Wednesday, March 12, 2025

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक


 निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कविता,कहानी या उपन्यास में ढ़ालना,एक कुशल लेखक की पहचान होती है। एक कुशल लेखक शब्दों का ऐसा मायाजाल बुनता है,कि हर कोई बंध कर रह जाता है। शब्दों की छाप पाठक के मन मस्तिष्क पर छप जाती है। एक लेखक को सफल उसके पाठक ही बनाते हैं। पाठकों का प्यार और विश्वास ही लेखक की इच्छा शक्ति को मजबूत करता है। पाठक ही लेखक को वो फौलादी दीवार सा हौसला देते हैं,जिसे भेद पाना मुश्किल होता है। लेखनी की भट्टी में तपकर ही कुंदन रूपी लेखक निकलता है।
 पाठक और लेखक के ऊपर एक छोटी सी कविता निम्नलिखित है।

 मैं एक लेखक हूंँ,
 आप (पाठकों)का सेवक हूँ, 
 मेरी पहचान आपसे ही है,
 मेरे शब्द संसार में आप ही हैं।
 उम्मीद करता हूंँ आपकी आवाज बनू मैं, आपका साथी और हमराज बनू मैं,
 मैं सबसे बेहतर हूंँ,यह नहीं कहता मैं,
 आपकी पसंद सर्वोत्तम है, उस पसंद की दाद बनू मैं।
 मैं एक लेखक हूंँ,
 आप (पाठकों) का सेवक हूँ।  
 कलम की धार और पैनी करनी है मुझे,
 अनकहे कई सवाल करने है मुझे,
 अपना प्यार देते रहना हर कदम पर मुझे,
 अंतिम सांस तक चलेगी मेरी कलम, फिर यह विश्वास है मुझे।
 मैं एक लेखक हूंँ,
 आप (पाठकों) का सेवक हूँ। 
 मेरी गलतियांँ हो तो उसे सुधार देना,
 मेरी कमियांँ हो तो मुझे बतला देना,
 लड़खड़ा जाऊंँ कभी जो मैं, तो सहारा देकर मुझे संभाल लेना,
 बीच मझंँधार फंसी जो मेरी कश्ती,तो तुम उसे पार लगा देना।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप(पाठकों )का सेवक हूँ।
 आपसे शुरू होकर आप पर खत्म है,
 आप अगर ना हो तो,फिर मेरा क्या वजूद है?
 लेखनी से लेखक और लेखक पाठकों का है,
 पाठकों से ही तो फिर सारा संसार अपना है।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप (पाठकों) का सेवक हूँ।
 सुधार अभी बहुत करना है,
 अधूरा है जो,पूरा वह काम करना है,
 छाई है बर्फ की दीवारों पर,धुंध की चादर,
 हवाओं से मिलकर,उसे साफ करना है।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप (पाठकों )का सेवक हूँ।
 समाज में कुरुतियाँ और बुराइयांँ,बहुत है अभी,
 मजबूत इरादों से बहुत सुधार,बाकी है अभी,
 तपना है आग में,कुंदन बनने से पहले,
 मंजिल से पहले अब रुकना नहीं है मुझे।
 मैं एक लेखक हूँ,
 आप (पाठकों )का सेवक हूँ।



Saturday, February 15, 2025

ऊँची उड़ान के सपने

एक ऊँची उड़ान 
आसमान में चमकते सूरज की तरह, 
 तूफानों में पवन के वेग की तरह,
 महासागर में मिलते जल धाराओं की तरह,
 ज्वालामुखी से निकलते गरम लावे की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।
 शाख से टूटे पत्तों की तरह,
 बहते जलप्रपात के धाराओं की तरह,
 मिट्टी में पैदा हुए,नव अंकुर की तरह,
 कांटों में खिलते हुए गुलाब की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।
 खेतों में लहराती फसल की तरह,
 कड़े धूप में बहते मेहनती पसीने की तरह,
 पशुओं में उत्तम कामधेनु गाय की तरह,
 बंजर जमीन पर चलते,हल के धार की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।
 रत्नों के बीच में सुशोभित,माणिक्य की तरह, 
 रात्रि में चमकते पूर्णिमा के चांँद की तरह,
 भोर में चमकते ध्रुव तारे की तरह,
 इंद्रधनुष के सुंदर रंगों की तरह,
 बंद है इन आंँखों में, ऊंँची उड़ान के सपने।
 जीवनदायिनी इस प्रकृति मांँ की तरह,
 पापनाशिनी, पावन गंगा की तरह,
 आत्मा को झझकोरते,शंखनाद की तरह,
 भक्ति में डूबे भक्त की तरह,
 बंद है इन आंँखों में,ऊंँची उड़ान के सपने।


