार सो रहा था,तो उस परिवार के आठ- नौ वर्ष के एक मासूम बच्चे के साथ एक घटना घटी।रात को एक सफेद परछाई उसके सीने पर आकर बैठ जाती है,और उसका गला दबाने लगती है। वह मासूम बालक हिल-डुल भी नहीं पा रहा था।उसके गले से कोई आवाज भी नहीं निकल पा रही थी। वह सफेद काया पूर्ण रूप से नग्न थी,उसके बाल घुटनों से नीचे तक लंबे थे। बाद में बड़ी मुश्किल से बच्चे ने किसी तरह खुद को छुड़ाया था। दरअसल वह सफेद काया पगली की आत्मा थी,जो ना जाने कितने मौकों पर परिवार को परेशान करती रहती थी।
 और आखिरकार जब पूरा परिवार इन सब चीजों से परेशान हो गया,तो फिर उन्होंने मिलकर इसका समाधान निकालने की कोशिश करी। उन्होंने विशेष पुजारी जो भूत- प्रेत,और आत्माओं को शांत करके काबू करते हैं,उनसे परामर्श लिया। पुजारी जी द्वारा विशेष पूजा पाठ किया गया। पूरे खानदान ने अपनी पूर्वजों द्वारा किए गए पापों,और उनके बुरे कर्मों के लिए माफी मांँगी। पुजारी जी ने एक बाँस की प्रतिमा को पगली के शरीर के तौर पर बनाया,और उसका पूरे विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार करवाया। यह सब करने के पश्चात आखिरकार पूरे खानदान को पगली की आत्मा से मुक्ति मिली। कितने वर्षों तक भटकने के बाद आखिरकार उस आत्मा का रोष अब शांत हो गया था। पगली की आत्मा को अब मुक्ति मिल गई थी। और आखिरकार एक शापित खानदान कितनी पीढियों तक चले एक श्राप से मुक्त हो गया था। कितने समय के बाद सब ने चैन की सांँस ली थी। बीती काली रातों के बाद अब उनके सामने एक नई सुबह और उमंग थी।
 पूरा परिवार अब सत्मार्ग और निष्पाप,चलने के लिए तैयार था। यहीं से उन सबका मानो नवजीवन आरंभ हो चुका था।

Saturday, February 1, 2025

Attitude (French)

Attitude 

Nous faisons beaucoup de choses dans notre vie quotidienne. que notre ordre de vie reste occupé. Alors que les enfants vont à l'école, le travail des adultes, ou vont pour leur entreprise, et les récepteurs font leurs tâches quotidiennes à la maison, etc. J'ai la capacité de faire les tâches de chaque personne, et sa façon est différente. Une personne capable, peut effectuer une tâche, de manière «bonne» et «meilleure», au lieu d'une personne nouvelle et «désactivée». Quelle est l'attitude, l'attitude ou l'attitude de toute personne, pour tout acte, s'appelle son attitude Dans n'importe quelle tâche lorsque l'efficacité arrive, le point de vue de cette personne est fixé. C'est-à-dire toute personne en mesure de, et efficace dans sa propre situation ou domaine, décide de son attitude ou «Attitude» uniquement par la façon dont il fait ce travail. L'homme donne ses 100% de ce travail pour atteindre l'efficacité. Le résultat est bon pour lui. L'attitude rend toute personne parfaite ou efficace dans son travail. Attitude nous pouvons faire n'importe quel travail bien je habituellement les gens, «Attitude» et, «vanité», regarder ensemble, ils comprennent les deux ces choses de la même façon, alors que cette chose est absolument fausse. L'attitude, (yeux), et la vanité (Ego), fait une différence. Lorsque l'attitude nous rend compétents ou parfaits dans n'importe quelle tâche, l'orgueil crée une confiance excessive en une personne. La croyance de faire n'importe quelle tâche est bonne, mais elle n'a pas beaucoup confiance en faire la tâche. Toute tâche "je peux" c'est la croyance de la personne, mais cette tâche, "seulement je peux", c'est la confiance excessive de la personne. Le travail sur-confiance peut également être gâté. L'attitude crée une attitude positive en personne. En personne que les qualités sont créées cela, il peut tout voir d'un point de vue différent. Une personne avec Attitude dans une foule de Saccharo, crée sa propre identité. De telles personnes s'abstiennent d'être derrière quelqu'un, ou de marcher derrière quelqu'un, ils font leur propre chemin, et décident de leur propre destination. "Il y a cent personnes derrière moi", à la place ces cent personnes se sentent comme ça, "je suis un lion avec eux", ça s'appelle Attitude. Un travail plus important qu'une attitude positive est également possible. Même en nous tous, il doit y avoir un peu trop d'attitude. Il devrait être une approche positive et meilleure. Une personne avec une attitude positive, laissez son influence sur le panneau mondial aussi. Il se reflète également dans les grands «leaders de masse» du monde, de leur marche, de leur montée et de leur séance, de leurs actions, de leur mode de vie, cela semble clair. Pour une société bonne et saine, avoir une attitude positive, aurait dû organiser l'attitude. Cela permet à une personne d'atteindre un grand succès, facilement.

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...