Tuesday, February 4, 2025

एक शापित खानदान ----- भाग 6 अंतिम भाग

एक शापित खानदान ----- अंतिम भाग


 और फिर एक दिन पगली को वह चीज मिल ही गई,जो वह जिंदगी भर अपने लिए मांँगती थी, वह थी अपनी मौत। यह उसे पहले मिल जाती तो शायद उसे पहले ही मुक्ति मिल जाती। पर होनी को कौन टाल सकता था। पगली अब इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर खामोश हो गई थी। मौत ने भी पगली के जीवन में आने में काफी वक्त ले लिया था। उसका जीवन भी क्या जीवन था,दर्द,आंँसुओं और पागलपन से भरा हुआ। मृत्यु से पूर्व पगली ने अपने दिल के रोष को जी भर कर बाहर निकाला था। उसने अपने पूरे परिवार को कहा था कि मैं तुम्हें मृत्यु के बाद भी नहीं छोडूंगी। तुम सबके आने वाली कितनी पीढ़ियांँ मेरे रोष का प्रकोप झेलती रहेंगी। मैं तुम्हें शांति से जीना तो दूर,शांति के साथ मरने भी नहीं दूंगी। पगली ने यह श्राप देकर उस खानदान को शापित कर दिया था।
 पगली यह देह तो छोड़ चुकी थी,परंतु उसकी आत्मा तो अशांत थी। क्या पगली के मरने के बाद उसका श्राप फलीभूत होने वाला था?
 क्या उसकी अशांत आत्मा,उसका प्रतिशोध लेने वाली थी?
 उसकी मौत के बाद उसके घर वालों ने तो जैसे चैन की सांँस ली थी। परंतु पगली के मरने के बाद उसके घर वाले एक और महापाप कर बैठे थे। पगली के मरने के बाद उसके घर वालों ने उसका अंतिम संस्कार भी नहीं किया था। वे लोग उसकी मृत देह को उठाकर उसी नदी किनारे वाले पेड़ के नीचे आ गए थे। वहांँ पर उन्होंने एक बड़ा सा गड्ढा खोदा,और पगली के मृत शरीर को उसमें दफन कर दिया। गड्ढे के ऊपर उन्होंने बड़े-बड़े पत्थर और कांटों की बाड़ डाल दी थी। यह उन लोगों द्वारा किया गया एक और घोर पाप था,जिसका खामियाजा उनकी आने वाली नस्लों को झेलना था। हिंदू रीति रिवाज के अनुसार पगली के मृत शरीर को पूरे विधि- विधान के साथ मुखाग्नि देनी चाहिए थी। उसका श्राद्ध,तर्पण इत्यादि होना चाहिए था,
 परंतु ऐसा नहीं किया गया।
 पगली की मौत के बाद गांँव वाले भी उन मांँ- बेटे की किस्मत,और उन दोनों की मौतों पर रोते थे। कई गांँव वालों के अनुसार,पगली के बेटे की मौत में उसके घरवालों का ही हाथ था। वे लोग उसके बच्चे को नदी किनारे ले गए थे। उन्होंने ही बच्चे को नदी के गहराई वाले हिस्से में जाने के लिए कहा था,और जब वह डूबने लगा तो उसकी कोई मदद नहीं करी थी। यह सब बातें सच थी। उफ़!कैसे पत्थर दिल लोग थे वो।
 पगली की मौत के थोड़े समय बाद ही उसकी सास भी खत्म हो गई। अब उस परिवार के बुरे दिन शुरू हो गए थे। थोड़े समय के पश्चात पगली की जेठानी भी मानसिक तौर पर पगला गई थी। उसके हालात तो पगली से भी बदतर हो गए थे। वह पूरे गांँव में पागलों की तरह घूमती रहती थी,अपने कपड़े खुद ही फाड़ लेती थी। वह लोगों को देखते ही उनके ऊपर बड़े-बड़े पत्थर उठाकर मारने लग जाती थी। पूरे गांँव वाले उस से परेशान हो चुके थे। उसके यह हालात उसके बुरे कर्मों का फल थे।
 भूख लगने पर वह गंदी चीजें तक खा जाती थी। कई लोगों का दावा था कि वह मल-मूत्र तक खा जाती थी। उफ़ कितना घिनौना और गंदा था यह सब कुछ। बाद में वह भी तड़प तड़प कर मर गई थी। पगली का पति जिसने पगली के ऊपर जीवन भर अत्याचार किए थे, वह भी अब बिस्तर पर लकवा ग्रस्त पड़ा था। उसके शरीर का एक हिस्सा अपंग हो गया था। वह लाचार और बीमार,अपने मल-मूत्र में लिपटा हुआ,बिस्तर पर पड़ा रहता था। अब उसको कोई एक घूंट पानी पिलाने वाला भी नहीं था। यह सब उसके बुरे कर्मों का परिणाम था। ऐसी ही दयनीय स्थिति में उसने दम तोड़ दिया था। गांँव वाले बताते थे कि उसके अंतिम संस्कार में लकडियांँ भी कम पड़ गई थी। उसका अंतिम संस्कार भी ठीक से नहीं हो पाया था। पगली का जेठ भी बाद में घर से लापता हो गया था। वह भी बदहवास सा कहांँ-कहांँ भटकता रहता था। बाद में खबर आई कि वह कहीं दूर दुर्घटना में मारा गया था। उसको भी उसके किए की सजा मिल चुकी थी।
 पगली के दो छोटे देवर भी,वक्त के साथ अब बड़े हो गए थे। दोनों की घर गृहस्तियांँ बस चुकी थी,और वह बाल बच्चेदार हो गए थे।
 उन दोनों के दिल में पगली के लिए सहानुभूति थी,इसलिए उनके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ था। परंतु पगली के दिल का रोष, और उसका श्राप,तो पूरे परिवार को था। आगे इन दोनों भाइयों के गुजर जाने के पश्चात उनके आने वाली पीढ़ियों ने भी,इस दंड को भुगता था। उनके परिवार के ऊपर कोई ना कोई परेशानी पड़ती रहती थी। कुछ शारीरिक तौर पर तो कुछ मानसिक तौर पर हमेशा परेशान रहते थे। उन लोगों के बने-बनाये काम भी,अपने आप बिगड़ जाते थे। घरवाले आपस में ही लड़ते रहते थे। आखिर पगली का प्रतिशोध कब शांत होने वाला था? अपना डर और असर दिखाने के लिए पगली की आत्मा ने,उस परिवार के छोटे बच्चों को भी नहीं बक्शा था। एक दिन रात्रि में जब पूरा परिवार सो रहा था,तो उस परिवार के आठ- नौ वर्ष के एक मासूम बच्चे के साथ एक घटना घटी।रात को एक सफेद परछाई उसके सीने पर आकर बैठ जाती है,और उसका गला दबाने लगती है। वह मासूम बालक हिल-डुल भी नहीं पा रहा था।उसके गले से कोई आवाज भी नहीं निकल पा रही थी। वह सफेद काया पूर्ण रूप से नग्न थी,उसके बाल घुटनों से नीचे तक लंबे थे। बाद में बड़ी मुश्किल से बच्चे ने किसी तरह खुद को छुड़ाया था। दरअसल वह सफेद काया पगली की आत्मा थी,जो ना जाने कितने मौकों पर परिवार को परेशान करती रहती थी।
 और आखिरकार जब पूरा परिवार इन सब चीजों से परेशान हो गया,तो फिर उन्होंने मिलकर इसका समाधान निकालने की कोशिश करी। उन्होंने विशेष पुजारी जो भूत- प्रेत,और आत्माओं को शांत करके काबू करते हैं,उनसे परामर्श लिया। पुजारी जी द्वारा विशेष पूजा पाठ किया गया। पूरे खानदान ने अपनी पूर्वजों द्वारा किए गए पापों,और उनके बुरे कर्मों के लिए माफी मांँगी। पुजारी जी ने एक बाँस की प्रतिमा को पगली के शरीर के तौर पर बनाया,और उसका पूरे विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार करवाया। यह सब करने के पश्चात आखिरकार पूरे खानदान को पगली की आत्मा से मुक्ति मिली। कितने वर्षों तक भटकने के बाद आखिरकार उस आत्मा का रोष अब शांत हो गया था। पगली की आत्मा को अब मुक्ति मिल गई थी। और आखिरकार एक शापित खानदान कितनी पीढियों तक चले एक श्राप से मुक्त हो गया था। कितने समय के बाद सब ने चैन की सांँस ली थी। बीती काली रातों के बाद अब उनके सामने एक नई सुबह और उमंग थी।
 पूरा परिवार अब सत्मार्ग और निष्पाप,चलने के लिए तैयार था। यहीं से उन सबका मानो नवजीवन आरंभ हो चुका था।

Saturday, February 1, 2025

Attitude (French)

Attitude 

Nous faisons beaucoup de choses dans notre vie quotidienne. que notre ordre de vie reste occupé. Alors que les enfants vont à l'école, le travail des adultes, ou vont pour leur entreprise, et les récepteurs font leurs tâches quotidiennes à la maison, etc. J'ai la capacité de faire les tâches de chaque personne, et sa façon est différente. Une personne capable, peut effectuer une tâche, de manière «bonne» et «meilleure», au lieu d'une personne nouvelle et «désactivée». Quelle est l'attitude, l'attitude ou l'attitude de toute personne, pour tout acte, s'appelle son attitude Dans n'importe quelle tâche lorsque l'efficacité arrive, le point de vue de cette personne est fixé. C'est-à-dire toute personne en mesure de, et efficace dans sa propre situation ou domaine, décide de son attitude ou «Attitude» uniquement par la façon dont il fait ce travail. L'homme donne ses 100% de ce travail pour atteindre l'efficacité. Le résultat est bon pour lui. L'attitude rend toute personne parfaite ou efficace dans son travail. Attitude nous pouvons faire n'importe quel travail bien je habituellement les gens, «Attitude» et, «vanité», regarder ensemble, ils comprennent les deux ces choses de la même façon, alors que cette chose est absolument fausse. L'attitude, (yeux), et la vanité (Ego), fait une différence. Lorsque l'attitude nous rend compétents ou parfaits dans n'importe quelle tâche, l'orgueil crée une confiance excessive en une personne. La croyance de faire n'importe quelle tâche est bonne, mais elle n'a pas beaucoup confiance en faire la tâche. Toute tâche "je peux" c'est la croyance de la personne, mais cette tâche, "seulement je peux", c'est la confiance excessive de la personne. Le travail sur-confiance peut également être gâté. L'attitude crée une attitude positive en personne. En personne que les qualités sont créées cela, il peut tout voir d'un point de vue différent. Une personne avec Attitude dans une foule de Saccharo, crée sa propre identité. De telles personnes s'abstiennent d'être derrière quelqu'un, ou de marcher derrière quelqu'un, ils font leur propre chemin, et décident de leur propre destination. "Il y a cent personnes derrière moi", à la place ces cent personnes se sentent comme ça, "je suis un lion avec eux", ça s'appelle Attitude. Un travail plus important qu'une attitude positive est également possible. Même en nous tous, il doit y avoir un peu trop d'attitude. Il devrait être une approche positive et meilleure. Une personne avec une attitude positive, laissez son influence sur le panneau mondial aussi. Il se reflète également dans les grands «leaders de masse» du monde, de leur marche, de leur montée et de leur séance, de leurs actions, de leur mode de vie, cela semble clair. Pour une société bonne et saine, avoir une attitude positive, aurait dû organiser l'attitude. Cela permet à une personne d'atteindre un grand succès, facilement.

Friday, January 31, 2025

Attitude

Attitude 


 We do many things in our everyday life. which our life-order remains busy. As children go to school, adults' job, or go for their business, and the receptors do their everyday tasks at home, etc. I have the ability to do every person's tasks, and his way is different. A capable person, can perform a task, in a "good" and "better" way, instead of a new and "disabled" person. What is the attitude, attitude or attitude of any person, for any act, is called his attitute In any task when efficiency comes, that person's perspective is fixed. That is, any person when able to, and efficient in his or her own situation or field, decides his attitude or "Attitude" only by the way he does that work. Man gives his 100% of that work to achieve efficiency. The result is good for him. Attitude makes any person perfect or efficient in his work. Attitude we can do any work well I Usually people, "Attitude" and, "Vanity", look together, they understand both these things the same, while this thing is absolutely wrong. Attitude, (eyes), and vanity (Ego), makes a difference. Where Attitude makes us proficient, or perfect in any task, pride creates overconfidence in a person. The belief of doing any task is good, but it does not have much confidence in doing the task. Any task "I can" it's the person's belief, but this task, "only I can", it's the person's overconfidence. Over-confidence work can also be spoiled. Attitude creates a positive attitude in person.In person that qualities are created that,He can see everything from a different perspective. A person with Attitude in a crowd of Saccharo, creates his own identity. Such individuals refrain from being behind someone, or walking behind someone, they make their own way, and decide their own destination. "There are hundred people behind me", instead those hundred people feel like that, "I am a lion with them", it is called Attitude. A greater work than a positive Attitude is also possible. Even in all of us, there must be a little too much Attitude. It should be positive and better approach. A person with positive Attitude, leave his influence on the world panel too. It is also reflected in the world's large, "mass-leaders", from their walking, rising and sitting, their actions, in their lifestyle it looks clear. For a good and healthy society, having a positive attitude, should have organized Attitude. This allows a person to achieve great success, easily.

Wednesday, January 29, 2025

एक शापित खानदान ------ भाग 5

एक शापित खानदान ------- भाग 5

 सारी महिलाएंँ पगली को लेकर एक जगह पर आ गई थी। यह जगह नदी के किनारे वाली थी। पगली को यह देखकर हैरानी हुई कि पूरा गांँव यहांँ जमा हो रखा था। इसी वजह से पूरे गांँव में सन्नाटा पसरा हुआ था।
 भीड़ को तितर-बितर करके वह महिलाएंँ पगली को सबसे आगे ले आई। आगे पहुंँचकर,वहांँ का मंजर देखकर,पगली के तो जैसे होश ही उड़ गए। वहांँ का नजारा देख पगली को चक्कर आ गए और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। गांँव वालों ने उसके मुख पर पानी की छीटें मारी,उसको झकझोरा,तब जाकर उसको होश आया। पगली के सामने उसके बच्चे का शव पड़ा हुआ था। पगली ने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। पगली की चीखों,और उसके रोने की आवाजों ने,गांँव वालो के कलेजे को चीर दिया था। सबकी आंँखें यह देखकर नम हो चली थी। अधिकतर लोग यह जानकर भी हैरान हो रहे थे कि,आज पगली पल भर में सब कुछ जान रही थी,और समझ रही थी। यह कैसे संभव था?
 रोते-रोते पगली ने एक रहस्यो्घटान से पर्दा हटाया। हाय मेरे लाल तेरे लिए तो, तेरी मांँ पगली बन गई थी, इस जालिम समाज,और पत्थर दिल लोगों के बीच में, तुझे कहांँ लेकर जाती मैं। तेरे लिए आश्रय और छत के लिए तेरी मांँ पगली बन गई थी, पर अब मेरा क्या होगा? हे विधाता तो क्या उसने अपने जीवन के पिछले 6-7 वर्ष पगली होने का स्वांग किया था। कितना आश्चर्यजनक था यह!
 पर अब उसके लिए सब कुछ खत्म सा हो गया था। उसके जीवन का एकमात्र सहारा उसका पुत्र ही अब इस दुनिया में नहीं था।
 उसके पुत्र की मृत्यु भी बड़ी संदिग्ध परिस्थितियों में हो रखी थी। आखिर इतना छोटा बालक अकेले नदी किनारे क्या करने गया था?जहांँ नदी के जल का प्रवाह सबसे अधिक था,वह वहांँ तक कैसे पहुंँचा था?
 इन प्रश्नों के उत्तर आने अभी बाकी थे।
 अपने बच्चे के शव पर विलाप करते-करते पगली के दिल का रोष बार-बार बाहर निकलता रहा। वह बार-बार अपने परिवार को ऐसी बद्दुआयें दे रही थी कि सुनने वालों के कानों में शीशा पिघल गया था। थोड़ी देर बाद विचित्र रूप से पगली का अट्टहास शुरू हो गया था। पहले तो गांँव वालों को कुछ समझ में नहीं आया। फिर उन्होंने देखा पगली अब अपने बेटे के शव के चारों तरफ नाचने लगी थी। वो अब सच में पगला चुकी थी।
 हे परमात्मा!यह कैसा खेल रचा था तुमने।
 वहांँ का मंजर बहुत ही भयानक हो चला था। पगली के परिवार वाले भी,वहांँ पर आ चुके थे। इतने बड़े प्रकरण का भी,उन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था।आनन-फानन में उन लोगों ने बच्चे को उठाया और उसको उचित स्थान पर दफन कर दिया।पगली अब सच में पागल हो चुकी थी। उसकी जीने की इच्छा अब मर चुकी थी। दिन भर वह नदियों पहाड़ों,वीरानों में घूमती रहती थी। कभी कभार रह-रह कर उसे कुछ याद आता,फिर वह कलेजा चीर कर रोती,और सब कुछ धूमिल हो जाता था।
 उसे अब किसी भी चीज से भय नहीं लगता था। वह रात में भी,तूफानों और बारिशों में, जंगलों में भटकती रहती थी। ना उसे जंगली जानवरों का भय था,ना किसी और चीज का। और एक दिन आखिरकार वही हुआ, जिस चीज का डर था।
 और फिर एक दिन अचानक क्या हुआ था?
 क्या हुआ पगली की जिंदगी के साथ?
 क्या कभी पगली के साथ न्याय हुआ?
 क्या हुआ पगली के गुनहगारों के साथ?
 यह हम कहानी के अंतिम भाग में पढ़ेंगे....

Saturday, January 25, 2025

एक शापित खानदान ---- भाग 4

एक शापित खानदान ------ भाग 4


 उन चीखों और आवाजों से सारा गाँव तो मानो जैसे नींद से जाग गया था। एक तरफ पागलों जैसी हंँसी थी, तो दूसरी तरफ कलेजा चीर रुदन। सारे गांँव वाले दौड़कर उस पेड़ की तरफ दौड़े, जहांँ रात को वह औरत और उसका बच्चा रुके थे। वहांँ पहुंँचकर उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी। वह औरत पागलों की तरह ठहाके लगाकर हंँसे जा रही थी। उसके बाल खुले और बिखरे हुए थे। ना जाने कितनी देर रोने वाली उसकी आंँखें, और अब इस तरह पागलों की तरह हंँसना, सब कुछ विरोधाभासी था। रुदन का स्वर उसके बालक का था। जिसे उसने नीचे जमीन पर रखा हुआ था। वह बेचारा भूख,  प्यास,और मौसम की मार से व्याकुल होकर रोए जा रहा था। गांँव वालों ने घबराते हुए उस औरत का हाल पूछा, पर यह क्या! वह तो बस अपनी धुन में ही मगन थी। किसी भी बात का वो जवाब नहीं दे रही थी,बस मुंँह में कुछ बड़बड़ा रही थी। अपने साथ घटी घटना से उसको मानसिक सदमा लग गया था। इस सदमे का असर यह हुआ कि वह मानसिक रूप से कमजोर हो गई थी। उसे कुछ भी याद नहीं था। बस हंँसना,बड़बड़ाना,ताली पीटना, और चीखना,वह यही सब कर रही थी। तरस खाकर गांँव वाले,उसको और उसके बच्चे को लेकर उसके घर आ गये। काश यह हिम्मत उन गांँव वालों ने पहले दिखाई होती।
 गांँव वालों के गुस्से,और उस औरत की बिगड़ी मानसिक हालात को देखकर उसके घर वाले भी घबरा गए थे। मजबूरी में उन्हें उन दोनों को घर में रखना पड़ा। पर अब हालात पहले से बदल गए थे। कभी पूरे घर-परिवार को अकेले संभालने वाली वह धार्मिक औरत, आज मजबूर और लाचार हो गई थी। वह पूरे घर में पागलों की तरह घूमती थी। कभी बिना बात के हँसती,तो कभी रोती रहती थी। बच्चे का भी उसको कुछ होश नहीं था। मानसिक तौर पर उसकी स्थिति काफी खराब हो गई थी। उसे अपनी सुध-बुध तक नहीं थी।
 धीरे-धीरे वह पूरे गांँव में पगली के नाम से पहचाने जाने लगी। उसका एक नया नामकरण हो चुका था। उसका नाम अब पगली पड़ चुका था। धूल,मिट्टी,गंदगी, में लिपटी रहने वाली पगली। भूख लगने पर खाना मिल गया तो ठीक, वरना वह कुछ भी खा जाती थी। उसकी स्थिति बड़ी ही दयनीय हो गई थी। धीरे-धीरे वक्त आगे गुजरता चला गया।अब वह बालक भी 6-7 वर्ष का हो गया था। वह जब पगली को मांँ कह कर बुलाता, तो बस वह उसको निहारती रहती, जैसे वह कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो। घर वालों के लिए अब वह पगली,एक आवारा पशु के समान थी। जब मन करता उसे जी भर के पीटते,जमीन पर खाना परोस कर देते।
 कभी-कभी उसे कितने दिनों तक, बंद कमरे में रस्सियों से बाँधकर रख देते थे। उस औरत का बहुत ही बुरा वक्त चल रहा था। उसकी जिंदगी मौत से भी भयानक हो गई थी। ना जाने उसे,किस जन्म का कष्ट भोगना पड़ रहा था। ऐसी नरकीय जिंदगी से तो मौत ही अच्छी थी।
 सामान्य दिनों की तरह एक दिन सवेरे-सवेरे वह औरत सो कर उठी। उसे पूरे घर में कोई भी नजर ना आया। घर में बड़ी अजीब सी शांति फैली हुई थी। उसका बेटा भी घर पर नहीं था। ना जाने पूरे घरवाले कहांँ चले गए थे। तभी वहांँ पर गांँव की कुछ महिलाएं आई। वह उसका हाथ पकड़ कर कहीं चलने के लिए बोलने लगी। पगली भी उनके साथ-साथ चलने लगी। जाते-जाते उसने देखा पूरा गांँव भी खाली पड़ा हुआ था। एक अजीब सी खामोशी और सन्नाटा चारों तरफ फैला हुआ था। थोड़ी देर बाद वह लोग उसको लेकर एक जगह पर पहुंँचे। वहां पहुंँचने के बाद मानो पगली की,पूरी दुनिया ही खत्म हो गई थी।
 आखिर ऐसा क्या हुआ था?
 कहांँ लेकर आए वह लोग पगली को?
 क्यों पूरे गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था?
 उसके बाद फिर पगली के साथ क्या हुआ?
 यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेंगे...... 

Tuesday, January 21, 2025

अनदेखा ------ ऊपरी साया भाग 1

हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे की नदी-नालों, चौराहों,गधेरों पर अच्छी तरह देखकर चलना चाहिए।क्या यह केवल मात्र एक मिथक होता था। इन बातों में कितनी सच्चाई होती है, इसका जवाब सबके लिए अलग-अलग हो सकता है। हमारी इस दुनिया में बहुत सी चीज होती हैं जो हमें आंँखों से दिखाई नहीं देती, परंतु फिर भी वह होती हैं। जिस प्रकार अच्छाई के साथ बुराई,दिन के साथ रात, सुगंध के साथ दुर्गंध,और देव के साथ दानव होते हैं,उसी प्रकार तमस और बुराई के प्रतीक भी हमारी इस दुनिया में होते हैं। रात्रि में निशाचारों के साथ-साथ भूत-प्रेतो का राज भी होता है।अपने जीवन में अधिकतर लोगों को इनकी अनुभूति का एहसास हो जाता है।
 हमारी दुनिया के समानांतर इनकी भी अपनी दुनिया होती है।इनकी नकारात्मक शक्तियांँ इतनी प्रभावशाली होती हैं, कि वह किसी भी जीते-जागते इंसान का जीवन,नर्क बना देती है।
 जो इंसान अपने दिल में नकारात्मकता लेकर मरता है,या किसी इंसान के जीवन में उसके साथ कुछ गलत या अन्याय हुआ हो,तो ऐसे मनुष्य मृत्यु के वक्त अपना चित्त शांत नहीं रख पाते। एक कांटा या रोष उनके दिल में रह जाता है। परिणाम स्वरुप मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष नहीं मिल पाता और उनकी आत्मा भटकती रहती है। यह भटकाव सदियों का रूप ले लेता है। इस दौरान कितनी पीढ़ियांँ निकल जाती हैं। सब कुछ बदल जाता है, पर नहीं बदलता तो इन आत्माओं का प्रतिशोध।
 ये आत्मायें गाड़ (नदियों ),गढ़ेरों,तालाबों, पोखरो,जंगलों और वीरानों में भटकती रहती हैं। जहांँ इन्हें किसी इंसान से बदला लेना होता है,तो यह इन जगहों से,"छल "का रूप लेकर, किसी इंसान के घर में,उसके अंदर जगह बना लेते हैं। उसके बाद फिर वो उस इंसान को कष्ट देना शुरू कर देते हैं।
 आज की यह कहानी भी कुछ इसी तरह की है। इस कहानी का मकसद भूत-प्रेत, अंधविश्वास या नकारात्मकता को बढ़ावा देना नहीं है। परंतु इंसान यदि सतर्क रहे तो इन चीजों को समझ सकता है,और इनसे बच सकता है। इस कहानी में भी एक खुशहाल परिवार था। इसमें पति-पत्नी वह उनके दो बच्चों के अलावा उनका पूरा संयुक्त परिवार था। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। पर कुछ महीनों से आखिर उस आदमी की औरत(पत्नी ),रात को नींद में रोने लगती थी।
 उसका यह रोना बढ़ता ही जा रहा था।
 आखिर क्या हुआ था उसके साथ,जो रात को वह जोर-जोर से रोने लग जाती थी!
 क्या उसका रोना केवल रात में होता था?
 और बाद में उसे कुछ याद क्यों नहीं रहता था?
 और एक दिन कुछ ऐसा हुआ था कि पूरा परिवार डर के मारे घबरा गया, आखिर क्या हुआ था उस रात?
 यह हम कहानी की दूसरे भाग में पढ़ेंगे..... 

Sunday, January 19, 2025

एक शापित खानदान ----- भाग 3

वक्त के साथ-साथ उस औरत के ऊपर जुल्म और ज्यादा बढ़ गए थे। उस औरत की सहनशक्ति भी अब जवाब देने लगी थी। कभी-कभी वह ईश्वर से प्रार्थना करती कि, उसे मौत आ जाये तो इस संसारिक बंधन से मुक्ति मिल जाये, पर ऐसे मौत आती भी कहांँ है।और एक दिन अचानक,उसके घरवालों ने उसे और उसके मासूम बच्चे को हमेशा-हमेशा के लिए घर से बाहर निकाल दिया। वह रोती बिलखती रही,पर घर वाले तो जैसे पत्थर की मूरत बन गए थे,वह आज नहीं पिघले। औरत ने रोते हुए सभी भाइयों से गुहार लगाई,परंतु कोई फायदा ना हुआ। हालांकि उसके दो छोटे देवरों को उससे थोड़ा बहुत सहानुभूति थी, परंतु एक तो वह उम्र में छोटे थे,और दूसरा घर में बड़ों के फैसलों के खिलाफ वों नहीं जा सकते थे। औरत ने रोते हुए अपनी सास और जेठानी के पैर भी पकड़े,परंतु जैसे उनकी बुद्धि ही पलट गई थी। उसने यहांँ तक कहा कि मैं घर से चली जाती हूंँ,परंतु मेरे बच्चे को रख लीजिए,पर वो लोग नहीं माने। उफ़! औरत होकर भी उन दोनों को,एक औरत का दुख दर्द समझ में ना आया। और आखिरकार रोते-बिलखते हुए वह औरत,अपने मासूम बच्चे को गोद में लेकर घर से बाहर चली गई।
 इस वक्त उसके मन में इतनी वेदना और पीड़ा थी कि,किसी का भी कलेजा फट जाए। उसके मन में घर वालों के लिए भयंकर रोष पैदा हो गया था। वह घर से तो निकल आई थी पर उसे अपनी मंजिल का पता नहीं था। गांँव वाले भी उसको शरण देने के लिए तैयार ना थे। आज उसका इस दुनिया में कोई भी ना था, ना परिवार,ना घर,ना समाज,ना कोई रिश्तेदार। हे परमात्मा कैसा कौर अनर्थ था ये।
 रोते हुये वह अपने गांँव की सरहद से बाहर आ गई। सबसे पहला ख्याल उसके मन में आया कि,नदी में कूद कर आत्महत्या कर लेती हूंँ। पंरतु नदी किनारे पहुंँचने पर उसने अपने मासूम बच्चे का मुख देखा तो, उसकी आंँखों से अविरल आंँसुओ की धारा बह निकली। फिर उसने सोचा कि मैं तो मर जाऊंँगी,पर मेरे मरने के बाद इस मासूम का क्या होगा? यही सोचकर वह वापस अपने गांँव की सीमा में लौट आई। वहांँ एक बहुत बड़ा पेड़ था,वह उसी की जड़ में,अपने बच्चे को लेकर बैठ गई। उसके मन में रह रहकर यह ख्याल आता कि,शायद थोड़ी देर बाद उसके घर वाले आकर उसको ले जाएंँगे,पर ऐसा ना हुआ। धीरे-धीरे शाम भी गहराने लगी थी,जंगली जानवरों का खतरा भी बढ़ गया था। वह नीचे नदी से थोड़ा सा पानी ले आई थी। यही पानी दोनों मांँ-बेटे ने अपनी भूख शांत करने के लिए पिया था। और धीरे-धीरे रात गहरा गई थी। डर,भूख,और घबराहट के मारे उन दोनों का बहुत बुरा हाल था।
 उस रात तो उसके दिल में अपने सभी घर वालों की प्रति कड़वाहट ही निकलती रही। वह बार-बार भगवान को याद करके यही दुआ मांँग रही थी कि,इन लोगों की आगे सात पीढ़ियाँ ऐसा ही दुख भोगती रहें,जैसा आज मैं भुगत रही हूंँ। आज की रात अगर मुझे या मेरे बच्चे को कुछ हुआ,तो यह लोग पीढ़ियों तक मेरा रोष झेलते रहेंगे। इन लोगों का कभी भला नहीं होगा। ये सब असमय मौत मरेंगे। यह सदियों तक मेरा श्राप झेलते रहेंगे। डर और घबराहट के मारे उस औरत के दिल और जुबान पर,बार-बार यही सब कुछ आ रहा था। उस डरावनी रात में इंसान तो छोड़ो, भगवान का दिल भी नहीं पसीजा था। उस औरत ने जैसे एक पूरे खानदान को शापित कर दिया था। और आखिरकार सवेरा हो गया। परंतु यह है क्या...... गांँव में यह कैसा शोर था।सुबह के वक्त पूरा गांँव दो आवाजों से गूंज रहा था।एक भयंकर अट्टाहस की आवाज़, तो दूसरी करुण रुदन का स्वर।
 आखिर क्या हुआ उस डरावनी रात को?
 आखिर कौन था वो,जो बस रोये जा रहा था?
 इतनी जोर-जोर से दिल दहलाने वाली हंँसी आखिरकार किसकी थी?
 क्या हुआ था मांँ-बेटे के साथ उस डरावनी रात में?
 यह हम कहानी के अगले भाग में पढ़ेंगे...... 

Friday, January 17, 2025

एक शापित खानदान ------- भाग 2

एक शापित खानदान भाग 2 
 यह कहानी सदियों पुरानी है। किसी गांँव में चार भाई रहते थे, चारों भाई मिल जुलकर खेती-बाड़ी करते थे और अपना जीवन यापन करते थे। उस वक्त संयुक्त परिवार होते थे, चारों भाई भी मिलकर एक छत के नीचे रहते थे। दो बड़े भाइयों की शादियांँ हो चुकी थी, और दो छोटे भाई अभी छोटे थे। यह कथा शुरू होती है दूसरे नंबर के भाई की बीवी से, जो की एक बहुत गरीब घर की बेटी थी। वह घर के हर काम में दक्ष थी, और ईश्वर की परम भक्त थी। शादी के बाद वह ससुराल में अपनी गरीबी की वजह से प्रताड़ित की जाती थी। उसका अत्यंत गरीब परिवार से होना उसके ससुराल वालों को नहीं भाता था। अपनी सास के अलावा वह अपनी जेठानी के ताने भी सुनती रहती थी। उसके हर काम में मीन मेख निकलना,उनकी तो जैसे आदत ही बन गई थी। घर के अलावा खेती-बाड़ी के सारे काम भी वह उसी से करवाते थे। उस वक्त की दिनचर्या भी काफी कठिन होती थी। सुबह भोर के तारे को देखकर उठना,और अपने काम में लग जाना, और अपने ईश्वर की पूजा आराधना करना उसके जीवन का हिस्सा बन गया था। दैनिक कामों में उसे किसी की कोई मदद भी नहीं मिलती थी। बार-बार उन लोगों की जली-खोटी व ताने सुनने के अलावा, उसके पास और कोई रास्ता भी ना था। वह भी हंँसते-हंँसते सारी बातें सुनती और अपने काम में मग्न रहती थी। ज्यादा कष्ट होने पर वह भगवान को याद करके अपने मन को थोड़ा हल्का करती थी।
 वक्त के साथ-साथ उसके ऊपर होने वाले अत्याचार और ज्यादा बढ़ गये थे। अब उसे सास व जेठानी के अलावा,पति और जेठ की भी खरी-खोटी सुननी पड़ती थी। उसकी चुप्पी को सभी लोगों ने उसकी कमजोरी समझ लिया था। इस दौरान उसने एक प्यारे से लड़के को जन्म दिया। वह सोचती थी कि शायद अब उन लोगों के जुल्म व अत्याचार कम होंगे,पर उसकी सोच गलत साबित हुई।
 अब तानों और गालियों के साथ,उसके साथ मारपीट भी होने लगी थी। छोटी-छोटी बातों में भी वह लोग उसको बुरी तरह से मारते थे।
 घर के अधिकतर लोग उससे घृणा और नफरत करने लगे थे। यह लोग उसे कोल्हू के बैल की तरह काम करवाते थे,और खाने के लिए आधा पेट भी भोजन ना देते थे। वो बेचारी दूसरों के लिए तीनों वक्त का भरपेट भोजन बनाकर भी,खुद भूखी रह जाती थी।
 अपना दुखड़ा वो भगवान के आगे कहती थी, जिससे उसका मन थोड़ा हल्का हो जाया करता था।
 पति का नजरिया भी उसके प्रति ठीक ना था। अगर वह उन लोगों के खिलाफ जाकर, अपनी पत्नी का साथ देता तो शायद ऐसी बातें ना होती। परंतु ऐसा ना था। उसके अत्याचार भी दिनों दिन बढ़ गए थे। अपनी पत्नी के साथ मारपीट और गाली-गलौच करना तो,उसके दिए आम बात हो गई थी। उसे अपने बेटे से भी कोई लगाव ना था। शायद वह अपने बेटे में,उसकी मांँ का अक्स देखता था। अपनी बेटे को भी वह,हर चीज से मोहताज रखने लगा था। उफ़!कैसा पिता था वो।अपनी जेठानी के बच्चों और अपने लड़के में हर जगह भेदभाव होता देखकर भी वह औरत चुप रहती थी। आखिर वह कर भी क्या सकती थी, आवाज उठाने पर तो उसके साथ बुरे तरीके से मारपीट की जाती थी। वह तो बस खून के आंँसू,और अपमान का घूँट पीकर,अपनी जिंदगी बिता रही थी। उसके साथ अत्याचार वक्त के साथ बढ़ता ही चला गया था।
 और आखिर एक दिन उसके परिवार वालों ने उसके साथ वह किया,जो उसने सपने में भी नहीं सोचा था। आखिर उन लोगों ने ऐसा क्या किया जिससे एक सीधी-सादी और निर्दोष औरत की जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए बदल गई? क्या हुआ था उस औरत और उसके बच्चे के साथ?
 क्या भगवान ने भी उस औरत की एक न सुनी जिनकी वह परम भक्त थी?
 और आखिरकार कैसे एक खानदान शापित  बन गया था?
 यह हम कहानी की तीसरी भाग में पढ़ेंगे...... 

Thursday, January 16, 2025

Un Nouvel Espoir

Un nouvel espoir, nouveau est Umang, belle-belle couleur de nouveaux rêves, nouveau hai tarange, nouveaux kites ki dor, il y a du ciel ouvert et le bruit des oiseaux. Il y a de nouveaux jardins, de nouvelles fleurs, est le parfum du sol brut, et la couleur soufflante de poussière, nouveau est jardinier, nouveau est jardin, certains font est dans le cœur du feu de passage. Il y a de nouvelles chansons, de nouvelles c'est de la musique, il y a des tons doux-mélodieux, cher manmeet aimant, est le nouvel instrument, il y a de nouveaux instruments, il y a une nouvelle danse, il y a de nouveaux sorts de victoire. Passez un nouveau matin, ayez une nouvelle odeur, la nouvelle soirée est, le nouveau gazouillis des colibris, une nouvelle lumière, qui est la lumière wala, se tient également dans les ténèbres. Il y a un nouveau duel, il y a une nouvelle guerre, nouveau est le sang, nouveau est la passion, il y a de nouveaux mouvements, de nouveaux paris, le faire pour la victoire est nous au soleil. Histoire que nous devons faire de nouveaux, les héros doivent en faire de nouveaux, dans la création d'une nouvelle création, les Sacrifices devront être faits beaucoup. Futengi lorsque les nouveaux ouverts sur Zarameen, les hornerait, à la périphérie de leur sueur, doivent créer une nouvelle conscience, sur l'incision montante de chaque poitrine. L'ère voit le chemin vers les hommes ce monde, Sang porte tout le monde ça encore et encore, en allumant le feu des idées, essuyez les ténèbres plus denses, ô humain vous vous tenez, faites des maux contre-agissez. Aujourd'hui, le monde a besoin, un maître du monde, en détruisant le mal, en mettant la paix, pour protéger l'humanité, pour faire l'harmonie de la paix, pour l'avancement et le progrès, pour sauver la nouvelle vie.

लेखक और पाठक

लेखक और पाठक  निरंतर लिखना भी एक चुनौती है। नित नूतन विचारों को पैदा करना, उन विचारों को शब्दों में पिरोना, फिर उन शब्दों को कवि...